संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार भारत वैश्विक मानव विकास सूचकांक में 134वें स्थान पर है। अर्थशास्त्र में मानव संसाधन दशार्ने के लिए मानव विकास और मानव पूंजी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। किसी देश का मानव संसाधन जितना मजबूत, कुशल और सक्षम होगा वह देश प्रगति के सभी मानकों पर उतनी ही तेज गति से बढ़ेगा।
मानव विकास सूचकांक किसी भी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य और दीघार्यु, ज्ञान और अच्छे जीवन स्तर का माप है। जहां मानव विकास के तहत लोगों को स्वस्थ, रचनात्मक और दीर्घ जीवन जीने के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करने पर जोर दिया जाता है, वहीं मानव पूंजी निर्माण व्यक्ति के श्रम की क्षमताओं का पैमाना है जिसमें कौशल विकास, कार्यक्षमता, शिक्षा और स्वास्थ्य शामिल हैं। किसी अर्थव्यवस्था में आर्थिक मूल्यों के सृजन के लिए उससे जुड़े कार्यबल या श्रमबल की शैक्षणिक योग्यता और अनुभव जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही उसका स्वस्थ और कार्य सक्षम रहना आवश्यक है। मानव पूंजी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत उत्पादकता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर क्यों न हम मानव विकास सूचकांक और मानव पूंजी निर्माण के कारकों में स्वास्थ्य विषय पर ध्यान केद्रित करते हुए यह मंथन करें कि हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा- योग विज्ञान- देश के मानव संसाधन को बेहतर करने में आनुपातिक रूप से कितना योगदान कर सकती है? क्या कार्यस्थलों पर एक खास अवधि के अनिवार्य अभ्यास-नियम के रूप में योग को लागू कर हम एक मजबूत और कार्यकुशल मानव पूंजी तैयार कर सकते हैं? क्या एक योग आधारित दिनचर्या, अभ्यास, प्रकृति के साथ संपर्क स्थापित करने के नियम-अनुशासन के जरिए हम लगभग शून्य लागत पर एक स्वस्थ-सक्षम-कुशल श्रमबल तैयार कर स्वास्थ्य क्षेत्र में होने वाले व्यय को कम कर उस क्षेत्र के लिए आवंटित राशि को अन्य जन कल्याण कार्यों या बुनियादी ढांचा क्षेत्र में इस्तेमाल कर सकते हैं? एक प्रभावी स्वास्थ्य क्षेत्र बेहतर उत्पादक श्रम बल तैयार करने में अत्यंत आवश्यक भूमिका निभाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति ज्यादा सक्षम, दक्ष और उत्पादक होता है।
भारत में मानवीय पूंजी निर्माण अभी प्रारम्भिक अवस्था में है, देश के तेज आर्थिक विकास के लिए नागरिकों का स्वस्थ होना अत्यंत जरूरी है। मानव संसाधन के विकास के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र का विकास आवश्यक है। स्वास्थ्य क्षेत्र में होने वाला व्यय मानव पूंजी निर्माण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मानव पूंजी से तात्पर्य शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे साधन हैं जो मनुष्य के विकास में सहायक होते हैं। मानव पूंजी अवधारणा में स्वास्थ्य श्रम की उत्पादकता बढ़ाना एक अहम तत्व है। एक स्वस्थ श्रम बल कार्य निष्पादन की गति बढ़ाता है जिससे लाभकारी रोजगारों का सृजन होता है जो आय की बढ़ोतरी में सहायक होते हैं। संक्षेप में, मानवीय पूंजी निर्माण में किया गया निवेश उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करके आर्थिक विकास दर में वृद्धि कर सकता है।
वर्ष 1990 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा आरंभ मानव संपदा मूल्यांकन कार्य के तहत प्रकाशित प्रथम रिपोर्ट कहती है, ‘किसी भी राष्ट्र के लिए उसकी जनता सर्वप्रमुख संपत्ति होती है और राष्ट्र के विकास का तात्पर्य है वहां के संसाधनों का उपयोग और उपभोग इस प्रकार करना कि वहां की जनता स्वस्थ, सुखी और दीघार्यु हो।’ इसी कालखंड में भारत में पश्चिम पोषित वैश्वीकरण और उदारीकरण की लहरें भी अपने पैर पसारने लगी थीं। ऊपरी तौर पर देश विकास करता दिख तो रहा था लेकिन जीवन प्रत्याशा, स्वस्थ शरीर और स्वस्थ जीवन शैली के सूचकांक पर आम नागरिकों की अवस्था चिंताजनक थी। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. शुल्ज के अनुसार मानव पूंजी या संसाधन के विकास में चार कारकों की अहम भूमिका है, स्वास्थ्य उनमें से एक है। वह ऐसी स्वास्थ्य सुविधाओं को उपलब्ध कराने की बात करते हैं जो व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा, शक्ति, उत्साह व कार्यक्षमता को प्रभावित कर सके। प्रश्न है कि शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ, योग्य, सक्षम और कुशल मानव पूंजी, जो एक सशक्त और ऊर्जावान श्रम-शक्ति के रूप में देश के आर्थिक विकास का लक्ष्य पूरा करने में सहयोगी बने, कैसे तैयार की जाए? किसी भी राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए अन्य कारकों के साथ उस देश के मानव संसाधन का सशक्त होना एक अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
मानवीय पूंजी में जितना विकास होगा, देश की उत्पादक क्षमता और कार्य कौशल उतना ही बेहतर होगा। भारत की सातवीं पंचवर्षीय योजना में कहा गया था कि ‘एक विशाल जनसंख्या वाले देश में तो विशेष रूप से मानव संसाधनों (मानव पूंजी) के विकास को आर्थिक विकास की युक्ति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान देना ही होगा।’ भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में मानव पूंजी निर्माण के लिए शिक्षा, तकनीकी विकास और स्वास्थ्य के मद पर करोड़ों रुपये का आवंटन होता है। अगर स्वास्थ्य क्षेत्र की लागत को हम किसी शून्य लागत वाले उद्योग अर्थात योग से शरीर और मन से प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रहने लगे तो स्वास्थ्य मद में आवंटित शेष राशि देश के अन्य जन कल्याण कार्यों में इस्तेमाल हो सकती है। हमारा प्राचीन योगविज्ञान आज देश में ही नहीं पूरे विश्व में अपनी पहचान बना रहा है।
हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने समाज की व्यवस्था को अनुशासित करने के लिए योग को जीवन शैली का हिस्सा बनाने का पाठ दिया है। यह मात्र आसनों का विज्ञान नहीं, बल्कि मनुष्य को भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखते हुए उसके कार्य करने की क्षमता को बेहतर करने का साधन है। योग के नियम, अभ्यास और अनुशासन स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक प्राकृतिक निवेश हैं जिसकी लागत लगभग शून्य है, पर इसके जरिए तैयार होने वाला मानवीय श्रमबल उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि करने में त्वरित भूमिका निभा सकता है, क्योंकि उसकी मानसिक और शारीरिक शक्ति और कार्यक्षमता प्रकृति के साथ जुड़ कर विकसित होती है। उसमें एक सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित रहती है जो कार्यों को एकाग्रता, कुशलता के साथ पूरा करने में सक्षम होती है। इससे उत्पादकता में गुणात्मक बढ़ोतरी होती है। स्पष्ट है कि एक स्वस्थ व्यक्ति बीमार व्यक्ति की तुलना में अधिक कार्यसक्षम होता है, इसलिए उनका योगदान भी कई गुना ज्यादा होता है।
उपनिषद में लिखा है –
।। शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।।
अर्थात शरीर ही सभी धर्मों अर्थात कर्तव्यों को पूरा करने का साधन है।
स्वस्थ मानवीय पूंजी और उसकी बुनियाद पर एक आर्थिक रूप से सशक्त राष्ट्र की स्थापना का अद्भुत मंत्र भारत के जनमानस के हृदय में बसे योगेश्वर श्री कृष्ण ने श्रीमद् भगवद्गीता में प्रस्तुत किया है।
‘योग: कर्मसु कौशलम्’
अर्थात योग के लिए प्रयत्न करो, क्योंकि इसी के जरिए कार्य कौशल विकसित होता है।
यह श्लोक स्वस्थ मानव संसाधन प्रौद्योगिकी का बुनियादी मंत्र प्रस्तुत करता है। योगाभ्यास के तहत किए जाने वाले षट्कर्म व्यक्ति के शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकाल देते हैं। योगासनों से शरीर के विकार दूर होते हैं। प्राणायाम तनाव को दूर करता है, मन को सशक्त करता है और मानसिक रोगों को दूर भगाता है। योग सभी प्रकार के रोगों का इलाज करने में सहायक होता है। यह शरीर की प्राकृतिक उपचार प्रणाली को सक्रिय कर शरीर को निरोगी बनाने में मदद करता है।
भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन का सदस्य देश है और योग विज्ञान के प्रणेता के रूप में भारत वैश्विक स्वास्थ्य की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भारत की प्राचीन योग परंपरा पर स्वीकृति की मुहर लगाते हुए वर्ष 2014 में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने के बाद देश और विश्व के कोने-कोने में योग के प्रति जागरूकता और उसका अभ्यास करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। अब आसन और प्राणायाम से लोग शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ हो रहे हैं। योग ने बड़ी संख्या में लोगों को स्वस्थ काया का आशीर्वाद थमाया है। योग से दमा, दिल के रोग, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, अवसाद आदि बीमारियों के दूर होने के कई उदाहरण हमारे आसपास दिखाई देते हैं।
योगासनों के अभ्यास से लोगों की कार्यक्षमता बढ़ती है जो उत्पादन क्षेत्र को सीधे तौर पर सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। निस्संदेह, स्वस्थ रहने के लिए योग एक चमत्कारी विज्ञान है। योग एक ऐसा स्वास्थ्य निवेश है जिसमें व्यक्ति कौशल विकास, मजबूत शारीरिक और मानसिक क्षमता और चारित्रिक उत्थान जैसे आयामों पर लाभ उठा रहा है जहां विकास की कमान मनुष्य के हाथों में है। योग और शारीरिक क्षमता एक सहज-स्वाभाविक डोरी से जुड़े हैं। यह मनुष्य के जीवन में हमेशा बरकरार रहने वाली प्रक्रिया है। महर्षि अरविंद ने कहा था, ‘संपूर्ण जीवन ही योग है’।
योग के प्रति जागरूकता अपने स्वास्थ्य का स्वयं ख्याल रखने और स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित करती है। इसका व्यापक प्रयोग स्वास्थ्य सेवा और देखभाल क्षेत्र की लागत में आनुपातिक कमी लाने में सहायक हो सकता है। अगर स्कूल, कालेजों और प्रत्येक कार्यस्थल में योगाभ्यास अनिवार्य कर दिया जाए तो आय सृजन क्षेत्र के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ, सक्षम और दक्ष श्रम बल प्राकृतिक रूप से विकसित होगा और उत्पादन क्षेत्र को मजबूत करेगा।
इस इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए आयुष मंत्रालय ने 2021 में एक ‘वाई ब्रेक’ मोबाइल ऐप्लिकेशन विकसित किया जिसका शुभारंभ करते समय तत्कालीन केंद्रीय आयुष मंत्री सबार्नंद सोनोवाल ने कहा था कि कामकाजी आबादी को ध्यान में रखते हुए एक वाई-ब्रेक विकसित किया गया है जो कार्यस्थल पर कर्मचारियों को कुछ राहत पहुंचाएगा। यह एक पांच मिनट का योग प्रोटोकॉल है जिसे विशेष रूप से कामकाजी पेशेवरों को तनाव मुक्त करने, तरोताजा होने और कार्यस्थल पर पुन: ध्यान केंद्रित करने तथा उनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। इसमें इसमें ताड़ासन, उर्ध्व-हस्तोत्तानासन, स्कंध चक्र, उत्तानमंडूकासन, कटि चक्रासन, अर्धचक्रासन, प्रसारितपादोत्तानासन, नाड़ीशोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम शामिल है।
योग के लाभों के बारे में बताते हुए सर्बानंद सोनोवाल ने कहा, ‘हम जानते हैं कि कॉपोर्रेट पेशेवर अक्सर अपने व्यवसाय के कारण तनाव और शारीरिक समस्याओं का अनुभव करते हैं। बेशक, अन्य पेशे भी ऐसी समस्याओं से अछूते नहीं हैं। कामकाजी आबादी को ध्यान में रखते हुए यह वाई-ब्रेक विकसित किया गया है, जो कर्मचारियों को कार्यस्थल पर कुछ राहत देगा। अगर ईमानदारी से अभ्यास किया जाए तो यह वाई-ब्रेक लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में एक प्रमुख भूमिका निभाने वाला है।’ वाई-ब्रेक का उद्देश्य कार्यस्थल से जुड़े तनाव और शारीरिक समस्याओं का सामना करने वाले कामकाजी लोगों के स्वास्थ्य में सुधार लाने और उसे बेहतर करना है।
इसके तहत विशेष रूप से कामकाजी लोगों के लिए पांच मिनट का योग प्रोटोकॉल तैयार किया गया है जो कार्यस्थल पर ही उन्हें तनाव घटाने, तरोताजा होने और फिर से काम पर ध्यान केंद्रित करने और उनकी उत्पादकता बढ़ाने में मदद करेगा। अगर वाई-ब्रेक का नियमपूर्वक अभ्यास किया जाए तो यह लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता। इससे न सिर्फ लोगों के सामान्य स्वास्थ्य में सुधार होगा, बल्कि उत्पादकता भी बढ़ेगी। स्वाभाविक है मनुष्य की कुशलता और दक्षता और स्वस्थ शरीर पर ही समाज और राष्ट्र के विकास का ढांचा तैयार हो सकता है। हमारा देश में अपनी प्राचीन विरासत योग विज्ञान के मार्ग पर चलकर एक स्वस्थ और दीर्घायु मानव संसाधन तैयार करने में सर्वथा सक्षम है जो अंतत: जीडीपी को बेहतर करने में सक्षम होगा, इसमें संशय नहीं।
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