जनता के लिए लड़ने का दावा करने वाले मीडिया समूह क्या अपने ही पत्रकारों के लिए कोई स्टैंड नहीं ले पाते? क्या वे अपने पत्रकारों को अकेला छोड़ देते हैं? क्या वे लोग कांग्रेस या कहें सेक्युलर दलों के द्वारा किए गए अपने पत्रकारों के अपमान पर मौन साध जाते हैं? यह प्रश्न आज हर वह भारतीय पूछ रहा है, जो भारतीय मीडिया के एक बड़े वर्ग को हमेशा ही भारतीयता की बात करने वाले राजनेताओं का अपमान करते हुए देखता आया है। यह भी देखा जाता है कि कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या हिंदुओं या भारतीयता का पक्ष रखने वाले संगठनों के लोगों को कथित निष्पक्ष मीडिया बोलने नहीं देता है।
ऐसे में अमेरिका में इंडिया टुडे के एक पत्रकार ने यह दावा किया कि कैसे टेक्सास में उन पर राहुल गांधी की टीम ने हमला किया और अपमानित किया। पत्रकार रोहित शर्मा ने इंडिया टुडे के ही ओपिनियन पृष्ठ पर लिखा कि “टेक्सास के डलास में राहुल गांधी की टीम द्वारा मुझ पर कैसे हमला किया गया?” इस ओपिनियन वाले पृष्ठ पर रोहित ने लिखा है कि वह 7 सितंबर को नेता प्रतिपक्ष की बहुप्रतीक्षित अमेरिका यात्रा पर चर्चा करने के लिए गए थे। चूंकि यह यात्रा राहुल गांधी द्वारा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन के बाद हो रही थी, तो अमेरिका और भारतीयों के बीच यह सहज जिज्ञासा थी कि आखिर राहुल गांधी भारतीय समुदाय, विद्यार्थियों, मीडिया और नेताओं के साथ कैसे बातचीत करेंगे।
रोहित लिखते हैं कि वे भी सैम पित्रोदा के पास उनके साक्षात्कार से पहले पहुंच गए। चूंकि हमारा पहले का संवाद बहुत सुविधाजनक रहा था, तो मैं इस बारे में सहमत था कि वह मुझे वह साक्षात्कार देंगे जो राहुल के दौरे के लिए मंच तैयार कर देगा। रोहित जब सैम विला में पहुंचे, तो उस समय हालांकि लगभग 30 लोग मौजूद थे फिर भी सैम पित्रोदा ने उन्हें इंटरव्यू दिया। रोहित का कहना है कि शुरू के चार प्रश्नों के उत्तर सैम पित्रोंदा ने सहजता से दे दिए, मगर जैसे ही प्रश्न किया कि “क्या राहुल गांधी अमेरिकी सांसदों के साथ अपनी बैठक के दौरान बांग्लादेश में मारे जा रहे हिंदुओं का मुद्दा उठाएंगे?” और रोहित लिखते हैं कि इससे पहले कि सैम उत्तर दे पाते, उससे पहले ही वहाँ पर कमरे में बैठे हुए एक व्यक्ति ने चीखकर कहा कि यह “विवादास्पद” विषय है और राहुल गांधी की एडवांस टीम के एक सदस्य ने उनका फोन छीन लिया और चीखने लगा कि “बंद करो, बंद करो!”। रोहित के अनुसार सैम वहीं पर थे और वह भी रोहित की तरह अचंभित थे और शांति की अपील कर रहे थे। हालांकि राहुल के समर्थकों और टीम ने अपना फैसला ले लिया था। रोहित लिखते हैं कि ”एक व्यक्ति ने मेरा माइक छीनने की कोशिश की, लेकिन मैंने विरोध किया। उन्होंने मेरा फोन जबरन छीनकर रिकॉर्डिंग बंद कर दी। हंगामे के बीच सैम को राहुल गांधी से मिलने के लिए एयरपोर्ट ले जाया गया।”
उसके बाद वे लिखते हैं कि कमरे में पंद्रह लोग रह गए थे और वे कहते रहे कि उस प्रश्न को इंटरव्यू से डिलीट कर दूँ और रोहित यह समझाते रहे कि उस प्रश्न में कुछ भी विवादास्पद नहीं है और उन्होंने ही गलत किया है। मगर उन्होंने रोहित का फोन छीन लिया और इंटरव्यू डिलीट करने का प्रयास किया।
प्रेस की आजादी की बात करने वाले राहुल गांधी की टीम के बारे मे रोहित लिखते हैं कि हालांकि राहुल की टीम ने उनके फ़ोटो लाइब्रेरी से उस इंटरव्यू को डिलीट कर दिया, मगर वे रीसेन्टली डिलीटेड फ़ोल्डर का एक्सेस नहीं ले सके क्योंकि उसके लिए रोहित के फेस आईडी की जरूरत होती। जब तक वे वहाँ पर बैठे रहे, उन्हें घेर कर रखा गया और उनके फोन को छीनकर उनके चेहरे के पास लाकर वे उस फ़ोल्डर में गए और वहाँ से भी उस वीडियो को डिलीट कर दिया। रोहित राहुल गांधी के दोगले रवैये पर प्रश्न उठाते हुए लिखते हैं कि ”विडंबना यह है कि जब राहुल गांधी ने बाद में अमेरिकी प्रेस के सदस्यों से बात की कि भारत की मौजूदा सरकार के तहत पत्रकारिता की स्वतंत्रता कैसे कम हो गई है, तो उनकी टीम मुझे चुप कराने में व्यस्त थी। उन्होंने हर अमेरिकी यात्रा में इस बात को दोहराया है, लेकिन ऐसा लगता है कि प्रेस की स्वतंत्रता को वह जो महत्व देते हैं, वह उनके अपने खेमे तक नहीं पहुंचता।”
रोहित जब कहते हैं कि प्रेस की स्वतंत्रता को जो वे महत्व देते हैं, वह उनके खेमे तक नहीं पहुंचता तो वे गलत है, दरअसल वह तो राहुल तक ही नहीं पहुंचता है। राहुल गांधी स्वयं ही असहज प्रश्न पूछने वालों को कभी भाजपाई तो कभी कुछ कहते रहते हैं। सबसे दुर्भाग्य तो यही है कि जब कॉंग्रेस के राहुल गांधी इस तरह का प्रमाणपत्र असहज करने वाले प्रश्नों पर दे रहे होते हैं तो मीडिया हाउस भी यह प्रश्न नहीं करते कि असहज करने वाले प्रश्न भाजपाई क्यों और कैसे? क्यों मीडिया हाउस भी राहुल गांधी के सामने नतमस्तक दिखाई देते हैं? यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है।
इंडिया टुडे की ही एक पत्रकार हैं मौसमी सिंह। कॉंग्रेस के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर उनकी पत्रकारिता में भी गाहे बगाहे दिखाई देता ही है। मगर इन्हीं मौसमी सिंह पर राहुल गांधी ने एक असहज करने वाले प्रश्न पर भाजपाई होने का आरोप लगा दिया था। यह किसी टीम ने नहीं लगाया था, ये खुद राहुल गांधी थे, हालंकी मौसमी ने लल्लन टॉप से बातचीत में यह कहा था कि चूंकि राहुल गांधी की छवि मीडिया ने बिगाड़ दी है, इसलिए वे गुस्सा हो गए होंगे। और रोहित के मामले में जहां रोहित का कहना है कि उन्होंने सैम पित्रोदा को सारी घटना और बातें बताईं तो वहीं सैम का कहना है कि चूंकि उनके सामने ऐसा नहीं हुआ था तो उन्हें इस विषय में पता नहीं है।
इस पूरे प्रकरण में उस मीडिया हाउस की भूमिका भी कठघरे में है जो अपने पत्रकार के साथ न खड़ी होकर हमला करने वालों से प्रतिक्रिया लेने की प्रतीक्षा में है। जहां इंडिया टुडे के कन्सल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई से बात करते हुए सैम ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि एडवांस टीम में कौन है और फिर वे मामले का पता लगाएंगे। और उसके बाद उन्होंनेराजदीप के सामने ही यह भी कहा कि रोहित को जनता के सामने मामला बताने से पहले उनसे बात करनी चाहिए थी और रोहित जनता के सामने उनसे बात किए बिना गए।
फ्री प्रेस की बात करने वाले कांग्रेसी अब यह बताएंगे कि उनकी टीम द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के प्रति शिकायत भी केवल कांग्रेस के ही फोरम में की जाए? क्या यही फ्री प्रेस है? और लोगों के लिए न्याय की बात करने वाले इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई यह तक नहीं कह पाए कि उनके पत्रकार ने सैम को सूचित तो किया था, या फिर उनके पत्रकार ने अपनी बात लोगों तक रखकर क्या गलत किया?
जहां राहुल गांधी फ्री प्रेस की बात करते हुए अपनी टीम द्वारा रोहित शर्मा के साथ किए गए दुर्व्यवहार पर मौन हैं तो वहीं जिन प्रधानमंत्री मोदी पर वे मीडिया की आवाज दबाने का आरोप लगाते हैं, वे रोहित के साथ हुए दुर्व्यवहार पर कांग्रेस पर प्रश्न कर रहे हैं, परंतु जिस मीडिया समूह के लिए रोहित काम करते हैं, वह मुखर होकर अपने पत्रकार की प्रश्न पूछने की आजादी के पक्ष में नहीं आ रहा है?
आम लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर वह कौन सी विवशता है कि कथित रूप से पूरी दुनिया के लिए न्याय मांगने का दावा करने वाले लोग, सत्य अनुसंधान का दावा करने वाले लोग, पीड़ित के साथ खड़े होने वाला मीडिया हाउस, अपने ही पत्रकार की उस पीड़ा पर चुप क्यों है जो उसे कांग्रेस के युवराज की एडवांस टीम के सदस्यों ने दी है, उसके प्रश्न पूछने की आजादी को छीने जाने पर मौन क्यों हैं, जो और किसी ने नहीं बल्कि खुद कॉंग्रेस के युवराज की टीम ने छीने हैं?
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