विदेशी पत्रकार फ्रांस्वा गोतिए का यह लेख पाञ्चजन्य (8 नवंबर, 1992) में प्रकाशित हुआ था। अयोध्या के संदर्भ में उन्होंने जो लिखा है, वह आज भी प्रासंगिक है
एक पश्चिमी व्यक्ति के लिए, जो भारत और उसके इतिहास से परिचित है, अयोध्या का विषय एक पहेली लगता है। उसे यह देखकर अचंभा होता है कि ऐसे विषय पर क्यों इतनी स्याही खर्च की जाती है, क्यों इतनी भावनाएं भड़काई जाती हैं और इतना समय नष्ट किया जाता है। अयोध्या को उसके उचित परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए, इस एक खास मुद्दे पर संघर्षरत हिन्दुत्व और इस्लाम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देना और एक उस तीसरे पक्ष का परिचय कराना जरूरी होगा, जो इस दशक की सर्वाधिक उलझी हुई समस्या को समझने के लिए मूलभूत आवश्यकता है।
शुरुआत हिन्दुत्व से करते हैं। हिन्दुत्व विश्व के सबसे सहिष्णु धर्म-पंथों में से एक है और इस बात से अधिक लोग असहमत होने का साहस भी नहीं करेंगे। इसने दमनचक्र में पिसती मानवता को सदा शरण दी है, चाहे वे इज्राएल के यहूदी हों, ईरान के पारसी हों या तुर्की के आर्मेनियाई। हिन्दू अन्य मतों की दैवी अवधारणा भी स्वीकार करते हैं, जो कि अधिसंख्य अन्य पंथ नहीं करते। एक हिन्दू किसी चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे में भी पूजन कर सकता है।
सर्वाधिक सहिष्णु
इसके अलावा हिन्दुत्व इस पृथ्वी की आस्थाओं में एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसने कभी किसी को कन्वर्ट करने का प्रयास नहीं किया, न जबरदस्ती, न उपदेशों से। जबकि विश्व के सबसे शातिप्रिय बौद्ध पंथ तक ने भी कन्वर्जन किए थे। और अंत में यह भी कहूूंगा कि हिन्दुओं ने कभी किसी चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे को नष्ट नहीं किया, बल्कि इसके विपरीत उन्होंने ईसाई या मुस्लिम मत में अपने कन्वर्जन को छूट दी।
इस्लाम पर दृष्टिपात
अब आइए, इस्लाम पर एक नजर डालें। इस सभ्यता में कितनी भी प्रतिभा या अन्तर्निहित महानता क्यों न हो, इस्लाम एक उग्रवादी पंथ है। इसका विश्वास रहा है और आज भी यह मानता है कि सभी गैर-मुस्लिम काफिर हैं और हर मुसलमान का यह फर्ज है कि वह काफिरों का कन्वर्जन करे, यदि जरूरी हो तो जबरदस्ती और हिंसा के सहारे भी। और वास्तव में पिछली शताब्दियों में पूरे विश्व में मुहम्मद के अनुयायियों की सैन्य विजयों के साथ मजहबी जबरदस्ती भी जुड़ी रही। भारत के विशेष मामले में इतिहास ने असंदिग्ध तौर पर दिखाया है कि मुगलों ने लाखों लोगों की हत्या की, हजारों मन्दिर ध्वस्त किए और लाखों भारतीयों का कन्वर्जन किया, जिनके वंशज आज न इधर के रहे, न उधर के।
इसलिए आज एक विदेशी के लिए यह देखना असाधारण है कि जब हिन्दू एक मन्दिर बनाने के इच्छुक हैं, तो उन हिन्दुओं से घोर कट्टरपंथियों जैसा व्यवहार किया जाता है। यह देख ‘महान’ मुगल अपनी कब्रों में हंसते होंगे! स्थिति में कैसा उलटफेर हो गया! इतिहास ने कैसा पलटा खाया है!! इस लेख को पढ़ने वालों में कितने अयोध्या गए हैं? मैं गया हूं। अयोध्या (फैजाबाद नहीं, जो अयोध्या का जुड़वां मुस्लिम नगर है) एक अद्वितीय हिन्दू नगर है। यहां तक कि वाराणसी से भी अधिक, वहां सर्वत्र असंख्य मन्दिर हैं, वहां पुरानी शैली के हिन्दू घर हैं और वह मोहक नदी तथा उसके घाट हैं!
वास्तव में भारत का सम्पूर्ण पश्चिमी रंग में रंगा कुलीन वर्ग। और जो सबसे विरोधाभासी है, वह यह कि इनमें से अधिकांश हिन्दू हैं। लेकिन क्या वे यह महसूस करते हैं कि सेकुलरिज्म का यह खास रूप मात्र एक उपनिवेशवादी जूठन है? कि यह उनके दिमागों में आरोपित कर दी गई है? कि वे अपने भाइयों और अपने धर्म के प्रति गद्दारी कर रहे हैं, जिसकी महानता, सहिष्णुता, अहिंसा, करुणा का पूरे विश्व में सानी नहीं है? और अंत में, शायद यह शक्तिशाली कुलीन वर्ग भी बेमतलब ही है, क्योंकि अंतत: भारत की सच्ची आत्मा इस पश्चिमीकृत कुलीन वर्ग में नहीं, जो पश्चिम की हर गलती की नकल करता है, बल्कि उस ग्रामीण जनता में निवास करती है, जिसने इस महान लोकतंत्र में हमेशा यह सिद्ध किया है कि वह जानती है सत्य कहां है!
और वहां, एक टीले पर निराश्रित वह दो बदसूरत गुम्बदों वाला अकेला ढांचा है, जो सबसे इतना अलग-थलग, अप्रयुक्त दिखता है कि जिसमें भी थोड़ी बुद्धि होगी, और इसमें मुसलमान भी शामिल हैं, वह देखेगा कि यह कोई मुद्दा बनाने लायक भी नहीं है। लेकिन फिर आपके पास हैं इस देश के वी.पी. सिंह, एन. राम, मुलायम सिंह जैसे लोग, जिनमें से प्रत्येक अपनी निजी महत्वाकांक्षा के लिए सेकुलरिज्म के नाम पर पूरे देश को विभाजित और तोड़कर निश्चेष्ट बना देते हैं। आह सेकुलरिज्म! तुम्हें किसी जादू भरे मंत्र की तरह रगड़ा गया, अमर्यादित किया गया और तुम्हारा अतिरेकपूर्ण इस्तेमाल किया गया।
सेकुलरिज्म क्या है?
आखिर सेकुलरिज्म है क्या? जब अंग्रेजों ने भारत को जीता था तो उनके सामने सीधी एक समस्या खड़ी थी। इस विशाल देश पर मुट्ठी भर प्रशासकों और अफसरों द्वारा कैसे राज करें? तब उन्हें दो विचार सूझे पहले वे प्रत्येक समुदाय से एक समान व्यवहार करेंगे- चाहे वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक और फिर वे उन्हें बांटकर राज करेंगे। इस प्रकार उन्होंने हिन्दुओं व मुसलमानों में घृणा व अविश्वास की एक ठोस दीवार खड़ी कर दी और चालाकी से उन्होंने सदा मुहम्मद के अनुयायियों से वायदा किया कि जिस दिन वे भारत छोड़ेंगे, उन्हें एक पृथक राज्य देंगे-इस प्रकार पाकिस्तान का बीज भी बो दिया। और इन दो सिद्धांतों को जो कि आखिरकार सत्ता पर बने रहने का एक षड्यंत्र ही था, उन्होंने सेकुलरिज्म कहा। लेकिन एक अल्पसंख्यक समुदाय-मुसलमानों से बहुसंख्यक हिन्दुओं जैसा ही व्यवहार करते समय वे आसानी से दो बातें भूल गए।
एक, हिन्दुत्व किसी पंथ से बढ़कर है। यह, जैसा कि अनेक कहते हैं, भारत की महानता और पहचान का मूल आधार है और जो अन्य सभी भारतीय संस्कृतियों व पंथों को जोड़ता है। यह धर्म है, जीवंत सत्य। इंडिया का सच्चा नाम हिन्दुस्थान है और अतीत में यहां हिन्दुस्थानी मुसलमान और हिन्दुस्थानी ईसाई होते थे, क्योंकि यथार्थ में हिन्दुत्व इन सभी पंथों पर छा गया था, उसने उन्हें प्रभावित किया और स्वयं में समा भी लिया था। भारत में कैथोलिक मत, कैथोलिक पंथ का हिन्दू संस्करण ही है और भारतीय मुस्लिम, चाहे वे इससे कितना ही इनकार करें, अरब के मुस्लिमों का हिन्दू रूपान्तरण ही हैं।
इसीलिए पाकिस्तान का निर्माण, खालिस्तान की मांग, यह प्रवृत्तिमूलक और अंशत: इन पंथों की इस अहसास से उपजी मांगें हैं कि धीरे-धीरे वे उसी स्रोत में वापस समाहित हो रहे हैं, जहां से उनका जन्म हुआ था। और यह अहसास उन्हें अपनी पृथक पहचान बनाए रखने के लिए कट्टरतावाद और हिंसा के सहारे के लिए प्रवृत्त करता है। लेकिन वास्तव में हिन्दुत्व ही भारत की संस्कृति और राष्ट्र का आधार है। अंग्रेजों ने अपने स्वार्थी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सेकुलरिज्म का इस्तेमाल कर जो क्षति पहुंचाई, उसका अंत नहीं हुआ है। क्योंकि आज सेकुलरिज्म के सबसे बड़े व्याख्याता, जो हर मौके पर इस अनैतिक हथियार को घुमाते हैं, वे हैं जिनके हाथों में भारत के सूत्र हैं-
राजनेता, पत्रकार, उच्च अधिकारी, वास्तव में भारत का सम्पूर्ण पश्चिमी रंग में रंगा कुलीन वर्ग। और जो सबसे विरोधाभासी है, वह यह कि इनमें से अधिकांश हिन्दू हैं। लेकिन क्या वे यह महसूस करते हैं कि सेकुलरिज्म का यह खास रूप मात्र एक उपनिवेशवादी जूठन है? कि यह उनके दिमागों में आरोपित कर दी गई है? कि वे अपने भाइयों और अपने धर्म के प्रति गद्दारी कर रहे हैं, जिसकी महानता, सहिष्णुता, अहिंसा, करुणा का पूरे विश्व में सानी नहीं है? और अंत में, शायद यह शक्तिशाली कुलीन वर्ग भी बेमतलब ही है, क्योंकि अंतत: भारत की सच्ची आत्मा इस पश्चिमीकृत कुलीन वर्ग में नहीं, जो पश्चिम की हर गलती की नकल करता है, बल्कि उस ग्रामीण जनता में निवास करती है, जिसने इस महान लोकतंत्र में हमेशा यह सिद्ध किया है कि वह जानती है सत्य कहां है!
टिप्पणियाँ