प्रकृति का मिजाज साल दर साल बदल रहा है और इसी के साथ प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला भी बढ़ा है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैसे तो दुनियाभर में बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन होते रहे हैं। 2015 में पेरिस सम्मेलन में 197 देशों ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए अपने-अपने देश में कार्बन उत्सर्जन कम करने और 2030 तक वैश्विक तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री तक सीमित करने का संकल्प लिया था किन्तु धरती का तापमान जिस प्रकार बढ़ रहा है, ऐसे में इस वास्तविकता को नहीं नकारा जा सकता कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मौसम के बिगड़ते मिजाज को लेकर चर्चाएं और चिंताएं तो बहुत होती हैं, तरह-तरह के संकल्प भी दोहराये जाते हैं किन्तु सुख-संसाधनों की अंधी चाहत, सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा करने के दबाव के चलते इस तरह की चर्चाएं और चिंताएं अर्थहीन होकर रह जाती हैं।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों द्वारा चेतावनी देते हुए कहा गया है कि आगामी पांच वर्षों में दुनिया पर वैश्विक तापमान में खतरनाक वृद्धि का संकट मंडरा रहा है और यह वृद्धि 2015 में पेरिस समझौते में संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित डेढ़ डिग्री सेल्सियस का भी रिकॉर्ड तोड़ सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि 2025 तक कम से कम एक साल अब तक का सबसे ज्यादा गर्मी वाला साल होगा, जो वर्ष 2016 की रिकॉर्ड गर्मी को भी पीछे छोड़ देगा।
पर्यावरण की सुरक्षा तथा संरक्षण के उद्देश्य से ही प्रतिवर्ष 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा 16 जून 1972 को स्टॉकहोम में पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए यह दिवस मनाने की घोषणा की गई थी और पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1974 को मनाया गया था। 19 नवम्बर 1986 को भारत में ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम’ लागू किया गया। हालांकि विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने का वास्तविक लाभ तभी है, जब हम इस आयोजन को केवल रस्म अदायगी तक ही सीमित न रखें बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए इस अवसर पर लिए जाने वाले संकल्पों को पूरा करने हेतु हरसंभव प्रयास भी करें। दरअसल धरती का तापमान वर्ष दर वर्ष जिस प्रकार बढ़ रहा है, उसे देखते हुए वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान बढ़ने से हीटवेव, अत्यधिक वर्षा, पानी की कमी जैसी समस्याएं पूरी दुनिया में विकराल रूप ले सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान का दुष्प्रभाव अब समय-समय पर भयानक चक्रवाती तूफानों के रूप में भी देखा जाने लगा है। हाल ही में आया ‘रेमल’ चक्रवाती तूफान भी इसी का असर था। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि जलवायु संकट के साथ अरब सागर में तीव्र चक्रवाती विक्षोभ का सिलसिला चलता रहेगा। चक्रवाती तूफानों का बढ़ता सिलसिला, बाढ़, सूखा, जंगलों में लगने वाली भीषण आग तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं में तेजी, ये सब जलवायु में हो रहे बदलावों का ही बड़ा असर है। फिलहाल न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी तथा मौसम का बिगड़ता मिजाज समस्त मानव जाति के लिए गंभीर चिंता का विषय बना है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक अब अरब सागर अधिकाधिक अशांत होता जा रहा है और अरब सागर में चक्रवात अपेक्षाकृत असामान्य हैं। आईएमडी सहित जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि बंगाल की खाड़ी की तुलना में अरब सागर में चक्रवातों की तीव्रता में ज्यादा वृद्धि हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार 1890 के दशक के बाद 2011 से 2022 के बीच अरब सागर में चक्रवातीय घटनाएं ज्यादा हुई हैं। विकास के नाम पर प्रकृति के साथ किए जा रहे भयानक खिलवाड़ के ही कारण धरती लगातार गर्म हो रही है और ऐसी घटनाओं की तीव्रता बढ़ रही हैं, जिनमें अरबों-खरबों रुपये का नुकसान होता है, अनेक लोग मारे जाते हैं और ऐसी आपदाओं में लाखों लोग देखते ही देखते बेघर हो जाते हैं।
महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पृथ्वी का तापमान बढ़ते जाने के प्रमुख कारण क्या हैं? इसका सबसे अहम कारण है ग्लोबल वार्मिंग, जो तमाम तरह की सुख-सुविधाएं और संसाधन जुटाने के लिए किए जाने वाले मानवीय क्रियाकलापों की ही देन है। पैट्रोल, डीजल से उत्पन्न होने वाले धुएं ने वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड तथा ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा को खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वातावरण में पहले की अपेक्षा 30 फीसदी ज्यादा कार्बन डाईऑक्साइड मौजूद है, जिसकी मौसम का मिजाज बिगाड़ने में अहम भूमिका है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि पृथ्वी का तापमान इसी प्रकार बढ़ता रहा और अगले तीन दशकों में पृथ्वी के तापमान में वृद्धि पांच डिग्री तक दर्ज की जाती है तो इससे एक ओर जहां जंगलों में आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी, वहीं धरती का करीब 20-30 प्रतिशत हिस्सा सूखे की चपेट में आ जाएगा और एक चौथाई हिस्सा रेगिस्तान बन जाएगा, जिसके दायरे में भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य अमेरिका, दक्षिण आस्ट्रेलिया, दक्षिण यूरोप इत्यादि आएंगे। धरती का तापमान बढ़ते जाने का ही परिणाम है कि ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ पिघल रही है, जिससे समुद्रों का जलस्तर बढ़ने के कारण दुनिया के कई शहरों के जलमग्न होने की आशंका जताई जाने लगी है।
जहां तक पर्यावरण प्रदूषण की बात है, विश्वभर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण प्रतिवर्ष तरह-तरह की बीमारियों के कारण लोगों की मौतों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, यहां तक कि बहुत से नवजात शिशुओं पर भी प्रदूषण के गंभीर दुष्प्रभाव अब स्पष्ट देखे जाने लगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रतिवर्ष विश्वभर में प्रदूषित हवा के कारण करीब सत्तर लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। अनेक दुर्लभ प्राकृतिक सम्पदाओं से भरपूर हमारी पृथ्वी प्रदूषित वातावरण के कारण ही अपना प्राकृतिक रूप खोती जा रही है। बहरहाल, प्रतिवर्ष सामने आ रही भयंकर आपदाओं को झेलने के बाद कम से कम अब तो पूरी दुनिया को समझ लेना चाहिए कि यदि मानवीय क्रियाकलापों के कारण धरती का तापमान इसी प्रकार साल दर साल बढ़ता रहा तो आने वाले वर्षों में समस्त मानव जाति को इसके बेहद गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहना होगा। प्रकृति से खिलवाड़ कर पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर यदि हम स्वयं इन समस्याओं का कारण बने हैं और गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं को लेकर वाकई चिंतित हैं तो इन समस्याओं का निवारण भी हमें ही करना होगा ताकि हम प्रकृपि के प्रकोप का भाजन होने से बच सकें।
अब यह हमें ही तय करना है कि पृथ्वी जिस प्रकार अकाल मृत्यु की ओर बढ़ रही है, ऐसे में हम किस युग में जीना चाहते हैं? एक ऐसे युग में, जहां सांस लेने के लिए प्रदूषित वायु होगी और पीने के लिए प्रदूषित और रसायनयुक्त पानी तथा ढ़ेर सारी खतरनाक बीमारियों की सौगात या फिर एक ऐसे युग में, जहां हम स्वच्छंद रूप से शुद्ध हवा और शुद्ध पानी का आनंद लेकर एक स्वस्थ एवं सुखी जीवन का आनंद ले सकें। यदि हम वास्तव में पृथ्वी को खुशहाल देखना चाहते हैं और चाहते हैं कि हम धरती मां के कर्ज को थोड़ा भी उतार सकें तो यह केवल तभी संभव है, जब वह पेड़-पौधों से आच्छादित, जैव विविधता से भरपूर तथा प्रदूषण से सर्वथा मुक्त हो और हम चाहें तो सामूहिक रूप से यह सब करना इतना मुश्किल भी नहीं है। बढ़ते पर्यावरणीय खतरों के मद्देनजर हमें हमारे स्वास्थ्य, परिवारों और आजीविका की रक्षा करने के लिए एकजुट होकर गंभीर प्रयास करने होंगे क्योंकि हरा-भरा भविष्य ही एक समृद्ध भविष्य है।
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