तनाव, विग्रह, क्रूरता व हिंसा से भरे वर्तमान समाज में भगवान बुद्ध का दर्शन आज कहीं अधिक प्रासंगिक है। मानव के प्रति उनकी अपार करुणा, निष्ठुरता को पिघला देने वाली गहरी संवेदना समस्याओं के घिरे वर्तमान समाज के लिए अमृत संजीवनी है। भगवान बुद्ध के अंतर में प्रवाहित शांति की अज्रसधारा से निकलीं उनकी सरल, व्यावहारिक व मन को छू लेने वाली शिक्षाएं व्यक्ति को समाधान की ओर ले जाती हैं। 563 ईसा पूर्व वैशाख माह की पूर्णिमा को पावन तिथि को अवतरित इस महामानव ने समूची दुनिया को साहचर्य का पाठ पढ़ाया। बैसाख पूर्णिमा (बुद्ध जयंती) के मौके पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों के बारे में –
लुम्बनी वन
नेपाल की तराई में कपिलवस्तु के निकट स्थित लुम्बिनी वन समूची दुनिया में महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली के रूप में विख्यात है। तथागत की जन्मस्थली होने के कारण लुम्बिनी वन को बौद्ध धर्म में बेहद महत्त्वपूर्ण तीर्थ माना जाता है। बौद्ध धर्म के लिए यह एक बेहद विशिष्ट जगह है क्योंकि यहां 563 ईसा पूर्व में इसी लुम्बिनी वन में महारानी महामाया के गर्भ से राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म हुआ था। इसकी पुष्टि करता है यहां सम्राट अशोक द्वारा स्थापित कराया गया एक प्रस्तर स्तम्भ जिस पर यह शब्द उत्कीर्ण हैं कि “भगवान बुद्ध का जन्म यहां हुआ था।” इस स्तम्भ के अतिरिक्त लुम्बिनी वन में राजकुमार सिद्धार्थ की मां का समाधि स्तूप दर्शनीय स्थल है। चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा विवरणों में लुम्बिनी वन का वर्णन का उल्लेख किया है। माना जाता है कि हूणों के आक्रमणों के पश्चात यह स्थान गुमनामी के अंधेरे में खो गया था। वर्ष 1866 ई. में इस स्थान को पुन: खोज निकाला गया।
बोध गया
बिहार प्रांत में स्थित बोधगया बौद्ध धर्म का सर्वाधिक लोकप्रिय तीर्थस्थल है। उल्लेखनीय है कि इस बौद्ध तीर्थ को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है। मान्यता है कि गौतम बुद्ध ने यहीं पर फल्गू नदी के किनारे बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। तीन दिन तक लगातार तपस्या के बाद बैसाख पूर्णिमा के दिन उन्हें आत्म ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसी कारण बौद्ध धर्मावलम्बी महात्मा बुद्ध की इस दिव्य साधनास्थली को बौद्ध सभ्यता का केन्द्र बिन्दु मानते हैं। महात्मा बुद्ध के महाप्रयाण के पश्चात मौर्य शासक सम्राट अशोक ने यहां सैकडों मठों का निर्माण कराया था। बोध गया का महाबोधि मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला के लिए भी समूची दुनिया में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की पद्मासन की मुद्रा में अति सुंदर मूर्ति स्थापित है। भगवान बुद्ध की जुड़ी शिक्षाओं से जुड़ा बोध गया अपने आध्यात्मिक महत्त्व के कारण विश्वविख्यात है। नये साल और बुद्ध जयन्ती के अवसर पर यहां विशेष प्रार्थना सभाओं का आयोजन होता है जिनमें दुनियाभर के बौद्ध श्रद्धालु भारी संख्या में शिरकत करते हैं।
राजगीर
बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित बौद्ध तीर्थ राजगीर में भगवान बुद्ध के भस्मावशेष संरक्षित हैं। अपने अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य के साथ भगवान बुद्ध से जुड़े होने के कारण राजगीर को अहम बौद्ध तीर्थ की महत्ता हासिल है। बौद्ध साहित्य के विवरणों के मुताबिक यहां स्थित शांति स्तूप पर भगवान बुद्ध ने कई महत्वपूर्ण उपदेश दिए थे। भगवान बुद्ध के मोक्ष उपरांत बौद्ध धर्मावलंबियों ने प्रथम धार्मिक सम्मेलन राजगीर पर्वत की गुफा में आयोजित किया था, जहां पालि साहित्य की शैली में “त्रिपिटक ग्रंथ” की रचना की गयी थी। प्राचीन बौद्ध पर्यटक स्थल, गृद्धकूट पर्वत, वेणुवन, गर्म जल के झरने, स्वर्ण भंडार और जैन मंदिर दार्शनिक स्थल हैं। राजा बिम्बसार और अजातशत्रु के साथ सान्निध्य के कारण इस स्थान का महत्व और भी बढ़ जाता है।
संकश्या
उत्तर प्रदेश के एटा जिले के बसंतपुर नगर में स्थित सांकाश्य अथवा “संकश्या” की प्रसिद्धि एक प्रमुख बौद्ध धार्मिक स्थली की है। यहां अनेक बौद्ध स्तूप और विहार हैं। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध के जीवनकाल में यह एक प्रमुख नगर था। इसी जगह भगवान बुद्ध ने स्त्रियों के लिए बौद्ध संघ के द्वार खोले थे। बौद्ध धर्म की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्ता के दृष्टिकोण से इस जगह का विशेष महत्व है। प्राचीन दंतकथाओं के अनुसार संकश्या में भगवान बुद्ध ने अवतार लिया था। पाली दंतकथाओं के अनुसार बुद्ध यहां स्वर्ग से उतरे थे और उनके साथ ब्रह्मा जी भी थे। इसी कारण बौद्ध श्रद्धालु संकश्या को अत्यंत पवित्र तीर्थ मानते हैं। संकश्या का वर्णन चीनी साहित्यकारों की रचनाओं में भी मिलता है। चीनी यात्री युवानच्वांग ने 7वीं शती में संकश्या में स्थित एक 70 फुट ऊंचे स्तम्भ का उल्लेख किया है, जिसे राजा अशोक ने बनवाया था। बैंगनी रंग का यह स्तम्भ इतना चमकदार था कि जल से भीगा सा जान पड़ता था। भगवान बुद्ध के अवतार, उपदेश देने आदि के कारण संकश्या बौद्ध धर्म का बेहद महत्वपूर्ण और धार्मिक स्थल माना जाता है।
श्रावस्ती
उत्तर प्रदेश में स्थित श्रावस्ती एक प्रसिद्ध बौद्ध धर्मस्थल है। इस नगरी का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। राजा श्रावस्त के नाम पर बसी श्रावस्ती बौद्ध एवं जैन दोनों का तीर्थ है। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस नगरी को भगवान राम के पुत्र लव ने बसाया था। यहां स्थित आनंद बोधि वृक्ष को बेहद विशिष्ट माना जाता है। कहा जाता है कि इस पेड़ के नीचे एक रात ध्यान लगाने से जातक को भगवान बुद्ध द्वारा आशीष मिलता है। यहां स्थित जेटवन मंदिर भी बेहद मान्यताओं वाला माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने यहां कई चमत्कार दिखाये थे एवं यहां कई उपदेश दिए थे। यहां स्थित बौद्ध मंदिर और मठ दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। बौद्ध धर्म की दंतकथाओं में भी श्रावस्ती बेहद लोकप्रिय है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार भगवान बुद्ध ने इस स्थान पर एक लंबा समय बिताया था। उन्होंने इस स्थान पर अनेक प्रवचन व उपदेश दिये थे।
कुशीनगर
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले को महात्मा बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली की मान्यता हासिल है। सम्राट अशोक ने यहां अनेक स्तूपों और मठों का निर्माण कराया था जिनमें से अनेक आज भी मौजूद हैं। कुशीनगर में भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण मंदिर श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की छह मीटर लम्बी लेटी भव्य प्रतिमा स्थापित है। साथ ही यहां रामभर स्थल पर एक निर्वाण स्तूप भी है जहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यहां एक शानदार बौद्ध संग्रहालय भी है जिसमें कई बौद्ध वस्तुओं को रखा गया है। इन वस्तुओं का अध्ययन करने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। इस बौद्ध स्थल पर हर वर्ष बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर एक विशाल मेला लगता है।
नालंदा
भारत के इतिहास में नालंदा एक शैक्षिक राज्य के रूप में वर्णित है। नालंदा विश्वविद्यालय अपनी शैक्षिक योग्यताओं के कारण समूची दुनिया में बेहद प्रसिद्ध था। नालंदा विश्वविद्यालय के साथ बौद्ध धर्म के कई तार भी जुड़े हैं। माना जाता है कि भगवान बुद्ध बार-बार यहां आये थे। पांचवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच नालंदा को बौद्ध शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में भी जाना जाने लगा था। सम्राट अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहां अनेक मठों, विहारों तथा मंदिरों का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि नालंदा को ख्याति दिलाने में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अहम भूमिका निभायी। उन्होंने यहां हजारों बौद्ध भिक्षुओं द्वारा अपनायी गयी अद्भुत व असाधारण शिक्षा प्रणाली के बारे में विस्तार से लिखा।
सांची
सांची मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है। यह स्थान अपने स्मारकों और बौद्ध स्तूपों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। सांची के स्तूप बेहद प्राचीन माने जाते हैं। बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए यह पावन तीर्थ माना जाता है। महान सम्राट अशोक के शासन काल में बने सांची के स्तूपों का बौद्ध धर्म से गहरा संबंध है। कई लोग मानते हैं कि महात्मा बुद्ध खुद कभी भी यहां नहीं आएं। लेकिन यहां मौजूद महात्मा बुद्ध के अवशेष इसे महत्वपूर्ण बनाते हैं। प्राचीन काल में सांची को “विदिशागिरी” के नाम से जाना जाता था। बौद्ध सम्राट अशोक के समय में यह प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था। कई लोग मानते हैं कि इस जगह पर राजा अशोक को एक लड़की से प्रेम हुआ था और उसी की प्रेरणा से अशोक ने सांची के सुंदर स्तूपों का निर्माण कराया। सांची के प्रवेश द्वार एवं स्तूपों की वास्तुकला अद्भुत और सुंदर है। यह भारत में सबसे शानदार एवं आश्चर्यजनक बौद्ध केन्द्रों में से एक माना जाता है। सांची के स्तूप शांति, पवित्रता, धर्म और साहस का प्रतीत माने जाते हैं। सम्राट अशोक ने इनका निर्माण बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु कराया था। आज भी इस स्थान का मुख्य आकर्षण बौद्ध भिक्षु और बौद्ध धर्म से जुड़ी चीजें हैं।
सारनाथ
उत्तरप्रदेश में वाराणसी के पास सारनाथ बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान के रूप में विख्यात है। भारत के राष्ट्रीय चिह्न चतुर्मुख सिंह स्तम्भ की विशाल मूर्ति, भगवान बुद्ध का मंदिर, चौखंडी स्तूप आदि कई दर्शनीय और धार्मिक स्थलों के साथ सारनाथ अपने पुरातत्व महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। सारनाथ स्थित मृग विहार में ही गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद पहला उपदेश दिया था। प्रथम बौद्ध संघ की स्थापना भी यहीं की गयी थी। भारत के चार प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थलों में शुमार सारनाथ के मृग विहार में स्थित धम्मेख स्तूप पर ही गौतम बुद्ध ने “आर्य अष्टांग मार्ग” का संदेश दिया था। सारनाथ के चौखंडी स्तूप में महात्मा बुद्ध की अस्थियां संरक्षित हैं। सारनाथ के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं -अशोक का चतुर्मुख सिंघ स्तम्भ, भगवान बुद्ध का मंदिर, धम्मेख स्तूप, चौखण्डी स्तूप, मूलगंध कुटी।
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