देश में लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया है. भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए को बहुमत मिला है और अब नरेंद् मोदी लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने वाले देश के दूसरे पीएम बने हैं. विशेषज्ञ अपने अपने तरीके से चुनाव परिणाम की व्याख्या करेंगे, लेकिन कुछ मूल बातों में इस जनादेश के मायने छिपे हैं.
पहली बात, यह जनादेश प्रधानमंत्री मोदी के मोदी के विरुद्ध एक अविश्वास नहीं है. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने 206 से अधिक जनसभाएं की और भाजपा का मत प्रतिशत भी लगभग समान है पिछले चुनाव की अपेक्षा भाजपा को 69 लाख अधिक मत प्राप्त हुए हैं. उडीसा, मध्य प्रदेश, गुजरात, पूर्वोत्तर भारत और दक्षिणी राज्यों में बढ़ा हुआ मत प्रतिशत प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रिय का ही सबूत है. भाजपा भले ही बहुमत से थोड़ा पीछे रह गई लेकिन 10 साल की शासन और एंटी इनकंबेंसी के बाद भी 240 सीटों को जिताकर लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अपना विश्वास जरुर व्यक्त किया.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी और एनडीए को तीसरी बार जनता ने मौका दिया गया है. इस जनादेश में एक कंटिन्यूटी और विश्वास का मैसेज है, जो हमे समझना होगा। हम इससे इंकार नहीं कर सकते। मोटे तौर पर, भाजपा को यह नुकसान प्रत्याशी चयन में हुई खामियों और क्षेत्रीय नेताओं की आलोकप्रियता और अतिउत्साह के कारण हुआ है, जिसपर विश्लेषण ज़रूरी है.
दूसरी बात, इन जनादेशों में हमें एक “एंटी इनकंबेंसी ट्रेंड” देखने को मिला. उड़ीसा में दो दशक से अधिक शासन कर रहे नवीन बाबू को हार का सामना करना पड़ा. वहीं आंध्र प्रदेश में भी जगन मोहन रेड्डी बुरी तरह पराजित हुए. राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हुआ नुकसान भी इसी के एक अभिव्यक्ति है, इसके बावजूद भी मोदी के नेतृत्व में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. दिल्ली के परिणामों से भी यह साफ हुआ है कि आम आदमी पार्टी की मुफ्त बांटने की नीति का लोगों पर कोई प्रभाव नहीं हुआ. मोदी सरकार के कई बड़े मंत्रियों की हार भी इसी एंटी इनकंबेंसी ट्रेड की अभिव्यक्ति है.
इस जनादेश में तीसरी बात भारतीय संसद के नए चरित्र और व्यापक प्रतिनिधित्व की अभिव्यक्ति से जुड़ी हुई है. 2014 में 44 और 2019 में 52 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस 99 सीटों के साथ 2024 दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर आयी है। विभिन्न प्रमुख मुद्दों पर अब सरकार और विपक्ष के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता और बहस देखने को मिलेगी. भारतीय लोकतंत्र के लिए एक जरूरी अनुभूति होगी. अगले पांच साल विपक्ष केंद्र की राजनीति में मजबूती से बना रहेगा। क्षेत्रीय दल देश की राजनीति में अपरिहार्य बने रहेंगे. हालांकि महिला प्रतिनिधित्व की घटी संख्या जरूर चिंता की बात है. इन चुनाव परिणामो ने भारतीय लोकतंत्र की गतिशीलता को बनाये रखा है और मतदाताओं ने भी इसमें अपनी भूमिका को निभाया है.
चौथी महत्वपूर्ण बात है की जनादेश में हमे ग्रामीण स्तर पर लोगों की नाराज़गी भी देखने को मिली। उत्तर भारत में बीजेपी को हुआ नुक्सान इसका एक उदाहरण है। भले ही मोदी सरकार की जन कल्याण नीतियों से लोगों को सामाजिक सुरक्षा मिली हो, लेकिन मोटे तौर उनकी प्रति व्यक्ति आय और जीवन गुणवत्ता सुधर के स्तर पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकि है। बेरोज़गारी और घटती आमदानी ग्रामीण भारत में एक बड़ी समस्या बनी हुई है। नयी सरकार को ‘वेलफेयर स्टेट’ के ऐसी संकल्पना पे काम करना होगा जो सामाजिक सुरक्षा के साथ, नए रोज़गार सृजन और जीवन स्तर में दूरगामी सुधार को मज़बूती दे। तब जाकर सबका साथ, सबका विकास सबका विश्वास का मंत्र पूरा होगा.
पांचवी बात गठबंधन सरकारों और क्षेत्रीय दलों के उदय से जुड़ी हुई है. चुनाव परिणामों ने तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तमिलनाडु में डीएमके के अलावा कई और छोटे क्षेत्रीय दलों को संसद में प्रतिनिधित्व दिया है. ऐसा माना जाता है कि क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्रीय मुद्दों और हितों पर अधिक मुखर रहते हैं.
इस जनादेश के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे हम राष्ट्रीय हितों और क्षेत्रीय मुद्दों के बीच एक बेहतर सामंजस्य और सहयोग बैठ पाएंगे. इसका परिणामं केंद्र राज्य संबंधों और भारतीय संघवाद के ढांचे पर भी रहेगा। इस स्थिति में राज्य केंद्र पर अधिक वित्तीय सहयोग की मांग करेंगे, जिसके अपने राजनितिक मायने होंगे। अब जब गठबंधन सरकार में दूसरे दल भी अपनी उपस्थित दर्ज़ कराएंगे तो सरकार के कामकाज और निति पर उनकी भी जवाबदेही रहेगी। न सिर्फ उन्हें अपने राज्य बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी जिम्मेदार और प्रभावी रहना होगा।
पिछले 10 वर्ष के मोदी शासन के बाद इन चुनाव परिणामों ने गठबंधन सरकार के फार्मूले को पुनः जीवित कर दिया. कुछ लोग इसे राजनीतिक अस्थिरता और ढुलमुल नीति से जोड़कर देख रहे हैं. परंतु हमें याद रखना होगा की गठबंधन सरकारों ने भी इस देश में बड़े निर्णय और बदलाव किए हैं. नरसिंह राव के नेतृत्व में नए आर्थक सुधार, अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में परमाणु परीक्षण और डॉक्टर मनमोहन सिंह के नेतृत्व में न्यूक्लियर डील जैसे बड़े फैसले गठबंधन सरकारों ने ही राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर लिए हैं.
सरकार के चरित्र से अधिक सरकार का नेतृत्व उसकी राजनीतिक कार्यों और नीतियों की सफलता को निर्देशित करता है. इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक अनुभव और प्रशासनिक कार्य कुशलता के आधार पर राजग गठबंधन, विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में अधिक समर्थवान होगा.
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