चित्रकूट धाम। प्रभु श्रीराम ने वनवास काल के दौरान देवी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चित्रकूट में घास-फूस की कुटिया में करीब 12 साल निवास किया था। यह कुटिया घास-फूस और पत्तों से बनी थी, जिसे पर्ण कुटी कहते हैं। इस पर्णकुटी को लक्ष्मण जी ने स्थानीय कोल और भील साथियों के साथ मिलकर बनाया था। हालांकि अब इस पर्णकुटी के स्थान पर मंदिर बना दिया गया है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और प्रभु श्रीराम और माता जानकी की उपस्थिति का अनुभव करते हैं।
इस पर्णकुटी को मंदिर का स्वरूप दे दिया गया है, जिसमें भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा स्थापित है। इसी का साथ एक और पर्णकुटी है, जिसमें लक्ष्मण जी और आदि शेषनाग की प्रतिमा स्थापित की गई है। भक्तों में इस मंदिर को लेकर बड़ी आस्था है। यहां के पुजारी बच्चू महाराज ने पाञ्चजन्य को बताया कि भगवान राम ने यहां पर 11 साल, 6 माह, 18 दिन निवास किया था। इसका जिक्र रामचरितमानस के अयोध्या कांड में है। इस मंदिर में आने के लिए चारों दिशाओं से चार रास्ते हैं। एक कुटी में भगवान राम और माता जानकी, जबकि दूसरी कुटी में लक्ष्मण जी निवास करते थे। खास बात यह है कि इस मंदिर में प्रभु राम का वनवासी रूप दिखाया गया है। इसलिए इस मंदिर को भी वनवासी राम मंदिर करते हैं। पुजारी जी ने बताया कि पर्णकुटी के स्थान पर बना यह मंदिर 773 साल पुराना है।
चित्रकूट स्थित यह पर्णकुटी मंदाकिनी नदी के बिल्कुल तट पर है। जैसे ही आप पर्णकुटी से बाहर देखेंगे आपको राम घाट दिखाई देगा। मान्यता है कि इसी घाट पर प्रभु राम स्नान किया करते थे, इसी वजह से इसका नाम राम घाट है। हर अमावस्या को बड़ी संख्या में श्रद्धालु इसी घाट में स्नान करते हैं। उसके बाद प्रभु श्रीराम के दर्शन करते हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि चित्रकूट में भगवान श्रीराम की कुल 24 कुटियां थीं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण स्थान पर्णकुटी को माना जाता है।
कैसे पहुंचें चित्रकूट
चित्रकूट पहुंचने के लिए सतना सबसे निकटतम शहर है। वहां से टैक्सी से भी पहुंचा जा सकता है। अगर ट्रेन से जाना है तो चित्रकूटधाम कर्वी रेलवे स्टेशन सबसे पास है, वहां से राम घाट करीब 10 किलोमीटर है।
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