पौड़ी गढ़वाल । जिला मुख्यालय के पास अपने छोटे से घर पर सैकड़ों किताबो के बीच एक अध्ययन केंद्र में सालो से लिखने पढ़ने वाले डा यशवंत सिंह कठोच को जब पद्मश्री सम्मान दिए जाने के जानकारी उनके मित्रजनों ,परिजनों से मिली तो वो एक पल को हैरान हुए और बेहद खुश नजर आए और उन्होंने कहा कि ये कैसे हो गया , चलो जो हुआ अच्छा हुआ सरकार ने मुझ जैसे सामान्य व्यक्ति को ये सम्मान दिया।
जानकारी के मुताबिक डा यशवंत सिंह ने इस सम्मान को पाने के लिए अपनी तरफ से कोई आवेदन या पैरवी भी नही की,उनके मुताबिक किसी इष्ट मित्र ने आवेदन कर दिया होगा तो उसकी उन्हे जानकारी भी नही है।
डा यशवंत सिंह कठोच ने 33 वर्षों तक शिक्षक के रूप में सेवाएं दी हैं। डा यशवंत का जन्म 27 दिसंबर 1935 में हुआ, 1995 तक वे मासों गांव में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्राचार्य रहे फिर पौड़ी जिला मुख्यालय के पास आकर बस गए।
डा कठोच , इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में लंबे समय से योगदान दे रहे हैं। उनको पद्मश्री दिए जाने पर इतिहासकारों, साहित्यकारों, शिक्षकों, लेखकों, लोक कलाकारों व संस्कृति कर्मियों ने खुशी जाहिर करते हुए उन्हें शुभकामनाएं दी है।
डा कठोच पौड़ी जनपद के एकेश्वर विकासखंड स्थित मांसों गांव के मूल निवासी हैं। उन्होंने 1974 में आगरा विवि से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति तथा पुरातत्व विषय में विवि में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वर्ष 1978 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के गढ़वाल हिमालय के पुरातत्व पर शोध ग्रंथ प्रस्तुत किया और विवि ने उन्हें डीफिल की उपाधि से नवाजा। एक शिक्षक के रूप में उन्होंने 33 साल सेवाएं दीं। वर्ष 1995 में वह प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुए।
डा कठोच भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में निरंतर शोध कर रहे हैं। वह वर्ष 1973 में स्थापित उत्तराखंड शोध संस्थान के संस्थापक सदस्य हैं। उनकी मध्य हिमालय का पुरातत्व, उत्तराखंड की सैन्य परंपरा, संस्कृति के पद-चिन्ह, मध्य हिमालय की कला: एक वास्तु शास्त्रीय अध्ययन, सिंह-भारती सहित 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जबकि इतिहास तथा संस्कृति पर निबंध और मध्य हिमालय के पुराभिलेख पुस्तकें भी जल्द ही प्रकाशित होने जा रही है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने डा यशवंत सिंह कठोच को पद्मश्री दिए जाने का केंद्र सरकार के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है एक सामान्य शिक्षक और उत्तराखंड के विद्वान को सम्मानित करने की परंपरा नरेंद्र मोदी सरकार ने ही डाली है, डा यशवंत को उनकी तपस्या का फल मिला है हमारी सरकार, उत्तराखंड की देवतुल्य जनता उन्हे बधाई देती है।
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