प्रख्यात लेखक और अभिनेता पीयूष मिश्रा भी पाञ्चजन्य के स्थापना दिवस कार्यक्रम में शामिल हुए। वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा और अनिल पांडे से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि संघ के कार्यक्रम में जाने से कुछ वामपंथी मुझे भद्दी- भद्दी बातें सुनाते हैं। यहां उसी बातचीत को लेख के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है-
आज मैं कमजोर नहीं हूं। कम्युनिस्टों के हर सवाल का जवाब देने में सक्षम हूं। आज मेरी आंखें खुल गई हैं। 2003 में मैं मुंबई गया था। 2002 से अनुराग कश्यप का उदय हो रहा था। इससे पहले सिनेमा में 1998 से काफी बदलाव होना शुरू हो गया था। बचपन से मैं थोड़ा जिद्दी हूं। इस कारण बदली हुई परिस्थिति में भी काम करना शुरू किया। मैं फिल्म उद्योग में कुछ नया करना चाहता था। इसके लिए कड़ी मेहनत की और उसके अच्छे परिणाम भी आए।
मैं जो ठान लेता हूं, उसे हर हाल में पूरा करता हूं। जब मैं आठवीं कक्षा में था, तब मैंने एक कविता लिखी थी। उसके बाद मैंने ‘एक बगल में चांद, एक बगल में रोटियां’ कविता लिखी। इसे मैंने पैसे के लिए लिखा, बिना सोचे-समझे लिखा और वह लोगों को भा गई। बहुत दिनों तक सोचता रहा कि मैं ही काम करता हूं, लेकिन धीरे-धीरे एहसास हुआ कि ‘मैं जो भी करता हूं, उसमें ईश्वर की बहुत बड़ी कृपा है। मैं खुद कुछ नहीं करता, ईश्वर मुझसे करा रहा है।’ इसलिए सब कुछ अपने आप हो रहा है। मुझे पूर्व जन्म पर विश्वास है। पिछले जन्म में मैं जिस राह पर छूटा था, वहां से इस जन्म में आगे बढ़कर कार्य कर रहा हूं। आज मैं 61 साल का हो चुका हूं और मैं महसूस करता हूं कि अभी तो जवानी शुरू हुई है। अभी तो बहुत काम करना है, परंतु सभी कार्य शांति से करना है। मैं प्रतिदिन विपश्यना करता हूं, निराकार की पूजा करता हूं।
संघ के कार्यक्रम में जाने पर मुझे कम्युनिस्ट ताने मारते हैं। अब मैंने उनकी बातों पर गौर करना बंद कर दिया है। मेरे दोस्त इम्तियाज अली ने ऋग्वेद के बारे में एक गाने के माध्यम से बताया। इस तरह की बहुत चीजें हैं, जो जिंदगी में आती रहती हैं। इसलिए कभी भी जिंदगी तनाव में नहीं जीनी चाहिए। काम का बोझ नहीं पालना चाहिए। काम शांति से करो और आराम से आकर सो जाओ। एक बार मेरे शरीर के आधे हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था।
‘मैं जो भी करता हूं, उसमें ईश्वर की बहुत बड़ी कृपा है।
मैं खुद कुछ नहीं करता, ईश्वर मुझसे करा रहा है।’
-अभिनेता पीयूष मिश्रा
डॉक्टर ने बोला कि अब तुम जिंदगी भर ऐसे ही रहोगे। ठीक नहीं हो सकता। मेरे दोस्त विशाल भारद्वाज ने बताया कि तुम विपश्यना शिविर में जाओ। मैं वहां गया। बहुत जल्दी ही ठीक भी हो गया और अब सब कुछ पहले की तरह हो गया है। तब जाकर मैंने सोचा कि हम जितना सोचते हैं, उससे भी आगे कुछ है। इसको समझने में मुझे छह साल लग गए।
ईश्वर की अनुमति से आज मैं बहुत काम कर रहा हूं। इतना कि जब मैं कम्युनिस्ट था, उस समय भी इतना काम नहीं किया। पता नहीं कहां से काम आ रहा है और करते हुए आगे बढ़ रहा हूं।
जहां तक मैं धर्म को समझता हूं। हर पंथ में तीन आयाम होते हैं- उपासना, प्रतीक और दर्शन। प्रतीक में शिवलिंग, मंदिर, गुरुद्वारे वगैरह आते हैं। जब हम साधना करते हैं तो हम इन प्रतीकों के बीच अटक कर रह जाते हैं, लेकिन अंत कहीं और होता है। इससे आगे बढ़कर निराकार की तरफ जाना पड़ेगा। परब्रह्म एक है और उसको मानना पड़ेगा। जीवन को सफल बनाने के लिए यह मंत्र बहुत आवश्यक है।
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