मोदी हटाओ अभियान में जुटे राजनीतिक भानूमती के कुनबे की पंजाब में स्थिति रोचक बन गई है, इसे सत्तर के दशक में आई फिल्म लीडर के गीत ‘हमीं से मोहब्बत हमीं से लड़ाई की तर्ज पर गुनगुनाया जा रहा है। इसे नूरा कुश्ती कहें या फिक्स मैच परन्तु अभी तक देश में पंजाब ही ऐसा राज्य उभर कर सामने आया है जहां इंडी गठजोड़ के दो घटक दूसरे राज्यों में एक साथ तो पंजाब में परस्पर लड़ते दिखाई देंगे।
लोकसभा चुनाव करीब है। इस बीच पार्टियां तैयारियों में जुटी हैं। पंजाब की राजनीति में एक नया रंग चढ़ने वाला है। इंडी गठबंधन के घटक दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, गोवा व गुजरात में समझौता हो गया है लेकिन पंजाब में जहां पर कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में है वहां दोनों पार्टियां अलग-अलग लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी। अन्य राज्यों में एक साथ और पंजाब में अलग-अलग होने के कारण एक भ्रम की स्थिति भी बन गई है। क्योंकि दिल्ली में जहां कांग्रेस आप सरकार के कार्यों की सराहना करेगी। वहीं, पंजाब में आप सरकार को कोसेगी। देश के अन्य हिस्सों में आप कांग्रेस के नेताओं पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोपों का बचाव करने को विवश होगी वहीं पंजाब में कांग्रेसी नेताओं पर बनाए गए भ्रष्टाचार के केसों को अपनी उपलब्धि बता कर जनता के बीच प्रचार करेगी। जानकारी के अनुसार दोनों पार्टियों ने पंजाब में गठबंधन नहीं करने का फैसला खासा सोच-समझ कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस पंजाब में न तो विपक्ष की भूमिका नहीं गंवाना चाहती है। वहीं, कांग्रेस की रणनीति है कि पंजाब में सरकार विरोधी वोट दूसरी पार्टी को न जाकर उन्हें ही पड़ें। पार्टी के रणनीतिकारों का अनुमान है कि कांग्रेस और आप अगर मिलकर पंजाब में चुनाव लड़ें तो सरकार की एंटी इनकंबेंसी का लाभ अकाली दल या भाजपा को हो सकता था। जबकि अलग-अलग लड़ने से सत्ताविरोधी वोट दो हिस्सों में बंट जाएगा। वो भी तब जब अकाली दल और भाजपा का गठबंधन हो जाएगा, क्योंकि किसानी संघर्ष के कारण दोनों पार्टियों का गठबंधन नहीं हो पाया है। अगर दोनों पार्टियों का गठबंधन नहीं होता है तो वोट तीन हिस्सों में बंट सकता है। क्योंकि आम आदमी पार्टी पंजाब में सत्ता में है और कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस हाईकमान ने एक तीर से दो निशाने किए है। पंजाब में आप के साथ गठबंधन नहीं करके सरकार ने न सिर्फ अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को साधा बल्कि वह एंटी इनकंबेंसी वोट को भी अपने पाले में डालने की कोशिश करेगी।
दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह गठबंधन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों को भारी भी पड़ सकता है, क्योंकि पंजाब में जहां कुछ-कुछ सत्ताविरोधी रुझान देखने को मिल रहा है वहीं देश राम मंदिर बनने के बाद भाजपा के पक्ष में लहर चल रही है। अगर उक्त दोनों फैक्टर मिल जाते हैं तो यह कांग्रेस व आप दोनों के लिए घातक होगा और इसका लाभ भाजपा को हो सकता है। कांग्रेस व आप के इस घालमेल को पंजाब के लोग नूरा कुश्ती बताने लगे हैं और दोनों दलों को एक ही चश्मे से देखने लगे हैं। कांग्रेस की नाकामियों, परिवारवाद व भ्रष्टाचार के आरोपों के छींटे आम आदमी पार्टी पर भी पड़ सकते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोपों की सफाई कांग्रेस को भी देनी होगी और केजरीवाल को देश की जनता को यह भी बताना होगा कि अन्ना आंदोलन के दौरान उन्होंने सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह की सरकार सहित अनेक बड़े कांग्रेसी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, उनका क्या बना? पंजाब में कांग्रेसी नेता केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह के भ्रष्टाचार को लेकर खूब ब्यानबाजी करते रहे हैं परंतु अब गठजोड़ के बाद दोनों दल भ्रष्टाचार के आरोपों से ही घिरे नजर आएंगे। कांग्रेसी व आप के नेताओं को लोगों को यह समझाना मुश्किल हो जाएगा कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं या साथ? पंजाब कांग्रेस शुरू से ही सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं करने के पक्ष में थी। जिसका मुख्य कारण यह था कि आप ने कांग्रेस के दो दर्जन के करीब नेताओं पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज कर उन्हें जेल की हवा खिलाई है।
पंजाब में दोनों पार्टियां एक दूसरे से उलझेगी और चंडीगढ़, दिल्ली समेत अन्य राज्यों में दोनों पार्टियां एक दूसरे के सुर में सुर मिलाती नजर आएगी। पंजाब ही नहीं पूरे देश में संभवत: यह अनोखी स्थिती होगी।
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