खंभों पर सरगम, पानी पर तैरते ईंट, जी हां ये सुनने में अटपटा जरूर लग रहा है, लेकिन भारत देश में कई अद्भुत मंदिर हैं। जिनके रहस्य आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है। ऐसा ही एक मंदिर है। तेलंगाना के मुलुगू जिले के पालमपेट गांव में जो अपनी अनोखी संरचना को लेकर विख्यात है। वो काकतीयरुद्रेश्वर मंदिर है।
जिसे रामाप्पा मंदिर भी कहा जाता है। जिसके कंस्ट्रक्शन और इंजीनियिंग की कहानी बेहद खास है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। 12वीं सदी में बना यह इकलौता मंदिर है, जिसका नाम इसके बनाने वाले शिल्पकार रामप्पा के नाम पर पड़ा है। इस मंदिर का निर्माण काकतीय वंश के महाराज रूद्र देव ने 1163 में किया था। इसकी मजबूती और इंजीनियरिंग का अंदाजा इसी से लगता है कि जब देश में इस दौर के ज्यादातर मंदिर प्राकृतिक या मानवीय कारणों से खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं, यह आज भी शान से अपने बुलंद इतिहास की गवाही दे रहा है।
तारे के आकार वाले इस मंदिर की एक और विशेषता यह भी है कि यह त्रिकुटल्यम के नाम से भी विख्यात है, क्योंकि इस मंदिर में एक साथ भगवान शिव, विष्णु और सूर्य देवता विराजमान हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की एक साथ पूजा की परंपरा तो आपने देखी होगी, लेकिन इस मंदिर में ब्रह्मा की जगह सूर्य देव को आराध्य के रूप में स्थापित किया गया है।
करीब 900 साल पुराने इस मंदिर की अनेक विशेषताओं में से एक ये भी है कि इसके गोपुरम को खास ईंटों से बनाया गया है। यह ईंटें इतनी हल्की हैं कि इन्हें पानी में डाला जाए तो वह तैरने लगती हैं। इसी के साथ इस मंदिर में कुछ विशेष खंभे भी हैं। जिन पर हल्की सी थाप मारने पर उनमें से सरगमप की धुन निकने लगती है। ये खंभें बेहद आकर्षक हैं। माना जाता है कि इस मंदिर को बनाने में 40 साल का समय लगा था। यह मंदिर 6 फीट ऊंचे आधार पर खड़ा है और दीवारों पर रामायण और महाभारत की कहानी को नक्काशियों के जरिए उकेरा गया है।
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