दिल्ली में अरविन्द की आम आदमी पार्टी का जब गठन नहीं हुआ था, उस समय यह राजनीतिक पार्टी एक आंदोलन बनकर पूरे देश में अपनी पहचान हासिल कर चुकी थी। एक आंदोलन जिसे देश में अन्ना आंदोलन के नाम से पहचाना गया। अन्ना को बहुत बाद में यह समझ में आया कि अरविन्द केजरीवाल ने उनका इस्तेमाल किया था। आंदोलन के बहाने से अरविन्द अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहते थे।
अन्ना हजारे ने जब अरविन्द की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए तैयार हुई राजनीतिक पार्टी से जब अपने आप को पूरी तरह अलग कर लिया। उस समय किसी ने जहर देकर उनकी हत्या का प्रयास किया था। इस बात की चर्चा मीडिया में बहुत कम हुई। वरिष्ठ पत्रकार पूण्य प्रसून वाजपेयी ने अपने ब्लॉग में लिखा और उनकी चिकित्सा से जुड़े एक व्यक्ति ने बातचीत में इस बात को कन्फर्म किया था। चिकित्सा से जुड़े व्यक्ति ने बातचीत के क्रम में बताया था कि उनके नाम के खुलासे से उनके व्यवसाय और उनकी जान को खतरा हो सकता है। अन्ना की चिकित्सा से जुड़े उस व्यक्ति ने बताया था कि कैसे गुड़गांव के एक अस्पताल के मालिक ने उन्हें फोन करके कहा कि अन्ना हजारे उनके यहां भर्ती हैं। पूरे शरीर में जहर का असर है। इसका सबसे अच्छा उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से ही हो सकता है। यह सुनने के बाद अन्ना को गुड़गांव से उन्होंने अपने पास बुला लिया। पद्म भूषण अन्ना हजारे की हत्या के इस प्रयास की कोई जांच नहीं हुई। कौन अन्ना की हत्या चाहता था, किसने उन्हें जहर देकर मारने का प्रयास किया। यह सारी बातें अब तक रहस्य हैं।
ठगे गए अन्ना हजारे
आज अन्ना हजारे भी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। वे लोगों से अपील कर रहे हैं कि सभी इस लोकसभा चुनाव में सही उम्मीदवार चुनें क्योंकि देश की चाबी गलत हाथों में नहीं जानी चाहिए। अन्ना के अनुसार, ऐसे लोगों को कभी नहीं चुनें, जिसके पीछे ईडी पड़ी हो। अन्ना ने मतदान करके लौटते समय मीडिया से यह बात कही।
अन्ना हजारे ने केजरीवाल पर शराब घोटाले को लेकर कटाक्ष किया कि हमेशा याद रखें सही उम्मीदवारों को चुनें जो सही छवि वाला राजनेता हो। जेल से लौटने के बाद, शराब माफिया वाली आम आदमी पार्टी के नेताओं की छवि को सही नहीं कहा जा सकता है। अन्ना दिल्ली की जनता को अपना साफ संदेश दे रहे हैं कि शराब के धंधे में लिप्त केजरीवाल की पार्टी से दूर रहें।
अन्ना हजारे ने इसी बात को कुछ इस तरह से कहा कि मैं दिल्ली शराब घोटाला मामले में नाम आने के लिए अरविंद केजरीवाल की कड़ी आलोचना करता हूं, क्योंकि उन्होंने यह भ्रष्टाचार किया है। अन्ना ने कहा कि ऐसे लोगों को दोबारा नहीं चुना जाना चाहिए।
कितनों दिनों की कुर्सी
दिल्ली में आम आदमी पार्टी का गठन 26 नवंबर 2012 को हुआ था। पहले पार्टी बनी और फिर दिल्ली में इनकी सरकार बन गई। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने दिल्ली वालों के सामने अपनी बेटी की कसम खाई थी कि वह कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली के मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। बाद में उन्होंने दिल्ली की कुर्सी को कांग्रेस के समर्थन से हासिल किया। दिल्ली की कुर्सी बड़े-बड़े बादशाहों की नहीं हुई। फिर बेटी की झूठी कसम खाकर दिल्ली की कुर्सी पर बैठने वाले सीएम केजरीवाल के पास कितने दिनों तक यह कुर्सी रहेगी?
उनके कुर्सी का मोह उस वक्त भी दिखाई दिया जब वे जेल में थे। भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने के बावजूद कुर्सी ना छोड़ने वाले, वे देश के पहले मुख्यमंत्री बने। दिल्ली वालों के बीच इस बात की खूब चर्चा है कि जो आदमी कुर्सी की खातिर अपनी बेटी की खाई हुई कसम का मान नहीं रख पाया, वह जेल जाने के बाद कुर्सी छोड़कर अपने सम्मान का मान क्या रखेगा?
बार-बार क्यों चुने गए कजरीवाल
अब सवाल यह है कि दिल्ली की जनता ने बार बार आम आदमी पार्टी को दिल्ली में क्यों चुना? इसकी सबसे बड़ी वजह जो सामने निकल कर आई, वह यह है कि पार्टी का चाल, चेहरा, चरित्र जनता को नहीं पता था। दिल्ली के लोग इसलिए भी धोखा खा गए क्योंकि पार्टी में कोई भी चेहरा ऐसा नहीं था, जिसकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि हो। सब नए चेहरे थे। आंदोलन के समय जुड़े एक एक व्यक्ति को अरविन्द ने पार्टी से बाहर किया। मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, सतेन्द्र जैन जैसे कुछ पुराने लोग बचे थे तो उनके लिए जेल जाने का रास्ता खुलवाया। अब स्वाति मालिवाल के लिए भी बाहर जाने का रास्ता केजरीवाल ने खोल दिया है। मतलब अरविन्द को आम आदमी पार्टी के अंदर एक तानाशाह की तरह, एक एक चीज अपने नियंत्रण में चाहिए।
अब दिल्ली को लग रहा है कि गलती हुई है। उन्होंने गलत व्यक्ति को चुन लिया। दिल्ली की सोच थी कि यह लोग गैर राजनीति वाले हैं। यह जब राजनीति में आएंगे तो राजनीति का चेहरा बदलेगा। कुछ नहीं बदला। बल्कि ‘आम आदमी’ के मुखौटे में लिपटा एक तानाशाह दिल्ली को मिल गया। जिसे रेफरेंडम का ख्याल सिर्फ जनता को धोखा देने के लिए आता है। आम आदमी पार्टी ने कभी इस बात पर रेफरेंडम नहीं कराया कि उनके मुख्यमंत्री को शीश महल में रहना चाहिए या माडल टाउन के टू-बीएचके में? उन्होंने कभी रेफरेंडम नहीं कराया कि उनके नेताओं को मोहल्ला क्लीनिक में इलाज कराना चाहिए या फिर लंदन जाकर? उन्होंने कभी रेफरेंडम नहीं कराया कि दिल्ली सरकार के नेताओं के बच्चों को कथित तौर पर देश के सर्वश्रेष्ठ दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ना चाहिए या फिर लाखों रूपये का चंदा देकर दाखिला देने वाले पब्लिक स्कूलों में? यह सब दिल्ली की जनता के सवाल थे लेकिन रेफरेंडम नहीं हुआ। धोखा सिर्फ दिल्ली वालों के साथ नहीं हुआ। धोखा तो उन अन्ना हजारे के साथ भी हुआ, जिन्होंने केजरीवाल को विश्वव्यापी पहचान दिलवाई।
हार की जीत
साहित्यकार सुदर्शन ने आज से सौ साल पहले अपनी पहली कहानी ‘हार की जीत’ में खडग सिंह और बाबा भारती का जिक्र किया था। यह कहानी उस समय की महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। यह इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है और उनकी कहानी का ठग, डाकू खडग सिंह है। उसने और पीड़ित और बीमार बनकर बाबा भारती के घोड़े सुलतान को हथिया लिया था। यह कहानी दिल्ली की राजनीति की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
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