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आग लगाने पर आमादा

‘मोहब्बत की दुकान’ में जातिवाद का जहर और अलगाववाद का सामान बेचा जा रहा है। ‘वोट जिहाद’ की अपीलें की जा रही हैं। भारत को तोड़ने के लिए सारी हदें तोड़ रहे हैं विपक्षी नेता

by प्रशांत बाजपेई
May 12, 2024, 07:22 am IST
in भारत, विश्लेषण
दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडी गठबंधन के नेता की रैली

दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडी गठबंधन के नेता की रैली

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भले ही ‘वोट जिहाद’ शब्द नया है, पर इसका इस्तेमाल करना उन्होंने भारत में चुनावी राजनीति की शुरुआत में ही सीख लिया था। हज सब्सिडी, सरकारी रोजा इफ्तार, शाहबानो-इमराना आदि प्रकरण, मुस्लिम आरक्षण, कश्मीर घाटी में हिंदुओं का नरसंहार और पलायन, राम मंदिर का विरोध, मुस्लिम पर्सनल लॉ की तरफदारी, घुसपैठियों का संरक्षण, वक्फ बोर्ड का आतंक और जमीन की अंधाधुंध लूट, इस ‘वोट जिहाद’ की बुलंद मीनारें हैं।

वे इसके साथ जातिगत विद्वेष को मिलाकर सत्ता का दस्तरख्वान बिछाते चले आए हैं। हिंदू वोट को जाति के आधार पर, उत्तर-दक्षिण के आधार पर, भाषा के आधार पर छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटना और मुस्लिम वोट को इस्लाम के नाम पर इकट्ठा करना इस ‘सेकुलर’ राजनीति का ककहरा है। यह उनका आजमाया हुआ नुस्खा है, जिसने बरसों उनकी कुर्सी, वंशवाद और उनके भ्रष्टाचार की रक्षा की है।

इस तरह की विध्वंसक सियासत वामपंथ के एजेंडे पर बिल्कुल ठीक बैठती है। इसलिए वामपंथी इनके साथ तालमेल बनाकर चलते हैं, और जब इन्हें दिक्कत में देखते हैं, अपनी सेवाएं बेचने हाजिर हो जाते हैं। इसी घालमेल में से निकला है इंडी गठबंधन। नया केवल इतना है कि इस चुनाव को वे अपने अस्तित्व की लड़ाई मानकर लड़ रहे हैं, और इसलिए यह पूरा धड़ा उन्मादी हो उठा है। कांग्रेस इसकी अगुआ है। आखिरकार ये सारे पैंतरे उसी ने ईजाद किए थे।

शिक्षा को आग में झोंकने की तैयारी

लोकसभा के लिए चुनाव प्रचार पर निकले राहुल गांधी, मरणासन्न कांग्रेस की छाती पर बैठे, उसे जातिवाद का टॉनिक पिलाकर जिलाने की उम्मीद कर रहे हैं। इस कोशिश में समाज में वे जहर घोलने में लगे हैं। आईआईटी, जेईई परीक्षा के संबंध में राहुल ने मतदाताओं के बीच बैठकर जो कहा, उसे सिर्फ विषवमन ही कहा जा सकता है। राहुल बोले, ‘‘जेईई परीक्षा में दलित छात्र मैरिट में इसलिए नहीं आ पाते क्योंकि प्रश्नपत्र ऊंची जाति के लोग तैयार करते हैं।’’ राहुल ने आगे समझाया कि यदि प्रश्नपत्र दलित लोग तैयार करें, तो दलित छात्र मैरिट में आ जाएंगे और सामान्य वर्ग के छात्र फेल हो जाएंगे। इस हास्यास्पद, बेसिरपैर के घोर आपत्तिजनक बयान पर देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई।

राहुल के झूठ का प्रमाण है कल्पित वीरवाल। 2017 में उदयपुर, राजस्थान के कल्पित वीरवाल नामक अनुसूचित जाति के मेधावी छात्र ने जेईई की मेन्स परीक्षा में सौ प्रतिशत अंक प्राप्त कर यश अर्जित किया। कल्पित के पिता कंपाउंडर और माता सरकारी शिक्षिका हैं। कल्पित के बड़े भाई ने आल इंडिया इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंस, दिल्ली से पढ़ाई की है।

क्या कल्पित का पेपर किन्हीं जाति विशेष के शिक्षकों ने तैयार किया था, जिसके कारण कल्पित सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सका? क्या यह कल्पित जैसे मेहनती छात्र-छात्राओं की मेहनत का, चाहे वे किसी भी जाति के हों, अपमान नहीं है? वास्तविकता यह है कि जैसे-जैसे शिक्षा के महत्व का प्रचार प्रसार हो रहा है और अवसरों की उपलब्धता बढ़ रही है, अनुसूचित जाति और जनजाति में से प्रतिभाएं उभर कर सामने आ रही हैं।

राहुल गांधी ने न केवल शिक्षा जगत में जातिगत विद्वेष खड़ा करने का प्रयास किया है, बल्कि दुनिया में नाम कमा रहे भारत के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग संस्थानों को भी बदनाम करने की चाल चली है। कांग्रेस के शहजादे का ‘आईडिया’ यह है कि हर जाति के छात्र-छात्राओं के लिए, उन्हीं की जाति के शिक्षक प्रश्नपत्र तैयार करें। यही है राहुल गांधी की ‘मोहब्बत की दुकान!’

सच यह है कि कौन-सा प्रश्नपत्र किन शिक्षकों ने बनाया यह हमेशा गुप्त रखा जाता है, ताकि प्रश्नपत्र की गोपनीयता बनी रहे। राहुल यह तथाकथित जानकारी, ये आंकड़े कहां से निकाल कर लाए? प्रश्नपत्र बनाने वालों की जाति उन्हें कैसे पता चली?

चुनावी राजनीति के लिए जातिगत विद्वेष खड़ी करने के उद्देश्य से राहुल गांधी ने गैरजिम्मेदार, निर्लज्ज झूठ बोला है। इन संस्थाओं की कार्यशाली को जो लोग निकट से जानते हैं वह आपको बताएंगे कि यहां पर बिना किसी जाति का भेद किए, प्रदर्शन के आधार पर, छात्रों के दो वर्ग तैयार किए जाते हैं, और जिन छात्र-छात्राओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है उनकी तैयारी करवाई जाती है और उन्हें सब की बराबरी पर लाया जाता है।

आरक्षण का भी नियमानुसार पालन होता है। हमें आईएएस टीना डाबी का नाम भी याद है, जिन्होंने अपनी मेहनत से अपना स्थान बनाया। लेकिन राहुल गांधी और उनके पटकथा लेखकों को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं। दरअसल, वे वर्षों से चल रहे उस नक्सलवादी वामपंथी दुष्प्रचार को हवा दे रहे हैं जिसका निशाना भारत के श्रेष्ठ शिक्षा संस्थान हैं। अमेरिका, यूरोप से लेकर भारत तक के शीर्षस्थ शिक्षा संस्थानों में ये ‘वोक’ गिरोह अपना जाल फैला रहा है। इसका उद्देश्य है शिक्षा का जातीयकरण, नस्लीयकरण और सांप्रदायीकरण। इसका दूरगामी लक्ष्य समाज का विभाजन और मार्क्स प्रेरित ‘वर्ग संघर्ष’ है।

इसी का चुनावी प्रयोग है, प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के फेक वीडियो, जिनमें यह बताया जा रहा है कि मोदी और शाह आरक्षण समाप्त करना चाहते हैं। बरसों से ‘आरएसएस’ के नाम से वायरल किए जा रहे फर्जी किताबों के पन्ने और संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के नाम से बनाए और फैलाए जा रहे जाली पत्र, जिनमें संविधान को समाप्त करके अनुसूचित जाति और जनजातीय समाज को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की झूठी बातें लिखी जाती हैं। सोशल मीडिया पर ये पोस्ट चलाए जाते हैं, और इन्हीं बातों को राहुल गांधी, आम आदमी पार्टी के नेता, सपा-राजद, कम्युनिस्ट नेता, ममता, स्टालिन आदि चतुराई से दोहराते हैं।

लाश पर झूठ की राजनीति

17 जनवरी, 2016 को हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला याद करें। रोहित ने अपने अंतिम पत्र में लिखा था, ‘‘मैं इस तरह का पत्र पहली बार लिख रहा हूं। मेरा पहला और अंतिम पत्र। शायद मैं गलत था। गलत था संसार को समझने में, प्यार, दर्द, जिंदगी और मौत को समझाने में। कोई जल्दी नहीं थी, पर मैं हमेशा जल्दी में था। कुछ लोगों के लिए जिंदगी अपने आप में एक अभिशाप होती है। मेरा जन्म ही मेरी एक घातक दुर्घटना है। मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी नहीं उबर सकता।

मैं ऐसा बच्चा था जिसकी कोई प्रशंसा नहीं करता था। इस समय मैं दुखी नहीं हूं, ‘हर्ट’ नहीं हूं, मैं बस खाली हूं। खुद से बेपरवाह। यह दयनीय है, इसलिए मैं यह (आत्महत्या) कर रहा हूं। मेरे जाने के बाद लोग मुझे स्वार्थी या कायर कहेंगे। मुझे उसकी परवाह नहीं है। मैं मृत्यु के बाद की कहानियों, आत्मा वगैरह में विश्वास नहीं करता। मैं इतना जानता हूं कि मैं सितारों की यात्रा करूंगा, दूसरी दुनियाओं के बारे में जानूंगा। मेरी आत्महत्या के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। किसी ने इसके लिए मुझे उकसाया नहीं है, न तो अपने शब्दों से, न ही अपने किसी काम से। यह मेरा फैसला है और मैं इसके लिए उत्तरदायी हूं।’’

रोहित के इस पत्र को दरकिनार करते हुए कांग्रेस और आज के तमाम इंडी दलों, वामपंथी-वोक बिरादरी और उनके साथ लगे हाथ कई इस्लामी- मिशनरी जमातों ने शोर मचाया, ‘‘रोहित की हत्या की गई है, क्योंकि वह एक ‘दलित’ था, और रोहित की मौत के लिए मोदी-केंद्र सरकार-आरएसएस और विद्यार्थी परिषद जिम्मेदार हैं।’’ किताबें लिखी गई, सैकड़ों लेख देश की हर भाषा में छापे गए। कितने वृत्तचित्र बने। अनगिनत सोशल मीडिया पोस्ट वायरल किए गए। सारे सेकुलरों ने देशभर के महाविद्यालयों में जातिवाद के अंगार सुलगाकर उन पर राजनीति की रोटियां सेंकीं। इस प्रकार एक आत्महत्या को हत्या बनाकर पेश किया गया। अब तेलंगाना पुलिस की जांच में खुलासा हुआ है कि रोहित वेमुला अनुसूचित जाति से नहीं था। रोहित की मां ने जाली जाति प्रमाणपत्र बनवाया था।

‘टुकड़े-टुकड़े’ गिरोह

तीसरी घटना जेएनयू के ‘टुकड़े-टुकड़े’ गिरोह वाली याद करें। जब 9 फरवरी, 2016 को विश्वविद्यालय परिसर में वामपंथी छात्र संगठनों- एसएफआई, आईसा- से जुड़े छात्रों ने ‘भारत की बर्बादी तक, जंग रहेगी, जंग रहेगी’ और ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे- इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह’ जैसे भारत विरोधी नारे लगाए। ये लोग संसद पर आतंकवादी हमले के जिम्मेदारों में से एक जिहादी अफजल की बरसी मना रहे थे। इन लोगों की पीठ ठोंकने पहुंचे राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी और डी. राजा। इन नारेबाजों पर पुलिस कार्रवाई के विरोध में राहुल बोले, ‘‘इस संस्थान (जेएनयू) की आवाज को दबाया जा रहा है।’’ केजरीवाल ने कहा, ‘‘मोदी पुलिस का उपयोग कर आतंक फैला रहे हैं।’’ कम्युनिस्ट नेताओं ने ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी और पंथनिरपेक्षता को खतरे’’ की दुहाई दी। इस कांड के दो ‘हीरो’ थे-एक, उमर खालिद, जो दिल्ली दंगे के आरोप में जेल में है और कन्हैया कुमार, जो अब कांग्रेस में है। जो कुछ हुआ उस पर न कोई पछतावा, न कोई सफाई।

ये लोग जम्मू-कश्मीर जाते हैं, तो अलगावादियों की चंपी-मालिश करते हैं। अनुच्छेद 370 को वापस लाने के दबे-छिपे और खुलेआम, दोनों तरह से वादे करते हैं। ये कभी उजाड़े गए, भगाए गए कश्मीरी हिंदुओं के शिविरों में नहीं जाते, उनकी समाधि पर नहीं जाते, लेकिन बुरहान वानी और यासीन मलिक के लिए मुंह जरूर लटकाते हैं। ये लोग कैराना से हिंदुओं के पलायन पर मुंह सी लेते हैं, उधर देश-विदेश में बयान देते हैं कि भारत में अल्पसंख्यक विरोधी सरकार है।

राहुल गांधी, कांग्रेस के नेता ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द ईजाद करते हैं। इंडी गठबंधन के लोग भारत में ‘हिंदू फासिज्म’और ‘बहुसंख्यकवाद’ का आरोप उछालते हैं और दूसरी तरफ बयान देते हैं कि ‘मुसलमानों को कट्टा (देसी तमंचा) रखने का हक है’ और ‘लड़कों (बलात्कारियों) से गलती हो जाती है’, क्योंकि आरोपी कथित अल्पसंख्यक हैं। यही जातिवादी राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद को दशकों तक समाज के सीने पर बिठाए रहे। वोट बैंक की राजनीति के चलते इन राजनीतिक दलों ने पुलिस प्रशासन को माफिया का चाकर बनाकर रखा था।

‘नए देश का प्रधानमंत्री’ बनने का ख्वाब

क्या यह सामान्य बात है कि कृषि कानूनों के खिलाफ झूठ फैलाकर देश में एक आंदोलन खड़ा किया जाता है, जिसमें विदेशी टूलकिट भी सामने आती है, और पंजाब विभाजन के लिए साजिश कर रहे षड्यंत्रकारी भी। तिरंगे का अपमान होता है, पुलिस पर हमला होता है और दुनिया में इस हुड़दंग को ‘किसान दमन’ के रूप में उछाला जाता है। सर्वज्ञात है कि 80 के दशक में, पंजाब की सियासत में अकालियों से होड़ करते हुए किस तरह कांग्रेस ने चरमपंथ को पाला-पोसा। अब आम आदमी पार्टी इस विरासत को आगे बढ़ाने में लगी है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद जिस तरह अलगावादियों के हौसले बढे वह अप्रत्याशित नहीं था।

केजरीवाल पर प्रतिबंधित संगठन ‘सिख्स फॉर जस्टिस’, जो कनाडा में बसे हिंदुओं को धमकाने से सुर्खियों में आया, से पंजाब में अलगाववाद को सुलगाने और बम धमाके के लिए जेल में बंद देविंदर पाल सिंह भुल्लर को छुड़वाने के लिए 1.60 करोड़ डॉलर लेने का आरोप लगा है। गुरपतवंत सिंह पन्नू ने वीडियो जारी कर केजरीवाल पर वादा तोड़ने का आरोप लगाया था। इन सबको दरकिनार कर दिया जाए तो भी सबसे सनसनीखेज आरोप तो केजरीवाल के पुराने मित्र कुमार विश्वास ने लगाया था। कुमार विश्वास के अनुसार जब पंजाब में अपनी राजनीति जमाने के लिए आम आदमी पार्टी ने अलगावादियों से संपर्क बढ़ाने शुरू कर दिए तो उन्होंने केजरीवाल को चेताया। इस पर केजरीवाल ने कुमार विश्वास से कहा था,‘या तो पंजाब का मुख्यमंत्री बनूंगा या नए देश का प्रधानमंत्री।’

देश-देवता और दर्शन पर चोट

कुर्सी की राजनीति का यह खेल खुलकर विभाजन की राजनीति में बदल गया है। यही नेता दक्षिण के राज्यों में पेरियार (हिंदू देवी-देवताओं के विरुद्ध नफरत का अभियान चलाने वाले) भक्त बन जाते हैं, और सनातन परंपरा को डेंगू-मलेरिया कहते हैं, हिंदू समाज के कुछ वर्गों-जातियों के खिलाफ घृणा का प्रचार करते हैं। योजनापूर्वक दक्षिण के राज्यों में हिंदी विरोधी बयान देकर माहौल गरमाया जाता है। दुष्प्रचार किया जाता है कि दक्षिण भारत के लोग एक अलग नस्ल और अलग राष्ट्र हैं। ‘दक्षिण भारत को अलग देश बनाने का’ कांग्रेस के सांसद का हालिया बयान इसी राजनीति की एक कड़ी है। ममता बनर्जी ऐलान करती हैं कि ‘सीबीआई को बंगाल में घुसने नहीं दूंगी।’ सेना के नियमित अभ्यास को ‘तख्तापलट की साजिश’ बताती हैं। सारे तथाकथित ‘संविधान रक्षक-लोकतंत्र रक्षक-सेकुलर’ दल और नेता सुरक्षा बलों और सर्जिकल स्ट्राइक पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करते हैं। इंडी दलों के नेता छाती ठोंककर कहते हैं कि वे अपने राज्यों में सीएए, एनआरसी और समान नागरिक संहिता लागू नहीं होने देंगे।

एक ही पटकथा

गौरतलब है कि ये लोग कहीं भी जाएं, भाषा विभाजनकारी ही रहती है। राहुल गांधी चुनावी सभाओं में लोगों को माइक पर बुलाकर उनकी जाति पूछते हैं। काल्पनिक समस्याएं गिनाते हैं, और फिर उनका नक्सली समाधान प्रस्तुत करते हैं। बोली बदलती रहती है, पटकथा वही रहती है। विदेशों में जाकर वे भारत में लोकतंत्र के समाप्त होने की घोषणा करते हैं, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की कहानी सुनाते हैं और दुनिया को चीन से सीख लेने की नसीहत देते हैं।

जनजातीय अंचलों में जाकर वे आरक्षण समाप्ति, जमीन छिनने और खून-खराबे का भय दिखाते हैं। गत लोकसभा चुनाव में शहडोल में राहुल गांधी ने बयान दिया था, ‘‘नरेंद्र मोदी ने ऐसा कानून बनाया है कि जनजातियों को गोली मारी जा सकेगी।’’ ऐसा कौन-सा कानून बनाया है देश की संसद ने? क्या चुनाव के नाम पर कुछ भी बोला जा सकता है? याद रहे कि जनजातीय अंचलों में जनजातियों को हिंदू समाज से तोड़कर अलग करने का षड्यंत्र अंग्रेजों के जमाने से चल रहा है। इस षड्यंत्र में नक्सली-वामपंथी-कन्वर्जन तंत्र सब शामिल हो गए हैं। इसी के साथ कदमताल कर रहे हैं कांग्रेस के युवराज और उनके साथी। मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस नेता कमलनाथ ने बयान दिया था कि जनगणना में जनजातियों को हिंदू लिखाने वालों को जेल में डाल देंगे।

गंभीर सवालों के घेरे में

 


दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडी गठबंधन के नेता की रैली

लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देने वाले इंडी नेता राजनीतिक स्वार्थ के चलते लगातार लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं और संस्थाओं पर समाज में अनास्था पैदा करने की कोशिशों में लगे हैं। वे ईवीएम पर प्रश्नचिन्ह इसलिए लगाते हैं, ताकि चुनाव के परिणामों के बाद अपने समर्थकों की हताशा को क्रोध में बदलकर उस गुस्से का मनमाना उपयोग कर सकें। वे ‘संविधान खतरे में’ का नारा देते हैं ताकि ‘आरक्षण समाप्त होने जा रहा है’ जैसी अफवाहें जोर पकड़ सकें। उनके वामपंथी समर्थक अयोध्या और काशी पर अदालत के आदेशों की आलोचना करते हैं। राम मंदिर पर उनके समर्थक मजहबी नेता खुलेआम ‘हमारा समय आएगा तब देख लेंगे’ जैसी टिप्पणियां करते हैं, और ये लोग मौन समर्थन देते हैं।

हाल ही में पूर्व कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा है कि राम मंदिर के पक्ष में न्यायालय का फैसला आने के बाद राहुल गांधी ने अपने निकट सहयोगियों से कहा था कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर एक सुपरपावर कमीशन बनाकर राम मंदिर के फैसले को उलट दिया जाएगा। कुल मिलाकर, राहुल गांधी की अघोषित अगुआई में, पूरा इंडी गठबंधन विध्वंसकारी नीतियों पर चल रहा है। उनके लिए कुछ भी वर्जित नहीं रहा है। आश्चर्य की बात नहीं कि राहुल और सोनिया गांधी चीन की उस कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गुप्त समझौते पर हस्ताक्षर करते हैं, जो पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके), कश्मीर घाटी, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा नहीं मानती और पाकिस्तान के आतंकवादियों की संयुक्त राष्ट्र में रक्षा करती है। उस गुप्त समझौते में क्या था, यह आज तक देश नहीं जानता।

उत्तर से दक्षिण तक जो विभाजनकारी विमर्श चलाया जा रहा है उसने राष्ट्रीयता बनाम अलगाववाद की बहस खड़ी कर दी है। कांग्रेस और इंडी दलों के न चाहते हुए भी चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित होता जा रहा है। बेचैन सेकुलर मुंह में जातिवाद, भाषावाद, अल्पसंख्यकवाद और क्षेत्रवाद का पेट्रोल भरकर अलगाववाद की मशाल पर फूंक रहे हैं।

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