शीतल देवी की कहानी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है जो जीवन में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने पेरिस पैरालिंपिक में तीरंदाजी के क्वालिफिकेशन राउंड में नया विश्व रिकॉर्ड बनाया है, जिसके बाद वह एक बार फिर चर्चा में हैं। आइए जानते हैं बिना हाथों वाली यह लड़की तीरंदाजी की दुनिया में खिलाड़ी कैसे बनी। एक साधारण ग्रामीण परिवार में जन्मी शीतल के पिता किसान हैं और मां बकरियां चराती हैं। यह कहानी तब और भी खास हो जाती है जब यह पता चलता है कि शीतल देवी के पास हाथ नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद वह एक सफल तीरंदाज बन गई हैं। उनका सफर संघर्ष, साहस और दृढ़ निश्चय की मिसाल है। शीतल देवी दुनिया की पहली और एकमात्र सक्रिय महिला तीरंदाज हैं जो बिना हाथों के प्रतिस्पर्धा करती हैं।
शीतल देवी दुनिया की पहली और एकमात्र सक्रिय महिला तीरंदाज हैं जो बिना हाथों के प्रतिस्पर्धा करती हैं। शीतल का जन्म बिना हाथों के हुआ, जिससे उनके परिवार को शुरू से ही बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके, शीतल के माता-पिता ने कभी हार नहीं मानी और अपनी बेटी के लिए एक बेहतर जीवन की कामना की।
शीतल देवी का जन्म 10 जनवरी 2007 को जम्मू और कश्मीर के एक छोटे से गाँव किश्तवाड़ में हुआ था। कहा जाता है कि वह फोकोमेलिया नामक जन्मजात बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और तीरंदाजी की दुनिया में वो मुकाम हासिल किया जो बहुत कम लोग ही हासिल कर पाते हैं। शीतल का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था। उनके माता-पिता का साथ और शीतल की खुद की इच्छाशक्ति ने उन्हें अपनी सीमाओं को पार करने के लिए प्रेरित किया।
तीरंदाजी में मिली पहचान
शीतल का जीवन उस समय बदल गया जब उन्होंने तीरंदाजी की ओर रुख किया। बिना हाथों के तीर चलाना किसी के लिए भी असंभव लग सकता है, लेकिन शीतल ने इसे अपने जज्बे और मेहनत से संभव कर दिखाया। उन्होंने पैरों से तीर चलाना शुरू किया और धीरे-धीरे इसमें माहिर हो गईं। उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने का मौका दिया, जहां उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। शीतल ने न केवल अपनी व्यक्तिगत पहचान बनाई, बल्कि उन्होंने यह साबित किया कि विकलांगता किसी के सपनों को रोक नहीं सकती।
कैसे करती हैं तीरअंदाज
शीतल देवी का तीरंदाजी का तरीका भी बेहद अनोखा है। हाथ न होने के बावजूद भी वह पैरों से तीर चलाती हैं। शीतल देवी कुर्सी पर बैठकर अपने दाहिने पैर से धनुष उठाती हैं और फिर दाहिने कंधे से डोरी खींचती हैं। जबड़े की ताकत से तीर चलाती हैं। उनका हुनर देखकर लोग हैरान रह जाते हैं कि आखिर कोई लड़की इस तरह कैसे तीर चला सकती है।
दुनिया को तीरंदाजी दिखाने वाली शीतल देवी का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। वह बचपन में ज्यादा कुछ देख नहीं पाती थीं। बताया जाता है कि 15 साल की उम्र तक उन्होंने धनुष-बाण भी नहीं देखा था। जब उन्हें बिना हाथों के पेड़ पर चढ़ते देखा गया। उसके बाद लोगों को उनकी प्रतिभा का एहसास हुआ। साल 2022 में किसी की सलाह पर वह जम्मू के कटरा स्थित श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स पहुंचीं। दरअसल, यह इतना आसान नहीं था। यह स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स उनके घर से भी 200 किलोमीटर दूर था। वहां उनकी मुलाकात अभिलाषा चौधरी और कोच कुलदीप वेदवान से हुई। यहीं से शीतल देवी की जिंदगी बदल गई। इन दोनों कोचों ने शीतल को न सिर्फ तीरंदाजी से परिचित कराया, बल्कि उनकी ट्रेनिंग भी शुरू करवाई। वह कटरा में एक ट्रेनिंग कैंप में गईं। इसके बाद वह लगातार अपने करियर में नए आयाम गढ़ रही हैं।
शीतल देवी ने एशियाई पैरा गेम्स 2023 में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। उन्होंने चीन के हांग्जो में आयोजित एशियाई पैरा गेम्स में दो स्वर्ण पदक सहित तीन पदक जीते। वह एक ही सत्र में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला भी बनीं। शीतल को इस उपलब्धि के लिए अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
परिवार का समर्थन और समाज की बदली सोच
शीतल के इस सफर में उनके परिवार का असीमित समर्थन सबसे बड़ी ताकत साबित हुआ। उनके पिता, जो एक साधारण किसान हैं, और उनकी मां, जो बकरियां पालती हैं, ने हर कदम पर शीतल का साथ दिया।
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