राम मंदिर का निर्माण मात्र एक मंदिर का निर्माण नहीं है, बल्कि आदर्श शासन के युग ‘रामराज्य’ की स्थापना की दिशा में एक परिवर्तनकारी यात्रा है।
पूरा देश राममय होकर 500 साल के अनथक संघर्ष के बाद मिली सफलता का जयघोष कर रहा है। अब मात्र कुछ दिन की बात है। कांग्रेस ने 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने से इनकार कर दिया है। किम् आश्चर्यम्? कोई भी व्यक्ति पूरे विश्वास से कह सकता है कि यदि देश का विभाजन न हुआ होता और मोहम्मद अली जिन्ना आज जीवित होते, तो वह भी इसमें शामिल होने से इनकार कर देते। यही काम जवाहरलाल नेहरू भी करते।
हालांकि आचार्य नरेंद्र देव और राम मनोहर लोहिया संभवत: इस कार्यक्रम में अवश्य शामिल होते। इसका अर्थ यही है कि प्रभु श्रीराम ने इस देश को इस दिशा में भी आंखें खोलने का एक अवसर दे दिया है कि कौन देश की संस्कृति के साथ है और कौन देश को एक उपनिवेश मानने की मानसिकता से पीड़ित है। यह धारणा अर्धसत्य है कि यह लोग वोट बैंक के प्रति निष्ठा दर्शाने के लिए राम विरोध करते हैं।
वास्तव में उनका मिशन भारत की सांस्कृतिक चेतना का अपमान करना है। ठीक भी है, उनकी वैचारिक थाली वामपंथी कबीलों ने परोसी हुई है, और परोसने का काम करने वाले इन वामपंथियों के रसोइये कट्टरवादी हैं। ऐसे में उन्हें इस देश में राम कहां दिख सकते हैं? मुस्लिम तुष्टीकरण और हिन्दुओं का मानमर्दन तो उनका स्वभाव है। यही कारण है कि कांग्रेस के प्रथम परिवार का कोई भी व्यक्ति 1947 से 2024 तक कभी भी रामलला दर्शन के लिए अयोध्या नहीं गया।
यह वही कांग्रेस है, जिसके प्रधानमंत्री ने बाबरी ढांचा गिरने के बाद फिर से मस्जिद बनाने का वादा किया था। जिसने सुप्रीम कोर्ट में न केवल राम के अस्तित्व को आधिकारिक रूप से नकारा था, बल्कि कोर्ट से यह भी याचना की थी कि राम जन्मभूमि पर फैसला न सुनाया जाए। कांग्रेस को समाहित करते हुए बने-अनबने गठबंधन के नेता भी सनातन को समाप्त करने की घोषणाएं करते रहे हैं।
प्रभु श्रीराम को काल्पनिक कहने वालों के लिए भी यह प्रश्न तो शेष ही रह जाता है कि वे हजारों वर्ष से किस प्रकार साक्षी हैं, साक्षात हैं। वे मात्र जीवंत और साक्षी ही नहीं हैं, बल्कि उनके नाम-मात्र ने राष्ट्र में नव-प्राणों का तब-तब संचार किया है, जब-जब इस राष्ट्र ने उन्हें पुकारा है। गांधी जी ने स्पष्ट कहा था कि वे इस बात में पड़ना ही नहीं चाहते कि राम ऐतिहासिक हैं या नहीं। उनके लिए राम नाम ही उनकी शक्ति और उनकी प्रेरणा थी।
कांग्रेस ने निमंत्रण ठुकराने के अपने औपचारिक उत्तर में कोई ठोस तर्क नहीं दिया है। लेकिन कांग्रेस की ओर से तर्क देने वालों ने यह ठीक ही कहा है कि जब प्रधानमंत्री रामलला की आरती उतारेंगे, तो कांग्रेस की सम्राज्ञी को तो प्रोटोकॉल के अनुसार पीछे ही स्थान मिलेगा। ऐसे में यदि वे ताली बजाएंगी, तो कांग्रेस के प्रथम परिवार के अहंकार को ठेस पहुंचेगी, और अगर नहीं बजाएंगी, तो भारत की जनता के समक्ष भेद खुलेगा। और जो नहीं कहा गया, वह यह कि उनका अहंकार, प्रधानमंत्री मोदी के प्रति उनकी घृणा- यह सब भगवान राम से तो बड़ी ही हैं।
राम को काल्पनिक कहे जाने पर लौटें। प्रभु श्रीराम को काल्पनिक कहने वालों के लिए भी यह प्रश्न तो शेष ही रह जाता है कि वे हजारों वर्ष से किस प्रकार साक्षी हैं, साक्षात हैं। वे मात्र जीवंत और साक्षी ही नहीं हैं, बल्कि उनके नाम-मात्र ने राष्ट्र में नव-प्राणों का तब-तब संचार किया है, जब-जब इस राष्ट्र ने उन्हें पुकारा है।
गांधी जी ने स्पष्ट कहा था कि वे इस बात में पड़ना ही नहीं चाहते कि राम ऐतिहासिक हैं या नहीं। उनके लिए राम नाम ही उनकी शक्ति और उनकी प्रेरणा थी। अगर राम काल्पनिक हैं, तो यह जरूर बताएं कि ऐसी ‘कल्पना’ क्या है, जिसका अस्तित्व कण कण में व्याप्त है, जिससे यह भारत भारत बना है? यह भी कि संविधान सभा ने, भारत के संविधान के मुखपृष्ठ पर (प्रस्तावना से भी पहले), रामराज्य की ही कल्पना क्यों की? राम मंदिर का निर्माण मात्र एक मंदिर का निर्माण नहीं है, बल्कि आदर्श शासन के युग ‘रामराज्य’ की स्थापना की दिशा में एक परिवर्तनकारी यात्रा है।
इस दृष्टि का लक्ष्य वह सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन स्थापित करना है, जो गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस में चित्रित आदर्शों और स्वराज के संदर्भ में महात्मा गांधी की ‘रामराज्य’ की व्याख्या में है। ‘रामराज्य’ में भौतिक कल्याण भी है, सामंजस्यपूर्ण और समावेशी भविष्य भी है, दैवीय चेतना भी है और नैतिक आचरण भी है।
राम मंदिर का आगामी उद्घाटन राजनीतिक आख्यानों को राष्ट्र का कायाकल्प करने वाले रामराज्य के शाश्वत सिद्धांतों के साथ जोड़ने का एक बिन्दु है। ऐसे में राम को काल्पनिक कहने का आशय है- राम नाम को सत्य के स्थान पर असत्य ठहराना। माने राम के नाम पर श्वास लेने वाला यह राष्ट्र उनका अपना राष्ट्र नहीं है, बल्कि उनका कोई विजित उपनिवेश है। और ऐसे राष्ट्र का उठ खड़ा होना उन्हें कैसे सहन होगा?
@hiteshshankar
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