भारतरत्न लालकृष्ण आडवाणी का पूरा जीवन देश और समाज को समर्पित रहा है। राजनीतिक शुचिता उनके व्यवहार में दिखती है। यही कारण है कि असंभव लगने वाले कार्य को भी उन्होंने हमेशा संभव करके दिखाया
वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को इस वर्ष भारतरत्न के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से विभूषित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं उन्हें यह सम्मान प्राप्त होने की सूचना दी और उन्हें ‘एक्स’ पर बधाई देते हुए पूरे देश को इसकी जानकारी दी। इससे श्री आडवाणी और उनका परिवार अभिभूत हो गया। उनके शुभचिंतक और समर्थक भी खुश हो गए।
कुशल संगठनकर्ता
लंबे समय तक भारतीय जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी का कुशल नेतृत्व करने वाले लालकृष्ण आडवाणी की गणना एक कुशल संगठनकर्ता के रूप में की जाती रही है। बहुत सारे प्रसंग हैं, जिनसे उनके व्यक्तित्व को अच्छी तरह जाना जा सकता है। 1973 से 2005 के कालखंड में शायद ही कोई शनिवार और रविवार ऐसा रहा हो जब आडवाणी जी अपने कार्यकर्ताओं के प्रबोधन के लिए दिल्ली से बाहर न गए हों। कार्यकर्ताओं के सुझावों को वे बड़े ध्यान से सुनते थे और उनका समुचित समाधान भी करते थे। आडवाणी जी को किसी ने कभी क्रोधित होते नहीं देखा। छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी वे पूरा सम्मान देते हैं।
अपने अथक परिश्रम से आडवाणी जी ने जिन कार्यकर्ताओं का निर्माण किया उन्होंने संसद में दो सदस्यों वाली भाजपा को 1991 के लोकसभा चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई। पार्टी के उत्थान का दूसरा कारण था 1990 में उनके द्वारा निकाली गई सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा। ‘नवभारत टाइम्स’ के तत्कालीन मुख्य संपादक राजेंद्र माथुर ने एक चुनाव के समय मुझसे कहा था, ‘‘भाजपा केंद्र की सत्ता में कभी नहीं आएगी।’’ लेकिन फिर थोड़ी देर बाद बोले, ‘‘हां, यदि किसी तरह से हिंदू मतों का ध्रुवीकरण हो जाए तो भाजपा सत्ता में आ सकती है।’’ आडवाणी जी की रथ यात्रा ने हिंदू समाज को एकजुट करने का काम ही किया।
सभी को देते हैं सम्मान
आडवाणी जी अपने नाम से आने वाले पत्रों का उत्तर भेजते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि पत्र में यथास्थान ‘कृपया’ या ‘प्लीज’ का संबोधन अवश्य किया जाए। हमारे द्वारा टाइप किए गए किसी पत्र या उनके लेख में कोई संशोधन करना होता था तो वे लिखते थे- ‘प्लीज टाइप, केवल ‘प्लीज’नहीं। अपने सहायकों को भी उचित सम्मान देना वे जानते हैं। प्यार में भले ही विश्वंभर कह कर उन्होंने मुझे कभी बुलाया हो, क्योंकि वर्षों तक मैं उन्हीं के कमरे में उनके परिवार के एक सदस्य की तरह रहकर काम करता था, लेकिन अपने सहायकों के नाम के साथ जी लगाना वे नहीं भूलते थे।
भारतीय जनता पार्टी के मुंबई अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में जब आडवाणी जी ने घोषणा की कि भविष्य में जब भी हमें केंद्र में सरकार बनाने का अवसर मिलेगा, उसके प्रधानमंत्री वाजपेयी जी होंगे। यह सुनकर सब लोग आश्चर्यचकित रह गए थे। विदेश से जब भी कोई बड़ा राजनेता भारत आता था तो अपने समकक्ष मंत्री और सरकारी अधिकारियों से मिलने के बाद विपक्ष के नेता आडवाणी जी से अवश्य मिलता था।
मुंबई अधिवेशन से लौटकर आने वाले कई बड़े पत्रकार सवाल करने लगे,‘‘आडवाणी जी को हो क्या गया है? सारी दुनिया उन्हें भावी प्रधानमंत्री मान रही थी और उन्होंने स्वयं ही वाजपेयी जी के नाम की घोषणा कर दी।’’
उस समय मैंने कहा,‘‘भाषण सुनकर मुझे भी आश्चर्य हुआ था, लेकिन बाद में सोचा कि रथ यात्रा निकालने वाले आडवाणी जी रामचरितमानस में उल्लिखित आदर्शों का पालन करना भी जानते हैं। भरत की भूमिका निभाते हुए उन्होंने पहले ही प्रधानमंत्री की कुर्सी अपने अग्रज वाजपेयी जी के नाम कर दी।’’ मुझे ध्यान है, आडवाणी जी ने एक वरिष्ठ पत्रकार से कहा था, ‘‘रामचरितमानस में राम राज्य की अवधारणा क्या है, यह मुझे लिखित चाहिए।’’ और उनके अनुरोध का पालन किया गया था।
भारतीय जनता पार्टी के मुंबई अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में जब आडवाणी जी ने घोषणा की कि भविष्य में जब भी हमें केंद्र में सरकार बनाने का अवसर मिलेगा, उसके प्रधानमंत्री वाजपेयी जी होंगे। यह सुनकर सब लोग आश्चर्यचकित रह गए थे
सिद्धांत के पक्के
आडवाणी जी के व्यक्तित्व को समझाता एक और प्रसंग है। अवकाश के दिन कोई बड़ा उद्योगपति आडवाणी जी से मिलने उनके पंडारा पार्क के निवास पर आया। आडवाणी जी से मिलकर जैसे ही वे सज्जन बाहर निकले, उन्होंने मुझे बुलाया। टेबल के पास रखे एक ब्रीफकेस की ओर इशारा करके उन्होंने कहा, ‘‘इस बैग में पैसे हैं। जो सज्जन अभी मिले थे वे पार्टी फंड के लिए देकर गए हैं। छुट्टी का दिन होने के कारण उन्हें पार्टी आॅफिस नहीं भेजा। आप मेरी गाड़ी लीजिए और पार्टी आॅफिस जाकर इसे वेदप्रकाश गोयल जी को दे दीजिए। उनसे कहिए कि पैसों की रसीद काट कर दानदाता के पास भिजवा दें और मुझे भी सूचित करें।’’ वर्तमान में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल जी के पिता वेदप्रकाश गोयल जी उस समय पार्टी के कोषाध्यक्ष थे।
भारतीय जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी का कुशल नेतृत्व करने वाले लालकृष्ण आडवाणी की गणना एक कुशल संगठनकर्ता के रूप में की जाती रही है। बहुत सारे प्रसंग हैं, जिनसे उनके व्यक्तित्व को अच्छी तरह जाना जा सकता है। 1973 से 2005 के कालखंड में शायद ही कोई शनिवार और रविवार ऐसा रहा हो जब आडवाणी जी अपने कार्यकर्ताओं के प्रबोधन के लिए दिल्ली से बाहर न गए हों। कार्यकर्ताओं के सुझावों को वे बड़े ध्यान से सुनते थे और उनका समुचित समाधान भी करते थे। आडवाणी जी को किसी ने कभी क्रोधित होते नहीं देखा। छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी वे पूरा सम्मान देते हैं।
परिवारवाद के विरोधी
एक बार लोकसभा के चुनाव चल रहे थे। आडवाणी जी नई दिल्ली और गुजरात के गांधीनगर, दोनों जगहों से प्रत्याशी थे। एक दिन वे गुजरात में थे, तभी उनसे बात करने के लिए एक उद्योगपति का फोन आया। उसने मुझसे कहा, ‘‘पार्टी फंड के लिए कुछ पैसे देने की बात आडवाणी जी से हो चुकी है। उनसे कहिएगा कि यदि वे स्वयं पार्टी फंड लेना स्वीकार करें तो मैं राशि दुगुनी कर दूंगा।’’ आडवाणी जी जब लौटकर दिल्ली आए तो मैंने उन्हें यह बात बताई। आडवाणी जी ने कहा, ‘‘यदि उनका फोन दुबारा आए तो कहना कि मैं अपने हाथ से पैसे नहीं लूंगा। भले ही राशि दुगुनी करने की बजाय आधी कर दें, लेकिन देना पार्टी के कोषाध्यक्ष को ही है।’’
आडवाणी जी गांधीनगर और नई दिल्ली, दोनों जगहों से चुनाव जीत गए थे। लोग बधाई देने उनके पास आ रहे थे। अमदाबाद के सांसद हरिनभाई पाठक आडवाणी जी के साथ ड्राइंग रूम में बैठे हुए थे। उन्होंने सुझाव दिया, ‘‘आप नई दिल्ली की सीट अपने पास रखिए और गांधीनगर की सीट छोड़ दीजिए। वहां से आप जयंत (पुत्र) को चुनाव लड़व़ाइए। वे आसानी से जीत जाएंगे।’’ आडवाणी जी तैश में आ गए और बोले, ‘‘कभी नहीं। मुझे मालूम है कि गांधीनगर से जयंत चुनाव जीत जाएगा, लेकिन मुझे परिवारवाद नहीं चलाना है।’’
अपने अथक परिश्रम से आडवाणी जी ने जिन कार्यकर्ताओं का निर्माण किया उन्होंने संसद में दो सदस्यों वाली भाजपा को 1991 के लोकसभा चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई। पार्टी के उत्थान का दूसरा कारण था 1990 में उनके द्वारा निकाली गई सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा।
सबके करते हैं कार्य
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक होने के कारण बहुत से लोग मानते हैं कि शायद आडवाणी जी मुसलमानों से परहेज करते हैं। लेकिन लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि एक मुल्ला जी आडवाणी जी की संस्तुति पर हज यात्रा पर गए थे। एक दूसरा उदाहरण भी है। मोहल्ला किला, आंवला, जिला-बरेली की एक पढ़ी-लिखी और संपन्न महिला जीबा हकीम को आडवाणी जी के प्रयासों से सुरक्षा मिली थी। उसके माता-पिता, चाचा और भाई की 1992 में संपत्ति हड़पने के लिए हत्या कर दी गई थी। परिवार की एकमात्र जीवित सदस्या जीबा हकीम ही थी। उसकी हत्या की भी साजिश रची जा रही थी। इन दोनों घटनाओं का विस्तृत वर्णन मेरी पुस्तक ‘आडवाणी के साथ 32 साल’ में किया गया है।
आडवाणी जी एक न्यायप्रिय व्यक्ति हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनते ही उन्होंने फिल्म्स डिवीजन के संयुक्त मुख्य निर्माता के.के.कपिल का स्थानांतरण दिल्ली से पूना कर दिया था और तत्काल प्रभाव से उन्हें छुट्टी पर भेज दिया गया था। 1950 में मेरी नियुक्ति फिल्म्स डिवीजन, मुंबई में हुई थी और कपिल जी के नेतृत्व में ही मैंने 1962 तक काम किया था। कपिल जी ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि उनके ऊपर जो आरोप लगाए गए हैं, वे निराधार हैं। एक सरकारी कर्मचारी होने के कारण मैंने तो अपने बॉस मुख्य निर्माता के आदेशों का पालन किया है। और वे लिखित आदेश कार्यालय की मेरी आलमारी में रखे हैं। आडवाणी जी ने उन्हें मिलने का समय दिया और उन्होंने अपने बॉस के आदेश दिखाए। इसके बाद उन्होंने उनके स्थानांतरण को निरस्त कर दिया। ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं।
इस घटना का उल्लेख मैंने ‘दिनमान’ के एक पत्रकार मित्र से किया तो वे बोल पड़े,‘‘ऐसे नरम स्वभाव के हैं आपके नेता आडवाणी जी?’’ मैंने कहा, ‘‘नहीं, उन्होंने एक न्यायप्रिय न्यायाधीश की भूमिका निभाई। पहले उनके सामने जो तथ्य रखे गए थे, वे कपिल जी के विरुद्ध थे। लेकिन कपिल जी ने अपने बचाव में जो तथ्य आडवाणी जी के सामने रखे वे उन्हें निर्दोष साबित करने वाले थे। अत: एक निर्भीक न्यायाधीश की भूमिका निभाते हुए उन्होंने कपिल जी का स्थानांतरण निरस्त कर दिया। अपने ही आदेश को निरस्त करना उनकी महानता थी, कमजोरी नहीं।’’
ऐसे अनेक प्रसंग और घटनाएं हैं, जो आडवाणी जी के सार्वजनिक जीवन को निखारती हैं। वे सच में भारतरत्न हैं।
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