आम आदमी पार्टी (आआपा) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री लंबे समय से स्वयं को एक ऐसे योद्धा के रूप में प्रस्तुत करते आ रहे हैं, जो पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति प्रतिबद्ध है। लेकिन हाल की घटनाओं ने उनकी ‘ईमानदारी’ तार-तार कर दी है। केजरीवाल एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। इस बार उन पर शराब नीति घोटाले में शामिल होने का आरोप है, जिसके चलते प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें हिरासत में लिया है। जांच एजेंसी ने उन्हें शराब नीति घोटाले का मास्टरमाइंड बताया है। केजरीवाल की गिरफ्तारी से जिस प्रकार उनके समर्थकों में अफरा-तफरी मची है, वह हमें केजरीवाल और उनकी पार्टी से जुड़े जटिल जाल में गहराई से उतरने को बाध्य करता है।
‘‘हम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी सहित इन कार्रवाइयों पर बारीकी से नजर रखना जारी रखेंगे।’’
-अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर
आआपा का ग्राफ जिस तेजी से चढ़ा, उसे देखते हुए उसके वित्त पोषण के स्रोत और उसके द्वारा बनाए गए गठबंधनों के संबंध में प्रश्न अनिवार्य रूप से उठते हैं। एक पार्टी, जो महज एक दशक पहले बनी, उसका राजनीतिक मोर्चे पर इतनी तेजी से आगे बढ़ना संदेह पैदा करता है। इतनी व्यापक मान्यता और प्रभाव को बनाए रखने के लिए उन्होंने आवश्यक संसाधन और मशीनरी कैसे जुटाई? ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब धुंधले वित्त पोषण स्रोतों और संदिग्ध मित्रता और गठबंधन के पास हो सकते हैं। यह कहानी तब और जटिल हो जाती है, जब हम उत्सुकता पैदा करने वाले कुछ संयोगों और जुड़ावों की जांच करते हैं।
जब हम विदेश में आआपा नेताओं के कारनामों पर नजर डालते हैं, तो चीजें और भी संदिग्ध हो जाती हैं। पार्टी के प्रमुख नेता और राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा यूनाइटेड किंगडम में आम आदमी अंतरराष्ट्रीय ‘मोहल्ला क्लीनिक’ से कथित तौर पर चिकित्सा उपचार लेने के दौरान खुद को जांच के घेरे में पाते हैं। हालांकि यूनाइटेड किंगडम से प्राप्त तस्वीरें खालिस्तान समर्थक हस्तियों, विशेषकर सांसद प्रीत कौर गिल के साथ उनके संबंधों को उजागर करती हैं और एक अलग नजारा पेश करती हैं। यह समय महत्वपूर्ण है, जो ब्रिटिश धरती पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की उपस्थिति के साथ मेल खाता है। और जब अमेरिकी विदेश विभाग अपने स्वयं के लोकतांत्रिक मुद्दों की अनदेखी करते हुए केजरीवाल की ‘निष्पक्ष जांच’ के लिए बोलता है, तो ऐसे में क्या त्यौरियां नहीं चढ़ेंगी?
जर्मनी और अमेरिका ने केजरीवाल की हिरासत पर बयान दिए हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा, ‘‘हम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी सहित इन कार्रवाइयों पर बारीकी से नजर रखना जारी रखेंगे।’’ मिलर ने जोर देकर कहा, ‘‘हम निष्पक्ष, पारदर्शी और समय पर कानूनी प्रक्रियाओं को अंजाम तक पहुंचाने का समर्थन करते हैं और हमें नहीं लगता कि इस पर ‘किसी को आपत्ति होनी चाहिए।’’ साथ ही, मिलर ने भारत के आंतरिक मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेप के बारे में और सवाल उठाते हुए कांग्रेस के बैंक खातों को फ्रीज करने पर भी टिप्पणी की। भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए दोनों देशों के राजनयिकों को तलब कर आपत्ति दर्ज कराई और यह स्पष्ट किया कि केजरीवाल की गिरफ्तारी भारत का घरेलू मामला है।
ऐसे में आआपा के कार्यों और गठबंधनों की जांच जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय हस्तियों के साथ केजरीवाल के कथित संबंध और अमेरिकी विदेश विभाग की अचानक उभरी दिलचस्पी एक गहरी उलझन का संकेत देती है। क्या ये घटनाक्रम भारत में स्थापित राजनीतिक व्यवस्था को अस्थिर करने की सोची-समझी रणनीति का संकेत दे रहे हैं?
अरविंद केजरीवाल के मुकदमे की पारदर्शिता और बैंक खातों को फ्रीज करने के कांग्रेस के आरोपों पर सवाल उठाने का अमेरिकी विदेश विभाग का दुस्साहस, उनकी अपनी चुनावी प्रणाली से जुड़े विवादों को देखते हुए पाखंड लगता है। इनमें पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सोशल मीडिया अकाउंट को निलंबित करना और प्रमुख एप स्टोर्स से पार्लर को हटाना शामिल है। आरोपों से पता चलता है कि ट्रम्प के ट्विटर प्रतिबंध के बाद कई उपयोगकर्ता पार्लर पर चले गए, जिससे ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों को वित्तीय नुकसान हुआ। इसके कारण गूगल, एप्पल और अमेजन को अपने एप स्टोर से पार्लर को बाहर करना पड़ा। अन्य प्लेटफार्मों की तुलना में कहीं कम गंभीर उल्लंघन के लिए की गई ये कार्रवाइयां ऐसी हैं, जो यह रेखांकित करती हैं कि अन्य देशों की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की जांच से पहले अमेरिका को अपनी आंतरिक चुनौतियों से निपटने की जरूरत है।
अरविंद केजरीवाल के मामले में निष्पक्ष और पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया की वकालत करने वाले अमेरिका के हालिया बयानों के जवाब में उचित प्रक्रिया के प्रति भारत की सराहनीय प्रतिबद्धता को उजागर करना महत्वपूर्ण है। भारत ने पूरी लगन से यह सुनिश्चित किया है कि केजरीवाल को अपने पद की गरिमा और सम्मान के साथ अपनी रक्षा करने का हर अवसर मिले। ईडी द्वारा केजरीवाल को नौ बार पूछताछ के लिए समन भेजा इस बात का उदाहरण है कि जांच एजेंसी ने धैर्य रखा और कानूनी प्रोटोकॉल का पालन किया। महत्वपूर्ण बात यह है कि सुनवाई और कार्यवाही कानून के दायरे में सावधानीपूर्वक संचालित की गई है। इसके अतिरिक्त, खुद केजरीवाल ने शीर्ष स्तरीय कानूनी प्रतिनिधित्व का लाभ उठाया है, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी भी शामिल हैं। यह राजनीतिक संबद्धता या कद की परवाह किए बिना निष्पक्ष और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए भारत के अटूट समर्पण को रेखांकित करता है।
इस तरह के अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप का समर्थन करने में आआपा की संभावित भूमिका पर विचार करने पर कहानी और अधिक जटिल हो जाती है। विशेष रूप से, फरवरी 2020 में जब डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर थे, उस दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए। दुनिया में भारत की छवि बिगाड़ने के लिए दंगों के लिए जो समय चुना गया, वह आआपा की उनमें संलिप्ता का संदेह पैदा करता है। क्या वैश्विक मंच पर भारत की छवि को खराब करने के लिए इन दंगों को आआपा के भीतरी तत्वों द्वारा भड़काया या समर्थित किया गया होगा? ऐसी घटनाओं के बाद अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी और केजरीवाल का मौन समर्थन उनके इरादों और भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने में उनके संभावित सहयोग पर सवाल उठाता है।
ऐसे समय में जब भारत चुनावी माहौल चरम पर है, अरविंद केजरीवाल ईडी की हिरासत में हैं और उनके कथित युवा नेता राघव चड्ढा बड़ी सहजता से ब्रिटेन चले जाते हैं। इससे हर किसी को आश्चर्य हो रहा है और मन यह सवाल उठ रहा है कि क्या वह भारत पर दबाव बनाने के लिए संदिग्ध संगठनों के साथ गठजोड़ करने के लिए ब्रिटेन गए हैं या ‘दिव्य दृष्टि’ पाने के लिए आंख की सर्जरी करा रहे हैं?
राजनीति और अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की इस गंदली दुनिया में आआपा के मंसूबों और विदेशी ‘खिलाड़ियों’ के साथ उनके विचित्र संबंधों पर सवाल उठाना महत्वपूर्ण है।
क्या वे भारत की राजनीति को अस्थिर करने की योजना में अनजाने मोहरे हैं या इसके लिए सहर्ष प्रस्तुत हैं? जैसे-जैसे कहानी सामने आ रही है, यह स्पष्ट हो रहा है कि आआपा की पारदर्शिता और जवाबदेही के दावे उतने ठोस नहीं हैं, जितने लगते हैं। अब परदा हटाने और उन लोगों को जिम्मेदार ठहराने का समय आ गया है, जो इसमें शामिल हैं। अमेरिका को इस वास्तविकता के साथ जागना चाहिए कि भारत बदल रहा है। यह नया भारत है, जिसका सामना करना उसके लिए जरूरी है।
टिप्पणियाँ