ज्ञानवापी प्रकरण में वादिनी राखी सिंह के माध्यम से प्रार्थना पत्र वाराणसी जनपद न्यायालय में दिया गया था कि एएसआई के सर्वे के दौरान अभी तक आठ तहखानों का सर्वे नहीं हो सका है। उन आठ तहखानों का भी सर्वे कराया जाना चाहिए। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि ऐसा कोई आधार नहीं बनता है कि और भी सर्वे की कार्रवाई की जाए। न्यायालय ने सुनवाई के लिए 15 फरवरी की तिथि नियत की है।
उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में वाराणसी जनपद के जिला जज ए के विश्वेश ने अपने कार्यकाल के अंतिम निर्णय दिया था कि जिला मजिस्ट्रेट, वाराणसी / रिसीवर को निर्देश दिया जाता है कि यह सेटेलमेण्ट रकबा नंबर -9130 थाना-चौक, जिला वाराणसी में स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने जो कि वादग्रस्त सम्पत्ति है, वादी तथा काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के द्वारा नाम निर्दिष्ट पुजारी से पूजा, राग-भोग, तहखाने में स्थित मूर्तियों का कराएं और इस उद्देश्य के लिए 7 दिन के भीतर लोहे की बाड़ आदि में उचित प्रबंध करें। न्यायालय का निर्णय आने के आठ घंटे के भीतर ही ज्ञानव्यापी परिसर में स्थित व्यास जी के तहखाने में पूजा पाठ शुरू कराया गया । न्यायालय के आदेश के बाद 1993 के बाद व्यास जी के तहखाने में पूजा शुरू हुई।
वादी शैलेंद्र पाठक के प्रार्थना पत्र में यह उल्लेख किया गया था कि मंदिर भवन के दक्षिण दिशा में स्थित तहखाने में मूर्ति की पूजा होती थी। माह दिसम्बर 1993 के बाद पुजारी श्री व्यास जी को उक्त प्रांगण के बेरिकेट वाले क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया गया। इस कारण तहखाने में होने वाले राग-भोग आदि संस्कार भी रुक गए। इस बात के पर्याप्त आधार है कि वंशानुगत आधार पर पुजारी श्री व्यास जी ब्रिटिश शासन काल में भी वहां पर कब्जे में थे और उन्होंने माह दिसम्बर 1993 तक प्रश्नगत भवन में पूजा अर्चना की है। बाद में तहखाने का दरवाजा हटा दिया गया।
हिन्दू धर्म की पूजा से सम्बन्धित सामग्री बहुत सी प्राचीन मूर्तियों और धार्मिक महत्व की अन्य सामग्री उक्त तहखाने में मौजूद हैं। तहखाने में मौजूद मूर्तियों की नियमित रूप से पूजा की जानी आवश्यक है। राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने बगैर किसी विधिक अधिकार के तहखाने के भीतर पूजा वर्ष 1993 के दिसम्बर माह में रोक दी थी।
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