देहरादून: राजधानी और आसपास में नदियां नाले सब जगह सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे ही कब्जे, इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अब प्रशासन पर एक्शन लेना शुरू कर दिया है, जिला अधिकारी सहित अन्य अधिकारियों पर एक एक लाख का जुर्माना वसूला है और इसे प्रशासनिक लापरवाही माना है।
देहरादून प्रशासन ,नगर निगम और एमडीडीए अब 2016 के बाद हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए अवैध कब्जेदारों को नोटिस देकर कब्जा हटाने की कारवाई कर रहा है, अभी तक दो दर्जन कच्चे पक्के मकान ध्वस्त किए गए है। जबकि 2016 के बाद के 500 से ज्यादा अतिक्रमण प्रशासन द्वारा चिन्हित हुए हैं।
2016 से पहले के अतिक्रमण की बात इस लिए नहीं की जा रही क्योंकि तत्कालीन सरकार ने रिस्पना और बिंदाल बरसाती नदियों किनारे हुए अतिक्रमण को मलिन बस्तियों का रूप देते हुए इन्हें रेगुलाइज किए जाने का फैसला लिया था। देहरादून के बीच बहने वाली ये बरसती नदियां अब नाले में तब्दील हो चुकी हैं और इसके किनारे बदसूरत बस्तियां, राजनेताओं की राजनीति का अखाड़ा बन चुकी हैं। तुष्टिकरण, वोट बैंक की राजनीति ने यहां बाहरी लोगो को बसने दिया जो कि अब देहरादून की सबसे बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है।
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एनजीटी का मानना है कि ये अवैध अतिक्रमण नदी के फ्लड जोन में है और एक दिन कोई बड़ा जान-माल का नुकसान हो सकता है। नदी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि नदियां तीस पैंतीस साल में अपने पुरानी मार्ग पर जरूर लौट कर आती है,इस लिए बिंदाल और रिस्पना में भी हमेशा खतरा बना रहेगा।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में रिस्पना रिवर फ्रंट को बनाए जाने को रखा था, लेकिन उनकी सरकार के जाते ही ये योजना भी मलिन बस्ती के कूड़े के ढेर में तब्दील हो गई। एनजीटी ने इन नदियों के अतिक्रमण को नहीं हटाने पर देहरादून की डीएम और अन्य अधिकारियों पर एक एक का जुर्माना डाला और आगे अतिक्रमण नहीं हटाने पर उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अग्रिम कार्रवाई के लिए निर्देशित भी कर दिया है।
उधर इस अतिक्रमण को बचाने के लिए राजनीति भी शुरू हो चुकी है, स्थानीय निकाय चुनाव नजदीक है, विधायक, मंत्री, विपक्षी दलों के नेताओ को इसमें अपना जनाधार दिखता है लिहाजा वो, प्रशासन की अतिक्रमण हटाओ कार्रवाई को रोकने के लिए अपने अपने प्रभाव का इस्तेमाल भी कर रहे हैं।
प्रशासन के आगे एक तरफ कुआं एक तरफ खाई जैसी कहावत चरितार्थ हो रही है, एक तरफ राजनीतिक प्रभाव तो एक तरफ एनजीटी के भय उन्हें सता रहा है। बताया जाता है कि एनजीटी बेहद सख्त कारवाई का संकेत दे चुकी है। ऐसे में अतिक्रमण हटाना प्रशासन की मजबूरी बन चुका है।
रिस्पना नदी पर सर्वाधिक अवैध कब्जे
जानकारी के मुताबिक विधानसभा के पीछे से बहने वाली रिस्पना नदी की खूबसूरती कभी देहरादून की शान होती थी, इस नदी के 13 किमी क्षेत्र में 27 मलिन बस्तियों बन चुकी है। बिंदाल और रिस्पना में 129 बस्तियां चिन्हित हुई है जिनमें करीब 40 हजार लोग, सरकार की जमीन पर अतिक्रमण करके बैठे हुए हैं।
कांग्रेस की सरकार ने दिया था संरक्षण
राज्य और राजधानी बनने के बाद हजारों लोग यहां अवैध रूप से बाहरी प्रदेशों से यहां आकर बसते चले गए, जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय से थे। 2016 में हरीश रावत सरकार ने वोट बैंक की लालच में अपने स्थानीय विधायको पार्षदों के कहने पर इन मलिन बस्तियों को रेगुलाइज करने का जिओ जारी कर दिया, जिसके बाद से ये अवैध कब्जे की जमीन 100-100 के स्टांप पेपर पर बिकने लगी। 2017 में जब बीजेपी सरकार आई तो एक हाई कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका पर एक आदेश के बाद इन बस्तियों के नियमितीकरण की प्रकिया पर रोक लगानी पड़ी। अब इस पर एनजीटी भी संज्ञान ले रहा है, जिसके बाद प्रशासन को अतिक्रमण हटाना पड़ रहा है।
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