आखिरकार नाटो में एक सदस्य के नाते स्वीडन का नाम दर्ज हो ही गया। दो साल चली लंबी कवायद, सवाल—जवाब, आरोप—प्रत्यारोप और हां—नां के बाद यह संभव हो पाया है। कल स्वीडन के नाटो से जुड़ने की आधिकारिक घोषणा के बाद यूरोप के उस हिस्से के समीकरणों में अहम बदलाव तो देखने में आएंगे ही, उस रूस का क्या होगा जो नाटो को इस कदम को न उठाने की चेतावनी दे रहा था? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन पर अब दुनिया भर के कूटनीतिक माथापच्ची कर रहे होंगे।
स्वीडन नाटो का 32वां सदस्य देश घोषित किया गया है। इस बारे में नाटो महासचिव जेंस स्टोल्टेनबर्ग का कल बयान जारी हुआ है। इस बयान में नाटो महासचिव ने कहा है कि आज का दिन ऐतिहासिक है। आज नाटो में स्वीडन को एक सदसरू के नाते शामिल किया गया है और उसे उसका अधिकार प्राप्त हुआ है। अब नाटो की नीतियों तथा निर्णयों में स्वीडन के मत को भी समाविष्ट किया जाएगा।
स्वीडन के नाटो में जुड़ने से पहले वह लगभग 200 साल से गुट निरपेक्ष रहा, यानी वह दो ध्रुवीय दुनिया में किसी भी ध्रुव के नजदीक नहीं रहा है। दोनों प्रमुख धड़ों से अलग रहने के बाद, स्वीडन ने नाटो से जुड़ने की ओर कदम बढ़ाया, लेकिन राह आसान नहीं रही। लगभग दो साल इस बात को लेकर सदस्य देशों के बीच चर्चा—वार्ता चली, दूसरी तरफ रूस की चेतावनी भी थी कि स्वीडन को इस संगठन में न शामिल किया जाए। लेकिन आखिर स्वीडन नाटो का हिस्सा बन गया।
नए घटनाक्रम के बाद, उस पर नाटो का बयान आने के बाद स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टीरसन इसे स्वतंत्रता की विजय बता रहे हैं। उनका कहना है कि लोकतांत्रिक पद्धति से, निष्पक्ष, संप्रभु तथा एकमत होकर स्वीडन ने नाटो से जुड़ने का निर्णय किया है। जिस कार्यक्रम में स्वीडिश के प्रधानमंत्री यह वक्तव्य दे रहे थे उसमें खुद अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भी बैठे थे। अमेरिका नाटो में एक प्रभावी आवाज रखता है।
रूस—यूक्रेन जंग के शुरू होने के बाद से ही रूस के दोनों पड़ोसी देश स्वीडन तथा फिनलैंड रूस की तरफ से हमले की आशंका से घिर गए थे। उन्होंने इससे बचने के लिए पूरी कोशिश की कि कैसे भी नाटो के सदस्य बन जाएं। उन्हें भय था कि उनकी इस कोशिशों से चिढ़कर रूस उन पर हमलावर हो जाएगा क्योंकि रूस नहीं चाहता था कि नाटो का प्रभाव उसकी चौखट तक आ जाए।
आखिर स्वीडन नाटो का हिस्सा क्यों बना? जानकारों के अनुसार अब वह ज्यादा सुरक्षित देश होगा। यह बात नाटो महासचिव स्टोल्टेनबर्ग ने भी कही कि स्वीडन 200 साल से अधिक वक्त तक गुट निरपेक्ष रहा और आज अनुच्छेद 5 के अंतर्गत उसे सुरक्षा की गारंटी मिल गई है। कल स्वीडन की सरकार ने एक अहम बैठक करके खुद के नाटो का हिस्सा बनने की घोषणा की।
इस नए घटनाक्रम के बाद रूस के सामने क्या विकल्प हैं? रूस—यूक्रेन जंग के शुरू होने के बाद से ही रूस के दोनों पड़ोसी देश स्वीडन तथा फिनलैंड रूस की तरफ से हमले की आशंका से घिर गए थे। उन्होंने इससे बचने के लिए पूरी कोशिश की कि कैसे भी नाटो के सदस्य बन जाएं। उन्हें भय था कि उनकी इस कोशिशों से चिढ़कर रूस उन पर हमलावर हो जाएगा क्योंकि रूस नहीं चाहता था कि नाटो का प्रभाव उसकी चौखट तक आ जाए।
रूस के दोनों पड़ोसी देशों में से फिनलैंड तो पिछले साल ही नाटो में शामिल हो गया था। स्वीडन कल सदस्य बन गया है। यह स्थिति रूस को बेशक दुविधा में डालती है। वह इसलिए कि बाल्टिक सागर के चारों तरफ के देश नाटो से जुड़ गए हैं, गैर नाटो देश बस एक बचा है और वह है रूस। यह स्थिति रूस के लिए मामला संवेदनशील बनाती है। रूस ने स्वीडन की ओर से अब कोई खतरा पैदा न हो, इस गरज से स्वीडन के नाटो से जुड़ने की घोषणा होते ही बयान दे दिया कि यदि पड़ोसी स्वीडन में नाटो के सैनिक तैनात किए गए तो रूस फौरन इसके विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई करेगा।
जैसा पहले बताया, स्वीडन के नाटो से जुड़ने की राह आसान नहीं रही, खासकर तुर्किए की तरफ से इसका भरपूर विरोध किया गया। तुर्किए की अपनी ही मांग थी। वह चाहता था कि स्वीडन में जो कुर्दिश विद्रोही गुट कथित तौर पर पनाह लिए हुए हैं उन पर कड़ी चोट की जाए। वह स्वीडन से इसलिए भी नाराज था क्योंकि वहां इस्लाम और कुरान के विरुद्ध प्रदर्शन किए जा रहे थे। तुर्किए को स्वीडन को शामिल करने के लिए अमेरिका ने राजी किया इसलिए स्वीडन के नाटो में आने में अमेरिका की विशेष भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। अमेरिका सरकार रूस के विरुद्ध आक्रामक तेवर अपनाए ही हुए है। उसे इस बात से सहूलियत महसूस होगी ही कि रूस के मुहाने पर अब उनके संगठन का सदस्य देश है। इससे रूस पर एक दबाव तो आएगा ही।
उल्लेखनीय है कि नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक संधि संगठन (NATO) 1949 में बना था। इसके शुरुआती सदस्यों में ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस और कनाडा को मिलाकर अन्य बारह देश शामिल थे। आज इसके 32 सदस्य हैं। नाटो का गठन किया गया था पूर्ववर्ती सोवियत संघ के फैलाव को रोकना। संगठन का नियम है कि नाटो के किसी भी सदस्य देश पर हमला उसके सभी सदस्य देशों के विरुद्ध आक्रमण माना जाए। यहां बता दें कि नाटो की अपनी अलग से कोई फौज नहीं है लेकिन संकट होने पर इसके सभी सदस्य मिलकर कार्रवाई करने को तैयार रहते हैं। संगठन के सदस्य देशों के आपस में संयुक्त सैनिक अभ्यास होते रहे हैं।
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