देहरादून। उत्तराखंड में 18वें मुख्य सचिव पद पर 1988 बैच की आईएएस अधिकारी राधा रतूड़ी को नियुक्त किया गया है। वह राज्य की पहली महिला आईएएस हैं जो सर्वोच्च प्रशासनिक पद, मुख्य सचिव तक पहुंची हैं। हालांकि उनके रिटायरमेंट में अभी दो महीने शेष हैं और उन्हें सेवा विस्तार भी दिया जा सकता है। इसके पीछे बड़ी वजह आगामी लोकसभा चुनाव हैं और उन्हें राज्य में चुनाव कराने का लंबा अनुभव रहा है। वह दस साल तक राज्य की मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पद पर भी रही हैं।
मुख्य सचिव का पदभार ग्रहण करने के बाद राधा रतूड़ी ने कहा कि उनकी प्राथमिकता में राज्य में कॉमन सिविल कोड को लागू करना है। उल्लेखनीय है इसे छह तारीख को विधानसभा में पेश किया जाना है। उन्होंने कहा ये देश का सबसे प्रभावी कानून होगा, जो बराबरी का न्याय देगा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार का ये पहला कैबिनेट निर्णय था। उन्होंने विश्वास जताया कि कॉमन सिविल कोड से महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे। राधा रतूड़ी ने कहा कि ईमानदार प्रशासनिक व्यवस्था, समयबद्ध प्रशासनिक व्यवस्था और दूरगामी सोच प्रशासनिक व्यवस्था देने के लिए वह काम करती रही हैं। सुदूर पहाड़ी गांवों तक रहने वालों को जनसुविधाएं मिलें, ऐसा वह प्रयास करेंगी।
राधा रतूड़ी मूलतः मध्य प्रदेश से हैं। आईएएस बनने से पहले भारतीय सूचना सेवा और मीडिया हाउस में भी सेवाएं दी थीं। सिविल परीक्षा में उनका चयन आईपीएस के लिए हुआ। ट्रेनिंग के दौरान ही उन्होंने फिर से सिविल सेवा की परीक्षा देकर आईएएस कैडर में स्थान पा लिया। ट्रेनिंग के दौरान ही उनका परिचय उनके बैचमेट रहे आईपीएस अनिल रतूड़ी से हुआ और दोनों बाद में परिणयसूत्र में बंध गए। उसके बाद से वह उत्तराखंड की संस्कृति में रच बस गईं। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में भी वह प्रशासनिक सेवाएं दे चुकी हैं। उत्तराखंड में वो टिहरी और देहरादून की जिला अधिकारी रह चुकी है। अभी तक वो अपर मुख्य सचिव थी और गृह कार्मिक जैसे महत्वपूर्ण पद को संभालें हुई थी।
भाजपा महिला मोर्चा सहित महिला संगठनों ने किया निर्णय का स्वागत
पहली महिला मुख्य सचिव के रूप में राधा रतूड़ी की नियुक्ति पर भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की प्रदेश प्रवक्ता कल्पना बोरा ने खुशी जाहिर की। उन्होंने सीएम पुष्कर सिंह धामी का आभार प्रकट करते हुए कहा कि इस निर्णय से महिलाओं में विश्वास और प्रेरणा के भाव जाग्रत हुए हैं। वीरंगना सोसाइटी की गुंजन बिष्ट अरोरा ने इस निर्णय को महिला सशक्तिकरण की दिशा में लिया गया एक महत्वपूर्ण फैसला बताया है।
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