असम सरकार ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक अधिनियम 1935 को समाप्त कर दिया है। बता दें कि यह अधिनियम 7-8 साल की उम्र के बच्चों के निकाह की अनुमति देता था। इस कारण राज्य में कम उम्र की मुस्लिम बच्चियों का भी निकाह हो जाता था। असम की भाजपा सरकार इसे कुरीति मानती है और इसलिए उसने इसे समाप्त कर दिया है। कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने इसका विरोध किया है। इन दोनों दलों के विधायकों ने 26 फरवरी को असम विधानसभा में राज्य सरकार के इस निर्णय का खुलकर विरोध किया। इससे मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा गुस्से में आ गए।
उन्होंने कहा, ‘‘असम मुस्लिम विवाह अधिनियम के अंतर्गत पांच-छह वर्ष के बच्चों का निकाह कर दिया जाता था। इसलिए हमने इस अधिनियम को हटाया है। मैं आप सबकी दुकानें बंद कर दूंगा।’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘मैं अपने जीते जी असम में बाल विवाह नहीं होने दूंगा। राज्य सरकार के पास 2026 तक बाल विवाह को पूरी तरह समाप्त करने की योजना है।’’
मुख्यमंत्री ने बताया कि वे राज्य में समान नागरिक संहिता को सामने के दरवाजे से लाएंगे। इसका परंपरागत प्रथाओं और कुप्रथाओं से कोई लेना-देना नहीं है। जानकार मान रहे हैं कि असम में भी जल्दी ही समान नागरिक संहिता (यूसीसी) बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
सरकार ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम विवाह और तलाक से संबंधित सभी मामले अब विशेष विवाह अधिनियम के दायरे में आएंगे। इस कारण सरकार ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 (जिसके तहत 94 मुस्लिम रजिस्ट्रार अभी भी कार्य कर रहे थे) को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया है। यानी अब कोई भी मुस्लिम विवाह या तलाक पंजीकृत नहीं किया जाएगा। अब इस तरह के सभी मामले विशेष विवाह अधिनियम के माध्यम से सुलझाए जाएंगे।
मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण का अधिकार अब जिला आयुक्त और जिला रजिस्ट्रार को सौंप दिया जाएगा। निरस्त अधिनियम के तहत जिन 94 मुस्लिम पंजीयकों को उनके कर्तव्यों से मुक्त किया गया है, उन्हें 2,00,000 रु. का एकमुश्त मुआवजा दिया जाएगा। राज्य सरकार का मानना है कि इस निर्णय का व्यापक सामाजिक प्रभाव पड़ेगा और बाल विवाह जैसी कुरीतियां बंद होंगी।
इस निर्णय को लेकर एआईएमआईएम नेता वारिस पठान ने भाजपा सरकार की आलोचना की है। उन्होंने इसे मुस्लिम विरोधी करार दिया और कहा कि यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त करने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह निर्णय राज्य में अवैध विवाह के मामलों को जन्म दे सकता है।
क्षेत्रीय पार्टी एजेपी के अध्यक्ष लुरिन गोगोई का कहना है कि राज्य सरकार का यह एकतरफा कदम न केवल स्थापित सामाजिक रीति-रिवाजों और मजहबी मान्यताओं को चुनौती देता है, बल्कि जन भावनाओं की उपेक्षा करके सामाजिक अशांति भड़काने की भी क्षमता रखता है। इसके अतिरिक्त समाजवादी पार्टी के सांसद एस.टी. हसन ने भी असम सरकार के निर्णय का विरोध किया है। इस विरोध के जवाब में असम के मंत्री पीयूष हजारिका ने कहा कि जो लोग इसे मुस्लिम विरोधी बता रहे हैं, वे कुतर्क के अलावा और कुछ नहीं कर रहे।
भले ही विपक्ष के नेता इस सुधारवादी कदम का विरोध करें, लेकिन असम के लोग इससे बेहद प्रसन्न हैं। उनका कहना है कि बाल विवाह करना एक कुरीति है, इसे समाप्त किया ही जाना चाहिए।
टिप्पणियाँ