सन् 2011 और 2024 के बीच करीब बारह साल का समय निकल चुका है। 2011 के जंतर-मंतर के उस कार्यक्रम को याद कीजिए, जिसमें ईमानदारी, पारदर्शी शासन और जनता की भागीदारी को लेकर अरविंद केजरीवाल सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे की छत्रछाया में लंबी-लंबी बातें कर रहे थे। उनकी लच्छेदार बयानबाजी से ‘मुग्ध’ जनता भी उनके साथ दिखती थी। सेकुलर मीडिया गुणगान में जुटा था। ऐसा लग रहा था कि केजरीवाल भ्रष्टाचार का सूफड़ा साफ कर ऐसी मिसाल कायम करेंगे जो भारत की राजनीति में एक नई दिशा तय करेगी।
लोग विदेशों से नौकरी छोड़कर इस आन्दोलन से जुड़े। इरादा यही था कि जैसे ही सत्ता मिलेगी, तंत्र को बदल देंगे। लोगों ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार से उकताकर आखिरकार सत्ता को बदल दिया। काफी ना-नुकर के दिखावे के बाद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। लेकिन फिर शुरू हुआ उनका असली खेला। जो कहा सो नहीं किया। जो वायदे किए, उनकी धज्जियां उड़ाईं।
स्वराज की बात करने वाले शराब की राजनीति करने लगे। शिक्षा मॉडल का ढिंढोरा पीटा, पर एमसीडी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों वर्दी न वर्दी दी और न ही किताब-कापियां। 2024 तक उनकी करतूतों की दास्तान इतनी लंबी हो गई कि दिल्ली उच्च न्यायालय को एक नहीं, बल्कि दो बार उन पर तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी। खुद को कट्टर ईमानदार बताने वाले केजरीवाल की सरकार के दर्जनभर नेताओं की पिछले दस साल में विभिन्न आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी हो चुकी है। कुछ अभी जेल में हैं, जबकि कुछ जमानत पर। आआपा के इन नेताओं पर मारपीट, जमीन कब्जा करने और दुष्कर्म जैसे संगीन आरोप हैं।
उच्च न्यायालय ने लगाई लताड़
गत 26 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली के स्कूलों की स्थिति को लेकर हो रही सुनवाई पर न्यायालय ने केजरीवाल सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कड़ी फटकार लगाई। इस दौरान न्यायालय ने कहा कि केजरीवाल के लिए निजी हित ही सब कुछ है। अपने राजनीतिक दल का नाम आम आदमी पार्टी रखने भर से कोई आम जनता का हितैषी नहीं हो जाता। बता दें कि सोशल ज्यूरिस्ट, सिविल राइट्स ग्रुप की तरफ से दिल्ली में स्कूलों की खराब स्थिति को लेकर उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की गई थी।
20 मार्च को उच्च न्यायालय ने स्कूलों का दौरा कर याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अशोक अग्रवाल से इस संबंध में रिपोर्ट तैयार कर न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने को कहा था। इसी याचिका के आधार पर दिल्ली सरकार को उच्च न्यायालय दो बार कड़ी फटकार लगा चुका है। याचिका पर सुनवाई के दौरान नगर निगम कमिश्नर ने यह दलील दी कि बच्चों के लिए कॉपी, किताबें और यूनिफार्म खरीदने के लिए नगर निगम के पास कोई स्टैंंडिंग कमेटी नहीं है। पांच करोड़ रुपये से ज्यादा की खरीद के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री की अनुमति जरूरी होती है। मुख्यमंत्री के हिरासत में होने के कारण देर हो रही है।
इस पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (एसीजे) मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार केवल सत्ता के विनियोग में रुचि रखती है और यदि आप गिरफ्तारी के बाद भी इस्तीफा नहीं देना चाहते हैं तो यह आपका निर्णय है, लेकिन स्कूलों का काम इसके चलते प्रभावित नहीं होना चाहिए। खंडपीठ ने यहां तक कहा कि राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री का पद संभालने वाला कोई भी व्यक्ति लंबे समय तक या अनिश्चित अवधि के लिए संवादहीन या अनुपस्थित नहीं रह सकता। मुख्यमंत्री नहीं हैं तो क्या दिल्ली सरकार ठप रहेगी? न्यायालय ने कहा कि गिरफ्तारी के बाद भी इस्तीफा न देकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने व्यक्तिगत हित को राष्ट्रीय हित से ऊपर रखा है।
इससे पहले 9 अप्रैल को इसी याचिका पर हो रही सुनवाई के दौरान न्यायालय ने दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि मात्र विज्ञापन देकर ये न बताएं कि सब कुछ बढ़िया है, बल्कि असल में धरातल पर उतर कर काम करें। अदालत ने दूसरी सबसे तल्ख टिप्पणी यह की थी कि दिल्ली की जेलों में दस हजार कैदियों के रहने की क्षमता है, लेकिन हैं 23 हजार कैदी। इसका शिक्षा से सीधा लेना-देना है। आप शिक्षा तो दे ही नहीं रहे हैं इसलिए अपराध बढ़ रहे हैं और जेलें भर रही हैं।
आठ लाख बच्चों को नहीं मिलीं किताबें
बता दें कि आआपा ने 2015 के विधानसभा चुनाव के लिए जारी अपने घोषणा पत्र में 500 स्कूल खोलने का वादा किया था। आआपा के घोषणा पत्र में कहा गया था कि ‘‘पार्टी दिल्ली में 500 स्कूल खोलेगी और उसका विशेष ध्यान माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक विद्यालयों पर होगा, ताकि दिल्ली के हर बच्चे तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचे। स्कूल तो खोले नहीं गए इसके उलट उच्च न्यायालय की फटकार से दिल्ली के हर बच्चे तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचाए जाने के केजरीवाल के दावे की पोल खुल चुकी है।
अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में पढ़ने वाले आठ लाख बच्चों को इस सत्र के लिए कॉपी किताबें, यूनिफार्म नहीं मिली है। दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में 7,88,224 बच्चे पढ़ते हैं। स्कूलों का सत्र एक अप्रैल से शुरू हो चुका है। पिछले साल भी दो लाख से ज्यादा बच्चों को कॉपी, किताबें और यूनिफार्म नहीं मिल पाई थी। शिक्षा के अधिकार के तहत नर्सरी से आठवीं तक मुफ्त शिक्षा दी जाती है। इसके तहत बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दिए जाने का प्रावधान है। दिल्ल नगर के 250 वार्ड और 12 जोन में कुल 1534 स्कूल हैं। नगर निगम के पास इन स्कूलों को संचालित किए जाने की जिम्मेदारी होती है।
केवल अपना हित देखते हैं केजरीवाल
संवैधानिक रूप से जो प्रशासनिक व्यवस्था बनाई गई है, अरविंद केजरीवाल उसका पालन नहीं करते। वे पहले ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिसके पास किसी भी मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं है। वे कैबिनेट की बैठकों में केवल मौखिक आदेश देते रहे। अब जेल में होकर भी प्रपंच रच रहे हैं। वे प्रपंचों का बाजार बनाने में माहिर हैं। केजरीवाल के जेल में होने के कारण दिल्ली सरकार के सभी विभागों का काम रुक गया है।
आआपा सरकार के मंत्री जेल से सरकार चलाने की सीएम की रणनीति को आगे नहीं बढ़ा सके हैं। वहीं मुख्यमंत्री को भेजी जाने वाली फाइलें रुक गई हैं। दिल्ली प्रदेश भाजपा के मीडिया प्रमुख प्रवीण शंकर कपूर का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं है। स्थापित व्यवस्थाओं को ठेंगा दिखाना केजरीवाल की मूल प्रकृति है। ईडी ने उन्हें 9 बार समन भेजा, लेकिन उनके पास समय नहीं था।
अरविंद केजरीवाल के पास दिल्ली सरकार में किसी मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं है। फिर भी वे व्यस्तता की बात बोलकर ईडी के सामने पेश नहीं हुए। ईडी ने अदालत में दाखिल अपने जवाब में भी कहा कि अरविंद केजरीवाल पूछताछ से बचना चाह रहे थे, इसलिए 9 बार समन भेजने के बाद भी वे पूछताछ के लिए उपस्थित नहीं हुए। शराब घोटाले से जुड़े लोगों ने 170 मोबाइल फोन या तो बदले या उन्हें नष्ट कर दिये। महज 12 साल में उनकी खोखली ईमानदारी ताश के पत्तों की तरह ढह गई है।
आज तक देश में एक भी मुख्यमंत्री ऐसा नहीं हुआ, जो जेल जाने के बाद भी पद पर बना रहा हो। यदि कोई जेल गया भी तो नैतिकता के नाते इस्तीफा देने के बाद जेल गया, लेकिन केजरीवाल हैं कि दिल्ली शराब घोटाले में मनी लांड्रिग के मामले में गिरफ्तार होने के बाद न्यायिक हिरासत में हैं। बावजूद इसके वह इस्तीफा नहीं दे रहे। कभी केजरीवाल राजनीति में परिवारवाद को लेकर तमाम राजनीतिक दलों को पहले जंतर-मंतर से और उसके बाद रामलीला मैदान से खूब खरी-खोटी सुनाते थे। अब खुद तिहाड़ जेल में बंद हैं, तो अब पत्नी को आगे करके पार्टी का स्टार प्रचारक बना दिया है।
कई नेता जेल में तो कई जमानत पर
वैकल्पिक राजनीति की बात करने वाले और ‘ईमानदारी’ को सबसे बड़ा हथियार बनाने वाले अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान राजनीति में कदम रखा था। 2 अक्तूबर, 2012 को आम आदमी पार्टी की स्थापना हुई। लेकिन, पहले दिल्ली की सत्ता और उसके बाद पंजाब में सरकार आने के बाद इनके नेता भ्रष्टाचार के दलदल में इस कदर फंसे कि कई मंत्री जेल जा चुके हैं।
पिछले दस साल में देखें तो आआपा के कई नेता विभिन्न अपराधिक मामलों में संलिप्त नजर आते हैं। इसमें कई अभी जेल में बंद हैं, जबकि कुछ जमानत पर बाहर हैं। इन नेताओं पर आरोप भी सामान्य नहीं बल्कि, फर्जी डिग्री, मारपीट, छेड़छाड़ और दुष्कर्म जैसे संगीन आरोप लगे हैं। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी आबकारी घोटाले में जेल हैं। दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल में हैं।
ये हैं आआपा के दागी
- अक्तूबर, 2023 में दिल्ली शराब घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने लंबी पूछताछ के बाद आआपा से राज्यसभा सांसद संजय सिंह को गिरफ्तार किया। फिलहाल वह जमानत पर हैं।
- 26 फरवरी, 2023 को मनीष सिसोदिया को शराब घोटाले में गिरफ्तार किया गया। उन पर घोटाले से जुड़े साक्ष्यों को नष्ट करने का आरोप है। वह अभी भी जेल में हैं।
- दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन को ईडी ने मई, 2022 में हवाला लेनदेन के आरोप में गिरफ्तार किया था। उन्हें उपचार के लिए अंतरिम जमानत दी गई थी, बाद में नियमित जमानत की मांग करने पर न्यायालय ने मना कर दिया। वह भी जेल में हैं।
- आआपा के विधायक अमानतुल्ला खान दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में अवैध भर्तियों और वित्तीय हेराफेरी से जुड़े एक मामले में जमानत पर बाहर हैं। उन्हें सितंबर, 2022 में गिरफ्तार किया गया था। उन पर यौन उत्पीड़न किए जाने का भी आरोप है।
- दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री और मालवीय नगर के विधायक सोमनाथ भारती भी जमानत पर बाहर हैं। उन्हें दिसंबर 2015 में गिरफ्तार किया था। भारती पर उनकी पत्नी ने घरेलू हिंसा के आरोप लगाए थे। अदालत ने एम्स में संपत्ति को नुकसान पुहंचाने और सुरक्षा गार्ड से मारपीट करने के केस में 2021 में सोमनाथ भारती को 2 साल की सजा सुनाई थी।
- केजरीवाल सरकार में पूर्व महिला व बाल कल्याण मंत्री संदीप कुमार की अश्लील सीडी सामने आई थी। एक महिला की शिकायत पर उन्हें जेल भेजा गया। राशन कार्ड बनवाने के बहाने पर उन पर महिला से दुष्कर्म किए जाने का आरोप था।
- देवली के विधायक रहे चुके प्रकाश जारवाल को जुलाई 2016 में एक महिला से छेड़छाड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उन्हें 2018 में दिल्ली के मुख्य सचिव से बदतमीजी करने के आरोप में भी गिरफ्तार किया गया था। 2014 में दिल्ली जल बोर्ड के एक कर्मचारी को थप्पड़ मारने के आरोप में भी जारवाल को गिरफ्तार किया जा चुका है।
- मॉडल टाउन से आआपा के विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी को दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है। फिलहाल वह जमानत पर हैं।
ल्ल कोंडली से विधायक मनोज को पुलिस ने 10 जुलाई, 2015 को गिरफ्तार किया था। उन्हें धोखाधड़ी और जमीन कब्जाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। - नरेला क्षेत्र के विधायक शरद चौहान को पुलिस ने जून 2016 में गिरफ्तार किया था। उन पर आम आदमी पार्टी की एक कार्यकर्ता सोनी मिश्र ने आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था।
- साल 2015 में दिल्ली सरकार में कानून मंत्री जितेन्द्र सिंह तोमर को गिरफ्तार किया गया था। उनकी कानून की डिग्री फर्जी पाई गई थी। बिहार की तिलका मांझी यूनिवर्सिटी, भागलपुर ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि जितेंद्र सिंह तोमर का अंतरिम प्रमाणपत्र जाली है और इसका संस्थान के रिकॉर्ड में अस्तित्व नहीं है।
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