त्रेता में खड़ाऊं की महिमा सभी ने सुनी है। तब इन चरण पादुकाओं ने सत्ता का प्रतिनिधित्व किया। अब कलियुग में ऐसी ही खड़ाऊं ने आस्था और अभिलाषा का एक नया अध्याय लिखा है। ढांचा ढहने के दौरान अयोध्या कार सेवा में शामिल रहे संत मोहन महाराज काठले अंजनसिंगीकर का शरीर मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले पूरा हो गया। अपने मूल स्थान पर विराजमान श्री राम लला के दर्शन की अभिलाषा लिए ही वे दुनिया से चले गए। उनका संकल्प था कि जब तक मंदिर नहीं बनेगा वे केवल एक वस्त्र धारण करेंगे। अंतिम सांस तक भागवतभूषण ब्रह्मचारी संत मोहन महाराज ने अपना संकल्प निभाया।
उनकी उत्कट अभिलाषा का ध्यान रखा उनके उत्तराधिकारी शिष्य पराग महाराज जोशी ने। श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उन्होंने अपने गुरु को पूर्ण वस्त्र अर्पित किए और उनकी पादुकाओं को श्री राम लला के दर्शन कराने अयोध्या लाए। मंदिर के दर्शन प्रभारी गोपाल राव से बात करके उन्होंने दर्शन की व्यवस्था की और भगवान के दर्शन किए।
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