इधर मालदीव में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अपने भारत विरोधी एजेंडे के बावजूद संसदीय चुनाव क्या जीते, उनके आका चीन की जैसे चांदी हो गई। चीनी कम्युनिस्ट सत्ता का सीना चौड़ा हो गया तो सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के पांव मानो जमीन से ऊंचे उठ गए। उसकी ऐसी हिमाकत हो गई कि भारत को सलाहें देने लगा!
मुइज्जू की जीत पर उनके आका चीन ने बधाई भेजी। उसने कहा, वह मालदीव की जनता के फैसले का सम्मान करता है। तो चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने छापा कि मुइज्जू की संसदीय चुनावों में जबरदस्त जीत के बाद चीन और मालदीव के बीच रिश्ते और स्थिर होंगे।
उल्लेखनीय है कि गत दिनों मालदीव में संसद की 90 सीटों पर चुनाव कराए गए थे। 90 में से 66 सीटें मुइज्जू की पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस के खाते में गईं। मुइज्जू के पास पहले बहुमत नहीं था इसलिए वे अपने भारत विरोधी एजेंडे पर पूरी तरह काम नहीं कर पा रहे थे। विशेषज्ञ मानते हैं कि अब राष्ट्रपति मुइज्जू अपनी भारत विरोध की नीतियों पर आगे बढ़ सकते हैं।
इस चुनाव से पूर्व बहुमत भारत के समर्थक बताए जाने वाले मोहम्मद सोलिह की पार्टी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी के पास था। उनके पास इतनी सीटें थीं कि मुइज्जू सरकार के लाए विधेयकों को पारित नहीं होने देते थे। उनकी पार्टी को इस चुनाव में 12 सीटों पर संतोष करना पड़ा है।
इस परिस्थिति में चीनी सरकारी भोंपू माना जाने वाला ग्लोबल टाइम्स बल्लियों उछला पड़ रहा है। उसने एक लेख छापा है जिसमें भारत का उल्लेख करते हुए वह लिखता है कि चुनाव के आए नतीजों से साफ है कि भूराजनीतिक मुद्दों में उलझने की बजाय मालदीव को अब देश के विकास पर ध्यान देना चाहिए। यानी उसकी सलाह है कि ‘मालदीव भारत से बेवजह के विषयों पर न उलझे’।
मुइज्जू में भारत विरोधी भावना चीन ने इतनी कूट—कूटकर भरी है कि उन्होंने भारत को तरजीह देने की वर्षों से चली आ रही नीति को समाप्त करने तक की कसमें खा लीं। पिछले दिनों भारत और मालदीव के संबंध पटरी से उतर गए थे जो अब भी सामान्य नहीं हुए हैं। मालदीव में वहीं की पूर्व सरकार के अनुरोध पर 80 से ज्यादा भारतीय सैनिक तैनात थे जिन्हें वापस भारत भेजने के लिए मुइज्जू चुनाव प्रचार के समय से ही हाथ धोकर पीछे पड़े हैं।
ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि राष्ट्रपति मुइज्जू का मत एकदम साफ है-वे चीन तथा भारत दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के पैरोकार हैं। मालदीव की नीति तो संतुलित रखने का उनका मन है, लेकिन भारत अड़ा है कि मालदीव किसी एक पक्ष को चुने। यह चीनी अखबार लिखता है कि भारत और मालदीव के बिगड़े संबंधों के संदर्भ में भारत को अपने भीतर झांकना चाहिए।
इनमें से कुछ सैनिकों को उन्होंने भारत-मालदीव समझौते के हिसाब से भारत वापस भेज दिया है। शेष के भी आगामी 10 मई तक वापस आने की संभावना है। बता दें कि ये भारतीय सैनिक भारत की ओर से मालदीव को मानवीय मदद के कार्यों को सम्पन्न कराने के लिए ध्रुव हेलिकॉप्टर तथा डॉर्नियर विमान के संचालन के लिए भेजे गए थे। अब इन सैनिकों की बजाया भारत के तकनीकी विशेषज्ञ इस काम को संभालेंगे।
मुइज्जू की जीत से ‘उत्तेजित’ चीनी ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि राष्ट्रपति मुइज्जू का मत एकदम साफ है-वे चीन तथा भारत दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के पैरोकार हैं। मालदीव की नीति तो संतुलित रखने का उनका मन है, लेकिन भारत अड़ा है कि मालदीव किसी एक पक्ष को चुने। यह चीनी अखबार लिखता है कि भारत और मालदीव के बिगड़े संबंधों के संदर्भ में भारत को अपने भीतर झांकना चाहिए। अखबार की रिपोर्ट में है कि भारत और मालदीव के बीच भौगोलिक निकटता, व्यापार, संस्कृति, लोगों के बीच संबंध, ऐतिहासिक संबंध आदि को देखें तो मालदीव ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे भारत के साथ संबंध खराब होते हों।
यानी ग्लोबल टाइम्स ने दोनों देशों के बीच बिगड़े संबंधों का ठीकरा भारत पर फोड़ने की कोशिश की है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अपने पिछलग्गू देश से अब मनमानी नीतियां बनाकर चाहेगा कि भारत से उसकी अधिकतम दूरी हो जाए। लेकिन चीन मालदीव को झांसे में नहीं रखेगा और अपने मनमाने काम नहीं निकलवाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। चीन के अन्य छोटे देशों के साथ संबंधों के अनुभव इस बारे में काफी कुछ साफ कर देते हैं।
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