अपने बैंक खाते का नंबर, पासवर्ड, उसके साथ जुड़े ईमेल का यूजरनेम-पासवर्ड कितना कीमती होगा? यदि यह किसी चालाक हैकर के हाथ लग जाए, तो आपके लाखों-करोड़ों रुपए पर हाथ साफ किया जा सकता है।
आपके लिए अपने बैंक खाते का नंबर, पासवर्ड, उसके साथ जुड़े ईमेल का यूजरनेम-पासवर्ड कितना कीमती होगा? यदि यह किसी चालाक हैकर के हाथ लग जाए, तो आपके लाखों-करोड़ों रुपए पर हाथ साफ किया जा सकता है। लेकिन आपका इतना ही बेशकीमती डेटा डार्क वेब पर चार-पांच सौ रुपये में मिल जाता है। आइडेंटिटी थेफ्ट (पहचान की चोरी) के विरुद्ध बीमा सेवा देने वाली कंपनी आरा के अनुसार, एक हजार डॉलर के बैलेंस वाले क्रेडिट कार्ड का डेटा डेढ़ सौ डॉलर (12-13 हजार रुपये) और सौ डॉलर के बैलेंस वाले आनलाइन बैंकिंग अकाउंट का डेटा डॉर्क वेब पर 40 डॉलर में मिल जाएगा। नेटफ्लिक्स के एक साल के सबस्क्रिप्शन के डेटा की कीमत 44 डॉलर है।
डार्क वेब पर इस तरह की चीजों को खरीदना और सेवाएं लेना उतना मुश्किल नहीं है, जितना कि हमें लगता है। यह आसान है। टॉर (ळङ्म१) नामक ब्राउजर के जरिए डार्क वेब में पहुंचिए, कुछ बिटकॉइन्स का इंतजाम कीजिए और वहां सजी दुकानों से हजारों-लाखों लोगों का डेटा खरीद लीजिए। आप चाहें तो अपना नाम टाइप करके भी देख सकते हैं कि आपका डेटा भी तो नहीं बिक रहा है। डार्क वेब पर बाकायदा अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स पोर्टल चलते हैं, जो वह सब बेचते हैं जिन्हें कानूनों के दायरे में नहीं बेचा जा सकता।
इन बाजारों में ‘ह्वाइट हाउस मार्केट’, ‘डार्क फॉक्स मार्केट’ और ‘वाइस सिटी मार्केट’ के नाम चर्चित हैं। ‘सिल्क रोड’ नामक एक और कुख्यात बाजार को सरकारी कार्रवाई के बाद 2013 में बंद कर दिया गया था। रॉस उलब्रिख्त (Ross Ulbricht) नामक व्यक्ति ने 2011 में यह बाजार खोला था, जो बहुत जल्दी दुनिया का सबसे लोकप्रिय काला बाजार बन गया था। बाकी चीजों के साथ-साथ यहां पर नशीले पदार्थ भी बिकते थे। हालांकि आप ऐसा करें न, क्योंकि कोई भी गैरकानूनी चीज या सेवा को खरीदना अवैध ही है, भले ही उसे अपने शहर में खरीदा जाए या डॉर्क वेब पर।
इस सिस्टम के जरिए फाइलों और सूचनाओं को इंटरनेट पर गुमनाम तरीके से साझा किया जा सकता है। किसी जमाने में सिर्फ मंझे हुए हैकर, साइबर अपराधी, खुफिया अधिकारी आदि ही डार्क वेब पर जाते थे। लेकिन अब टॉर जैसे ब्राउजरों के जरिए कोई भी वहां जा सकता है। आप भी चाहें तो इसे आजमा सकते हैं, लेकिन मैं इसकी सलाह नहीं दूंगा, क्योंकि आपकी यात्रा सुरक्षित ही हो, यह आवश्यक नहीं है। वहां सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है, खासकर साइबर सुरक्षा की।
यह जो टॉर नामक ब्राउजर है, वह क्रोम और एज की ही तरह का इंटरनेट ब्राउजर है, जिसे प्राइवेसी (निजता), गुमनाम रहने की क्षमता और सुरक्षित इंटरनेट विचरण के उद्देश्य से बनाया गया था। इस परियोजना को अमेरिकी नौसेना की फंडिंग मिली थी, जो सरकारी सूचनाओं और संचार को जासूसों तथा हैकरों की गिद्ध दृष्टि से बचाना चाहती थी।
टॉर का अर्थ ‘द अनियन राउटर’ है, जो इस बात का संकेत देता है कि इसकी कार्यप्रणाली में प्याज की परतों की ही तरह कई स्तर और परतें मौजूद हैं। गणितज्ञ पॉल साइवरसन, कंप्यूटर वैज्ञानिक रोजर डिंगलडाइन और निक मैथ्यूसन जैसे तकनीकविदों ने इसका शुरुआती विकास किया। 2002 में इसे सार्वजनिक प्रयोग के लिए जारी कर दिया गया और तब से यह सबके लिए नि:शुल्क उपलब्ध है।
इधर, डार्क वेब की शुरुआत सन् 2000 में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के छात्र इयान क्लार्क की शोध परियोजना से हुई थी। इस छात्र ने फ्रीनेट नाम का एक इंटरनेट आधारित ढांचा बनाया, जिसे डिस्ट्रीब्यूटेड डिसेंट्रलाइज्ड इन्फॉर्मेशन स्टोरेज एंड रिट्राइवल सिस्टम का नाम दिया गया। उसने दावा किया कि इस सिस्टम के जरिए फाइलों और सूचनाओं को इंटरनेट पर गुमनाम तरीके से साझा किया जा सकता है।
किसी जमाने में सिर्फ मंझे हुए हैकर, साइबर अपराधी, खुफिया अधिकारी आदि ही डार्क वेब पर जाते थे। लेकिन अब टॉर जैसे ब्राउजरों के जरिए कोई भी वहां जा सकता है। आप भी चाहें तो इसे आजमा सकते हैं, लेकिन मैं इसकी सलाह नहीं दूंगा, क्योंकि आपकी यात्रा सुरक्षित ही हो, यह आवश्यक नहीं है। वहां सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है, खासकर साइबर सुरक्षा की। कौन जाने आपके कंप्यूटर में कोई खतरनाक वायरस डाउनलोड हो जाए या फिर आप अनजाने में किसी बड़े स्कैम या घोटाले का हिस्सा बन जाएं।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं)
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