रामलला की प्राणप्रतिष्ठा के बाद जो हिंदू शक्ति एकत्रित हुई है, उसे हर कोई पचा नहीं पा रहा है. जो लोग कभी राम मंदिर के निर्णय और निर्माण को किसी भी तरह रोकने के लिए जुगत भिड़ा रहे थे, आज वो हिंदू समाज से उसकी जाति पूछते घूम रहे हैं. वो ऐसे लोगों की पीठ थपथपा रहे हैं जो कहते घूमते हैं कि “हमारा समय आएगा तो देख लेंगे”।
चुनावी राजनीति के उन्माद में कुछ राजनीतिज्ञों ने हिंदू एकता को चुनौती के रूप में लिया है. हिंदुओं की श्रीराम में आस्था को जातियों में तोलने की कोशिश की जा रही है. ऐसे ही एक नेता का बयान वायरल हो रहा है कि “रात दिन बस जय श्रीराम, जय श्रीराम, जय श्रीराम… मंदिर जाना है, और भूखे मरना है.” हिंदू समाज को खंड-खंड करने की नीयत से झूठ फैलाए जा रहे हैं कि जनजाति की होने के कारण राष्ट्रपति को नहीं बुलाया… सिर्फ अमीरों को बुलाया.. सिर्फ ऊँची जातियों को बुलाया. वगैरह. फेक वीडियो फैलाकर जातीय झगड़े खड़े करने के षड्यंत्र किए जा रहे हैं. सत्य यह है कि राष्ट्रपति श्रीमति द्रौपदी मुर्मू को ससम्मान प्राणप्रतिष्ठा के लिए आमंत्रित किया गया और राम मंदिर के निर्माण के लिए पहला दान तत्कालीन राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से लिया गया.
नित नए रूप बदलने में माहिर जो वर्ग, जो लोग कभी राम मंदिर के निर्माण का विरोध किया करते थे, आज राम के आदर्शों की बात कर रहे हैं. “भारत में में तानाशाही आ गई है” का हल्ला मचाने वाले एक बहुचर्चित यूट्यूबर ने हाल ही में ने कहा कि “हिंदू दर्शन तो बहुत उदार है, कण कण में भगवान होने की बात करता है। राम सब जगह हैं, इसलिए राम मंदिर जाकर ही उनकी पूजा करने की क्या आवश्यकता है?” इसका उत्तर बस इतना ही है कि हमारे सारे मंदिर , हमारा राम मंदिर, इसी उदारता, इसी ज्ञान का प्रतीक है। यह ज्ञान, यह उदारता, यह परम्परा बनी रहे, इसलिए हमारे मंदिर आवश्यक हैं। राम उदार और करुणामूर्ति तो हैं ही, अन्याय के प्रतिकार का भी प्रतीक हैं। धर्म और सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने जीवन भर युद्ध किए हैं। श्रीराम ने अपने आचरण से बतलाया है कि जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए प्राणपण से संघर्ष करना पड़ता है। इसलिए यह राम मंदिर, राष्ट्र मंदिर भी है और मानवता की धरोहर भी। भारत का इतिहास भी है, आने वाली पीढियों का भविष्य भी। इसलिए हिंदू समाज इन कपट भरी बातों में आने वाला नहीं है कि हिंदू तो इतना उदार है इसलिए उसे मिट जाने में भी संकोच नहीं करना चाहिए।
हिंदू होने के नाते हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम सदा स्मरण रखें और सभी को स्मरण दिलाते रहें कि रामलला के इस पावन मंदिर में सबकी भागीदारी है. हर जाति ने इसके लिए रक्त बहाया. हर जाति ने इसके लिए योगदान दिया. ये हिंदू गौरव है. हिंदू पराक्रम का शिखर है. हिंदू एकता का वास्तु है. और, यह लगातार जागते रहने का मूर्त संदेश भी है.
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