देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वीकार किया है कि राज्य में बड़ी संख्या में बाहरी लोगों ने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किया हुआ है, इसका सत्यापन कराया जा रहा है। सीएम धामी ने दिल्ली में पत्रकारों से ये भी कहा है कि जैसे वन विभाग द्वारा जंगल में अभियान चलाया गया था वैसे ही शहरी क्षेत्र में भी सरकारी जमीनों को अतिक्रमण मुक्त कराया जाएगा। उल्लेखनीय है कि धामी सरकार ने करीब पांच हजार एकड़ सरकारी भूमि को अवैध कब्जे से मुक्त कराया गया है, पांच सौ से अधिक अवैध मजारों को ध्वस्त कराया है।
कुछ दिन पहले एमडीडीए के बुलडोजरों ने सहसपुर क्षेत्र में अवैध प्लाटिंग कर बसाई जा रही अवैध कॉलोनी को ध्वस्त कर दिया था। ये प्लाटिंग राशिद नाम के व्यक्ति द्वारा की जा रही थी, जिसके बारे में कहा जाता रहा है कि उसने पश्चिम उत्तर प्रदेश, बिहार, असम आदि के मुस्लिमों को यहां लाकर अवैध रूप से बसाया और अब वो यहां मुस्लिम सेवा संगठन के जरिए अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि को तैयार कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक, ये वही राशिद पहलवान है जिस पर शिव भक्त कांवड़ियों पर पत्थर फेंकने का आरोप है और उस पर पुलिस ने गैंगस्टर लगाई थी। सूत्रों के मुताबिक राशिद और अनीस अहमद मिलकर पछुवा देहरादून की सरकारी जमीनों को खुर्दबुर्द करने में लगें हुए हैं।
एमडीडीए ने जो कारवाई की वो सहसपुर के सभावाला के 40 बीघा पर अवैध कब्जे पर की, जहां कभी आम का बाग था उसे उजाड़ दिया गया। यहां राशिद पहलवान अवैध रूप से प्लाट बनाकर बेच रहा था, एमडीडीए सूत्रों के मुताबिक, इस भूमि तक जो रास्ता बनाया जा रहा था वो सहसपुर के ग्राम प्रधान अनीस अहमद की अवैध प्लाटिंग के आगे से जा रहा था, इस मार्ग को भी एमडीडीए ने ध्वस्त कर दिया है। अनीस अहमद के जन्म और शिक्षा दस्तावेजों को लेकर भी मामला चल रहा है। ऐसा बताया जाता है कि उत्तराखंड का मूल निवासी नहीं है। अनीस पर भी मुस्लिमों को अवैध रूप से अपने क्षेत्र में बसाने और उनके उत्तराखंड संबंधी दस्तावेज बनाए जाने का आरोप लगता रहा है।
बहरहाल, पछुवा देहरादून में एमडीडीए की कार्रवाई अभी रत्ती भर है, यदि यहां जिला प्रशासन एमडीडीए वन विभाग के साथ मिलकर संयुक्त आपरेशन चलाए तो कई चेहरे बेनकाब हो जाएंगे और इन्हें राजनीतिक संरक्षण देने वाले भी सामने आने लगेंगे।
पछुवा देहरादून में जनसंख्या असंतुलन
हिमाचल और यूपी सीमा के बीच बसा हुआ पश्चिम देहरादून जिले का क्षेत्र जिसे पछुवा दून भी कहते हैं। यहां डेमोग्राफी चेंज की समस्या उत्तराखंड सरकार के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। यूपी से आई मुस्लिम जनसंख्या ने यहां की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बसावट करती जा रही है, ग्राम सभा की जमीनों पर मुस्लिम आबादी को बसाने में स्थानीय मुस्लिम ग्राम प्रधानों, प्रधान पतियों की भूमिका सामने आई है। बाहर से आई मुस्लिम आबादी ने पछुवा दून की नदी, नहरों के किनारे, वन विभाग की जमीनों पर अवैध रूप से कच्चे पक्के मकान खड़े कर लिए हैं। अब इनके आधार कार्ड, वोटर लिस्ट में नाम दर्ज किए जा रहे हैं और इनमें ग्राम प्रधानों और जिला पंचायत सदस्यो की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।
पछुवा देहरादून के गांव के गांव जो कभी हिंदू बाहुल्य हुआ करते थे वो अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए हैं। आबादी की घुसपैठ का ये खेल हरीश रावत कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ जो अब तक बराबर चल रहा है। इन ग्रामों में मुस्लिम प्रधानों की हुकूमत चल रही है जो कभी भी मूल रूप से उत्तराखंड के निवासी थे ही नहीं। यूपी,बिहार, असम,बंगाल,यहां तक की बांग्लादेशी, म्यांमार की रोहिंग्या मुस्लिम आबादी यहां पछुवा दून में आकर कैसे बसती चली गई? ये बड़ा सवाल है।
देहरादून जिले में प्रेम नगर से हिमांचल पोंटा साहिब तक तक जाने वाली शिमला बाई पास, चकराता रोड के आसपास के इलाकों में देवभूमि उत्तराखंड का सामाजिक,आर्थिक धार्मिक स्वरूप बिगड़ चुका है। मुख्य मार्गों पर फड़ खोको के कब्जे हैं और उनके पीछे अवैध रूप से आबादी बस चुकी हैं। सरकारी जमीनों पर सौ से ज्यादा मस्जिदों मदरसों की ऊंची मीनारें दिखाई देती है। आखिर ऐसा कैसे हुआ कि पिछले कुछ सालों में ये इलाका एक दम बदल गया और यहां हिंदू अल्पसंख्यक होते चले गया और मुस्लिम आबादी ने पूरे क्षेत्र को घेर लिया।
उत्तराखंड का लचर भू कानून इसकी बड़ी वजह
जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड यूपी की सीमा वाला ये क्षेत्र हिमाचल से लगता है, हिमाचल ने सख्त भू कानून की वजह से कोई भी बाहरी व्यक्ति वहां जमीन नहीं खरीद सकता और न ही कब्जे कर सकता है। मुस्लिम आबादी वहां बाग बगीचे में कारोबार करने जाती है और अस्थाई रूप से रहती है और वापिस चली जाती है। किंतु उत्तराखंड में ऐसा नहीं है जिसका फायदा उठाते हुए बाहरी राज्यों के मुस्लिमों ने इस क्षेत्र में अपनी अवैध बसावट कर ली और जहां मौका मिला वहां जमीनों पर कब्जे कर लिए।
पहले कुछ मुस्लिम यहां हिंदू बाहुल्य गांवों में आकर बसे धीरे धीरे वो अपने साथ अपने रिश्तेदारों को लाकर बसाने लगे फिर वो धन बल और वोट बैंक के बलबूते ग्राम प्रधान बनते चले गए और उन्होंने ग्राम सभा की सरकारी जमीनों पर अपने और मुस्लिम रिश्तेदारों को लाकर बसाना शुरू कर दिया ताकि उनका वोटबैंक और मजबूत होता जाए। यहीं मस्जिदें बनी और मदरसे खुलते चले गए यानि सरकारी जमीनों को कब्जाने का षड्यंत्र रचा गया जो आज भी जारी है।
अवैध कब्जे करने का खेल सरकार की सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर भी धन बल और वोट बैंक की राजनीति के दम खम पर आज भी चल रहा है और इसमें सत्ता पक्ष विपक्ष के नेताओं का संरक्षण भी मिलता रहा है। राजनीति संरक्षण के पीछे बड़ी वजह यहां की नदियों में चल रहा वैध अवैध खनन है जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है जो कि यहां के राजनीति से जुड़े नेताओं को धन बल की आपूर्ति करते हैं।
उत्तराखंड सरकार या शासन ग्राम सभाओं की जमीनों की जिस दिन गंभीरता से जांच करवा लेगी तो उसे मालूम चल जाएगा कि उसकी ग्राम सभाओं की जमीन आखिर कहां चली गई? कहां बिक-बिका का ठिकाने लगा दी गई?
ढकरानी में शक्ति नहर किनारे अवैध कब्जे हुए, धामी सरकार ने तीन चरणों में ये अतिक्रमण भी ध्वस्त किए और इसमें कई धार्मिक स्थल भी हटाएं। उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने अपनी जमीन तारबाड़ से सुरक्षित नहीं की, अब यहां उत्तराखंड सरकार को सोलर प्रोजेक्ट लगाने है तो देहरादून जिला प्रशासन का बुल्डोजर गरजने लगा, यहां एक हजार से ज्यादा मकान ध्वस्त किए। लेकिन, यहां रहने वाली आबादी उत्तराखंड छोड़ कर नहीं गई वो आसपास ही मुस्लिम नेताओं के संरक्षण में फिर से अवैध कब्जे कर रही है और इस बार वो पीडब्ल्यूडी,वन विभाग की जमीनों पर बस रही है।
इसी तरह सहसपुर,जीवन गढ़, तिमली,हसनपुर कल्याणपुर, केदाखाला, सरबा , सभावाला आदि ग्रामों की हालत है जहां ग्राम सभाओं की सरकारी जमीन पर मुस्लिम आबादी यहां के प्रधानों ने लाकर बसा दी है।
प्रधानों के फर्जी दस्तावेज
ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी दस्तावेजों के जरिए ही अपना कार्यकाल काट लिया और इनके मामले अदालती कारवाई में लटके हुए है। इन्हे राजनीति संरक्षण सत्ता और विपक्ष दोनों का मिला क्योंकि ये उनके स्वार्थ की पूर्ति करते रहे हैं।
दिल्ली और देवबंद से चलता है धार्मिक संरक्षण का खेल
जानकार बताते हैं कि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से यहां हो रहा है और इसके पीछे राजनीतिक हस्तियां ही नहीं धार्मिक शक्तियां भी काम कर रही हैं। दिल्ली देवबंद की इस्लामिक संस्थाएं यहां पूरी तरह से मस्जिदों मदरसों में सक्रिय है और जमात के जरिए यहां मुस्लिम समुदाय को संचालित किया जा रहा है। मुस्लिम सेवा संगठन और अन्य संगठनों के माध्यम से राजनीति धार्मिक ताकत को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। ग्राम सभाओं पर इनका नियंत्रण हो चुका है आगे जिला पंचायत,फिर विधान सभा सीटों में इनका असर दिखाई देगा। यहां बने मदरसों और धार्मिक स्थलों ने नदी नालों की जमीनों तक अवैध रूप से कब्जे किए हुए हैं। यहां अवैध रूप से निर्माण कार्य चल रहे हैं, जिस पर प्रशासन खामोश है।
ऐसे ही नही यहां यहां मुस्लिम राजनीतिक पार्टी या मुस्लिम यूनिवर्सिटी की आवाज़ पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान सुनाई दी थी। इसके पीछे बहुत बड़ी साजिश दिखलाई देती है।
वन विभाग के अधिकारी खामोश
पछुवा देहरादून में नदियों किनारे अवैध रूप से बसाए गए लोगों को हटाने के आदेश कई बार मुख्यमंत्री कार्यालय से दिए गए, किंतु इसका असर क्षेत्र के डीएफओ, वन निगम के अधिकारियों में नहीं दिखाई दिया, कभी फोर्स न होने देने का बहाना तो कभी वीआईपी ड्यूटी के बहाने देकर ये अभियान ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं। विभागीय लापरवाही का आलम ये है कि अभी तक सरकारी विभागों ने इन अवैध कब्जेदारों को नोटिस तक जारी करने की जहमत नहीं उठाई। वन विभाग,एमडीडीए ,शहरी विकास की एक दिन की कार्रवाई की नहीं कई माह तक लगातार कारवाई करने पर ही कोई परिणाम सामने आ सकते हैं।
अर्बन एरिया में सैकड़ों मजारे
सरकार ने वन क्षेत्र से तो अवैध मजारें हटवा दी किंतु शहरी क्षेत्र में सैकड़ों अवैध मजारें अभी भी है। ये धार्मिक चिन्ह सरकारी जमीन पर कब्जा करने की नियत से ही बनाए जाते हैं। देहरादून जिले में ही सौ से अधिक मजारे हैं, तीर्थ नगरी हरिद्वार का जिला भी मजारों के अवैध कब्जे से त्रस्त है।
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