मालदीव सरकार की भारत विरोधी कूटनीति और भारत को नाराज करने की हिमाकत के विरुद्ध वहां के पूर्व राष्ट्रपति ने मुइज्जू सरकार की भर्त्सना की है। भारत और मालदीव के हमेशा से मधुर रहे संबंधों में पिछले दिनों आई खटास को लेकर मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद ने अफसोस व्यक्त किया है। उनका कहना है कि भारत तथा मालदीव के रिश्ते संस्कृति के स्तर पर हैं, हमारे बीच सांस्कृतिक एकरूपता है। यह संबंध सरकारों के बीच संबंधों से कहीं बढ़कर है।
इसमें संदेह नहीं है कि भारत के प्रधानमंत्री की लक्षद्वीप यात्रा पर अभद्र टिप्पणी करने वाले तीन मंत्रियों को मालदीव सरकार ने तभी पद से बर्खास्त कर दिया था। इधर भारत में भी सोशल मीडिया पर मालदीव जाने को लेकर बहिष्कार का अभियान छिड़ गया था। भारतीय पर्यटकों ने मालदीव यात्रा की अपनी बुकिंग निरस्त कराकर लक्षद्वीप का रुख किया।
इस प्रकरण पर दोनों देशों के बीच राजनयिक विवाद खड़ा हो गया था। उसके बाद से दोनों देशों के बीच जारी विवाद समाप्त होने की बजाय गंभीर होता दिख रहा है। मालदीव के विपक्षी नेता ने भी मुइज्जू सरकार की चीन परस्ती और भारत के प्रति दुर्भावना की खुलकर आलोचना की है।
अब पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद का इस बात से चिंतित होना इस मुद्दे पर उनकी गंभीरता दर्शाता है। उन्होंने न सिर्फ मालदीव में भारत से आने वाले पर्यटकों की संख्या में एकाएक कमी आने को लेकर टिप्पणी की है बल्कि उन्होंने इस पूरे प्रकरण पर अफसोस जताया।
नाशीद भारत के दौरे पर आए हैं इसलिए इस सवाल पर गंभीर हैं कि भारत और मालदीव के बीच संबंधों में दरारे आ रही है। उन्हें अपने देश में भारतीय पर्यटकों की तादाद के कम होने का दुख तो है ही, लेकिन सरकार के स्तर पर जिस तरह की बातें उनके यहां चल रही हैं उस पर भी उन्हें अफसोस है।
उल्लेखनीय है कि मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नाशीद ने कहा कि जो कुछ हुआ उसे लेकर उन्हें खेद है। उन्होंने यह भी कहा कि वे चाहते हैं कि भारत के लोग पर्यटन के लिए मालदीव आएं, क्योंकि हमारी मेहमाननवाजी पहले जैसी ही गर्मजोशी भरी रहेगी। नाशीद ने कहा कि मालदीव के तत्कालीन मंत्रियों की गलत टिप्पणियों को लेकर जो कुछ हुआ अब उनको सरकार से बाहर करने के बाद विषय सुलझना चाहिए। दोनों देशों के संबंध सामान्य होने चाहिए।
मालदीव पर चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में नाशीद ने कहा कि चीन की कई संस्थाओं ने मालदीव को कर्ज दिया है। चीन से मिले पैसों को महंगी परियोजनाओं पर व्यय किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि चीन जानबूझकर परियोजनाओं की लागत बढ़ाता जाता है जिससे वह देश कारोबारी योजना असफल होकर उसके कर्ज के जाल में फंस जाए। कर्ज न लौटाने की सूरत में चीन इक्विटी की मांग करता है। यह इक्विटी हाथ से जाते ही वह देश संप्रभुता भी खो देता है।
इसके साथ ही भारत और मालदीव के बीच संबंधों को लेकर पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद का यह भी कहना है कि भारत तथा मालदीव के बीच सांस्कृतिक एकरूपता हैं। दोनों देशों के लोगों के बीच रहे संबंध ज्यादा मायने रखते हैं, ये संबंध सरकारों के आपसी संबंधों की वजह से नहीं हैं। उन्होंने दक्षिण एशिया के संदर्भ में कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध होने का अपना महत्व है इसलिए हमें इन्हें पूरे जतन से सहेजना चाहिए।
नाशीद ने मालदीव की मुइज्जू सरकार के संदर्भ में कहा कि इस सरकार को विरासत में ही भारत के प्रति विरोध की भावना प्राप्त हुई है। यही वह भावना है जिसकी वजह से उन्होंने भारत और प्रधानमंत्री मोदी को लेकर उस प्रकार की बातें कीं। उनका कहना था कि अभी मुइज्जू सरकार को सत्ता की पेचीदगियां समझ नहीं आ रही हैं, जब समझ आएंगी तो मालदीव की विदेश नीति में भारत का पहले जैसा प्रमुख स्थान होगा।
मालदीव पर चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में नाशीद ने कहा कि चीन की कई संस्थाओं ने मालदीव को कर्ज दिया है। चीन से मिले पैसों को महंगी परियोजनाओं पर व्यय किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि चीन जानबूझकर परियोजनाओं की लागत बढ़ाता जाता है जिससे वह देश कारोबारी योजना असफल होकर उसके कर्ज के जाल में फंस जाए। कर्ज न लौटाने की सूरत में चीन इक्विटी की मांग करता है। यह इक्विटी हाथ से जाते ही वह देश संप्रभुता भी खो देता है। इसलिए चीन से व्यवहार करते हुए इस चीज का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
मालदीव तथा चीन के बीच रक्षा क्षेत्र में हुए समझौते के बारे में पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद का कहना है कि इस समझौते में मुख्य रूप से रबर की गोलियां तथा आंसू गैस उपकरणों को खरीदने की बात है। नाशीद का मानना है कि सरकार बंदूक की नली से नहीं चलाई जाती। मालदीव को न रबर की गोलियों की जरूरत है, न आसूं गैस के उपकरणों की।
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