तत्कालीन एनएसए किताब में आगे लिखते हैं कि मैटिस ने बड़े अनमने ढंग से सैन्य सहायता रोक देने का निर्णय लिया था। ट्रंप ने तब सबके सामने यह कहा था कि गत 15 साल में अमेरिका ने पाकिस्तान 33 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दी है जो कोई अक्लमंदी का काम नहीं है। जबकि पाकिस्तान ने हमारे नेताओं को बुद्धू समझा और पलटकर झूठ और धोखाधड़ी ही परोसी।
अमेरिका में जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का शासन था तब उस देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद का दायित्व संभालने वाले अधिकारी ने एक बड़ा खुलासा किया है। उसने कहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और जिहादी तत्वों के बीच मिलीभगत है और दोनों एक दूसरे का कहा मानते हैं। अमेरिका के पूर्व एनएसए का यह दावा अमेरिका के हाल के उस बयान पर क्या असर डालेगा जिसमें उनके देश ने आतंक के विरुद्ध पाकिस्तान को सहयोग देने की बात कही है?
ट्रंप के कार्यकाल में एनएसए रहे ले.जनरल मैक्मास्टर की किताब ‘एट वॉर विद अवरसेल्व्स : माई टूर आफ ड्यूटी इन द ट्रंप व्हाइट हाउस’ में एक यही नहीं, अन्य कई बड़े दावे किए गए हैं। उनकी किताब में है कि पाकिस्तान की सैन्य गुप्तचर संस्था इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) और आतंकवादियों में गहरा संबंध है। एक और खुलासा यह किया गया है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन में व्हाइट हाउस ने इस्लामाबाद को सुरक्षा सहायता रोक दी थी जिस बात पर राष्ट्रपति कार्यालय और विदेश विभाग एवं रक्षा विभाग से गहरे तनाव उपजे थे।
मैक्मास्टर की यह किताब ट्रंप के शासन काल में एनएसए के नाते उनके अनुभवों पर आधारित है। पूर्व एनएसए ने लिखा है कि ट्रंप ने यह आदेश दे दिया था कि पाकिस्तान अगर आतंकवादियों को शरण देना बंद नहीं करता, तो उसे अमेरिका से कोई आर्थिक मदद न दी जाए। उन्होंने उस वक्त पाकिस्तान को इस मद में जा रही बड़ी राशि पर रोक लगा दी थी। लेकिन ट्रंप के इस आदेश के बाद भी उस वक्त के रक्षा मंत्री जिम मैटिस की योजना बन रही थी कि पाकिस्तान को सैन्य सहायता दी जाए। हैरानी की बात है कि मैटिस की उस योजना में अनेक बख्तरबंद वाहन भेजे जाने की बात थी जो 15 करोड़ डॉलर से अधिक के थे। लेकिन ट्रंप प्रशासन की दखल के बाद वह योजना अमल में नहीं आ पाई थी।
किताब ‘एट वॉर विद अवरसेल्व्स’ में आगे लिखा है कि ट्रंप कुछ कामों पर रोक लगाना चाहते थे, लेकिन उनके ऐसे निर्देशों को मनवाने के लिए विदेश तथा रक्षा विभागों के साथ काफी बहस करनी पड़ती थी। दक्षिण एशिया की रणनीति की बात करें तो उस मैटिस इस्लामबाद जाने और वहां सैन्य सहायता का एक पैकेज घोषित करने की तैयारी कर चुके थे। लेकिन बाद में ट्रंप के आदेश पर वह सहायता रोकी गई थी। कारण, पाकिस्तान आतंकवादियों पर नकेल कसने में नाकाम रहा था। मैक्मास्टर के अनुसार, इस दौरे के बात पता चलने पर उन्होंने मैटिस और सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी के साथ ही दूसरे बड़े अधिकारियों के साथ बैठक करना तय किया था।
उसी बैठक में उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति ट्रंप पाकिस्तान का दी जा रही सहायता पर लगाम लगाने को लेकर कई बार साफ साफ कह चुके हैं। उन्होंने हर बार कहा है कि जब तक कि पाकिस्तानी अफगानिस्तान में अफगानों, अमेरिकियों तथा गठजोड़ के सदस्यों की हत्याएं कर रहे जिहादी संगठनों को समर्थन देना नहीं रोकते तब तक पाकिस्तान को कोई पैसा न भेजा जाए।
तत्कालीन एनएसए किताब में आगे लिखते हैं कि मैटिस ने बड़े अनमने ढंग से सैन्य सहायता रोक देने का निर्णय लिया था। ट्रंप ने तब सबके सामने यह कहा था कि गत 15 साल में अमेरिका ने पाकिस्तान 33 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दी है जो कोई अक्लमंदी का काम नहीं है। जबकि पाकिस्तान ने हमारे नेताओं को बुद्धू समझा और पलटकर झूठ और धोखाधड़ी ही परोसी। पाकिस्तानी आतंकवादियों को शरण देते आ रहे हैं, जबकि हम उनकी अफगानिस्तान में खोज कर रहे है। लेकिन अब बहुत हुआ।
तत्कालीन एनएसए बताते हैं कि पाकिस्तान के रवैए में कोई फर्क नहीं आया। यहां तक कि पाकिस्तान सरकार ने मैटिस के दौरे से ठीक एक दिन पहले 2008 के मुंबई हमले के षड्यंत्रकारी हाफिज सईद को रिहा करके एक तरह से अमेरिकियों का अपमान ही किया था।
लेकिन ट्रंप यह सब देख रहे थे। उन्होंने दक्षिण एशिया रणनीति के एक महत्वपूर्ण हिस्से, पाकिस्तान को सहायता, पर रोक लगाई थी। इससे पाकिस्तान समर्थक लॉबी ने काफी दुष्प्रचार भी किया था। लेकिन ट्रंप अपने फैसले पर कायम रहे थे। वे जानते थे कि पाकिस्तान जिहादियों को पालता है और दुनिया के सामने झूठ बोलता है कि आतंकवाद की नकेल कसने की कोशिश कर रहा है।
अब हाल में बाइडेन प्रशासन ने घोषणा की है कि ‘आतंकवाद को लगाम लगाने के पाकिस्तान के प्रयासों में सहयोग करेंगे’। विशेषज्ञ सवाल कर रहे हैं कि पाकिस्तान के अब तक के ट्रैक रिकार्ड और मैक्मास्टर की किताब के हुए रहस्योद्घाटन के बाद भी क्या डेमोक्रेट सरकार ऐसा कदम उठाएगी? अगर वह ऐसा करती है तो रक्षा विशेषज्ञों का एक बड़ा तबका इसे अपरिपक्व कदम कहेगा। इससे पाकिस्तान के प्रति बाइडन प्रशासन का अनुचित मोह भी दिखेगा।
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