गतांक से आगे
प्रभु श्रीराम की मिथिलापुरी यात्रा में महर्षि गौतम की पुन: एक बार चर्चा आती है। बांग्ला कृतिवास रामायण और तुलसी के मानस के अनुसार, शोणभद्र के पार उतरने के पूर्व अहिल्या उद्धार की घटना हो चुकी थी। सिद्धाश्रम क्षेत्र में देवी अहिल्या से प्रभु राम की भेंट हुई थी। आज के बक्सर में अहिरौली बस्ती के अहिल्या और महर्षि गौतम से जुड़े होने के संकेत मिलते हैं। भू-परिक्रमणम् नामक पुस्तक में बक्सर के रामरेखा घाट से इसकी दूरी भी बताई गई है। वहीं वाल्मीकि रामायण से लेकर अधिकांश देशज एवं अन्य विदेशी रामायणों के अनुसार, यह भेंट गंगा पार करने के उपरांत हुई थी। दरअसल प्रकृति परिवर्तन और नदियों का मार्ग बदलना कोई नई बात नहीं है। वैसे भी कहा गया है-
नाना भांति राम अवतारा। रामायण सतकोटी अपारा।।
अर्थात् राम ने अनेक बार अवतार लिया इसलिए रामायण एक नहीं, अनेक हैं। वास्तव में कुछ घटनाएं और स्थान बदलते ही हैं। यह बदलाव निश्चित ही ठहराव की जगह कौतूहल जगाता रहेगा। अहिल्या उद्धार प्रसंग के संदर्भ में मानस कहता है-
आश्रम एक दीख मग माहीं। खग मृग जीव जंतु तहं नाहीं।।
अर्थात् इस वीरान आश्रम के आसपास मनुष्य तो क्या, एक अदद पशु-पक्षी तक नहीं दिखता। असमिया रामायण माधव कंदली के अनुसार, यह स्थान हरा-भरा एवं रमणीक स्थान था। एक अन्य रामायण के अनुसार, अहिल्या शिला में बदल चुकी थीं तो किसी के अनुसार वे शिला के समान हो चली थीं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, श्रीराम के दर्शन से ही अहिल्या शाप मुक्त हुई थीं। वहीं अध्यात्म रामायण के अनुसार, राम चरण के स्पर्श से अहिल्या शाप मुक्त हुई। तेलुगू की मोल्ला रामायण के अनुसार, श्रीराम की चरण रज का अनायास स्पर्श ही अहिल्या के उद्धार का एकमेव कारण है।
दरभंगा के अहियारी और बक्सर के अहिरौली ग्रामों को पर्यटन के हिसाब से प्रचारित करना चाहिए।
अहिल्या उद्धार करके श्रीराम-लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र एवं संतों के संग जनकपुरी पहुंचे जहां विदेहराज जनक ने एक अतिथिशाला में सबके रहने का प्रबंध किया। यह भवन स्वयं में विशेष था। रामायण के अनुसार, यह भवन हर ऋतु के अनुकूल था। तुलसी लिखते हैं-
सुंदर सदनु सुखद सब काला। तहां बासु लै दीन्ह भुआला॥
आगे, माता सीता अपनी मां सुनयना के कहने पर माता पार्वती के पूजन को जाती हैं। यह पूजा मनोवांछित वर की प्राप्ति हेतु थी। जब सीता गौरी पूजा कर रही थीं तब उनकी एक सहेली ने पास के बाग में दो अपरिचित युवकों को देखा। उनके मनोहारी रूप को देख वह सुध-बुध खोकर मूर्च्छित हो गई। तंद्रा टूटने पर उसने यह सम्पूर्ण वृत्तांत अपनी सहेलियों को सुनाया। इसके उपरांत देवी सीता अपनी सहेलियों संग बाग में गई। उधर राम लक्ष्मण गुरु की पूजा के लिए पुष्प लेने उसी बाग में पहुंचे। किंतु वाटिका के सौंदर्य ने उन्हें रुकने को विवश कर दिया था। तुलसी ने मानस में लिखा है-
बागु तड़ागु बिलोकि प्रभु हरषे बंधु समेत…
वास्तव में जगत को सुख देने वाले जगदीश्वर को लुभाने वाले इसी बाग में माता सीता से उनकी प्रथम भेंट हुई। मानस के अनुसार, दोनों एक दूसरे को क्षण भर के लिए वृक्ष की ओट से देखते रहे थे। तमिल कम्ब रामायण के अनुसार, जनकनंदिनी एक विशाल भवन के सामने वाले हिस्से पर खड़ी थीं। वहीं दशरथनंदन के पांव इस भवन के सामने ठहरे हुए थे, जैसे कि दोनों ही इस भेंट के लिए एक दूसरे की प्रतीक्षा कर रहे हों। (क्रमश:)
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