डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर आरोप लगाया जाता है कि जब अनुच्छेद 370 केंद्रीय मंत्रिमंडल में पेश किया गया तो उन्होंने उसका विरोध क्यों नहीं किया? यह एकदम निराधार तथ्य है। अनुच्छेद 370 पर मंत्रिमंडल में चर्चा तो दूर, वास्तव में यह वहां कभी पेश ही नहीं किया गया था। अतः डॉ. मुखर्जी के विरोध का प्रश्न कैसे बनता है जब यह वहां चर्चा के लिए लाया ही नहीं गया था।
डॉ मुखर्जी, जम्मू और कश्मीर के विषय पर डिफेन्स कमिटी की कुछ बैठकों में जरुर शामिल हुए थे। उन्हें इन बैठकों में रसद आपूर्ति मंत्री के नाते आमंत्रित किया गया था। यह बैठकें भी अक्टूबर-दिसंबर 1947 में हुई और उस समय अनुच्छेद 370 जैसा कुछ प्रस्तावित नहीं था।
डॉ. मुखर्जी सिर्फ संविधान सभा और अंतरिम सरकार का हिस्सा थे। अनुच्छेद 370 के शुरूआती सभी ड्राफ्ट्स नेहरू, मौलाना आजाद, शेख और गोपालस्वामी आयंगर के बीच में ही घूमते रहे। जब सरदार को इसकी आड़ में अलगाववाद की भनक लगी तो उन्होंने इसके प्रावधानों में फेरबदल करवा दिया था।
इस प्रकार यह कांग्रेस और उसकी कार्यसमिति के कुछ ही गिने-चुने सदस्यों में ही चर्चा का विषय बना रहा, जिसकी बाहर की दुनिया को कोई जानकारी ही नहीं थी. अतः जब खबर ही नहीं तो तो डॉ. मुखर्जी विरोध कैसे करते?
डॉ मुखर्जी संविधान सभा का तो हिस्सा थे तो वहां उन्होंने इसका विरोध क्यों नहीं किया?
यह भी ध्यान देना होगा कि अनुच्छेद 370 के ड्राफ्ट्स को पहली बार संविधान सभा के सदस्यों को 16 अक्टूबर 1949 को बताया गया। अगले दिन यह सभा में पेश किया गया। अतः संविधान सभा के पास भी इसके प्रावधानों पर चर्चा करने का ठीक से मौक़ा नहीं मिला।
दूसरा अक्टूबर 1949 में संविधान निर्माण का काम पूरा हो चुका था। अब बस इसके preamble सम्बन्धी जरुरी विषय बाकी रह गए थे। संविधान सभा 1946 से अस्तित्व में थी और जनवरी 1950 में संविधान देश में लागू होने वाला था। इसके अलावा संविधान का जो मूल ड्राफ्ट डॉ भीम राव अम्बेडकर ने तैयार किया था उसमें भी यह अनुच्छेद कभी शामिल ही नहीं था।
इस प्रकार डॉ. मुखर्जी ही नहीं बल्कि संविधान सभा के किसी भी सदस्य को इस बात की जानकारी नहीं थी कि अनुच्छेद 370 आखिर क्या है?
अनुच्छेद 370 की सबसे पहले मांग शेख ने उठाई जिसे सबसे पहले प्रधानमंत्री नेहरू का समर्थन मिला
इस अनुच्छेद की शुरुआत शेख अब्दुल्ला की एक चालाकी से होती है। शेख ने 1949 में सरदार पटेल को 3 जनवरी 1949 को एक पत्र भेजा और कहा कि पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर के मुसलमानों को पूर्ण स्वतंत्रता देने की पेशकश की है। साथ ही पाकिस्तान सरकार का कहना है कि हम उनके हस्तक्षेप के बिना जम्मू और कश्मीर का संविधान बना सकते है।”
इस पत्र में शेख ने आगे एक सुझाव दिया, “पाकिस्तान के इस प्रस्ताव को बेअसर करने के लिए भारत सरकार को अब घोषणा करनी चाहिए कि वह जम्मू और कश्मीर को संवैधानिक स्वतंत्रता प्रदान करेगी।” (एमके टेंग, कश्मीर आर्टिकल 370, अनमोल पब्लिकेशन: दिल्ली, 1998, पृष्ठ 49)
सरदार ने शेख के इस सुझाव को मानाने से एकदम इनकार दिया और इसपर खास ध्यान भी नहीं दिया। जिसके बाद शेख ने यही सुझाव नेहरू को भेज दिए। यह सब पढ़कर नेहरू घबरा गए और उन्होंने एक आपात बैठक बुला ली। इसमें नेहरू ने सिर्फ सरदार पटेल, आजाद, और आयंगर को बुलाया गया। इस बैठक में नेहरू ने शेख को संवैधानिक पृथकता की मांग पर विचार करने को कहा. मगर सरदार पटेल ने दोबारा अपनी असहमति जता दी।
अपने हाथ से बाजी निकलती देख शेख ने फिर से एक पैंतरा चला। शेख ने 14 अप्रैल 1949 को स्कॉटसमैंन के पत्रकार माइकल डेविडसन को एक इंटरव्यू दिया और जम्मू और कश्मीर के विभाजन की मांग करने लगे।
शेख को अच्छे से पता था कि नेहरू इस मांग से परेशान हो जायेंगे और इसके बदले अनुच्छेद 370 का मोलभाव एकदम आसान हो जायेगा। आखिरकार ऐसा ही हुआ और नेहरू ने शेख को दो दिन बाद दिल्ली बुला लिया। इसी बैठक ने शेख ने अनुच्छेद 370 को भारत की संविधान सभा में पारित करवाने का जोर दिया।
अगले दिन 17 अप्रैल को नेहरू ने सरदार पटेल को पत्र लिखकर शेख को मनमानी को स्वीकार करने का दवाब बनाया। हालाँकि उन्होंने सीधे तौर पर संविधान में बदलाव का कोई हवाला नहीं दिया लेकिन सरदार को शेख को लेकर उनके रुख को थोडा नरम और उसपर विचार करने को कहा। (दुर्गा दास (संपादित), सरदार पटेल कॉरेस्पोंडेंस 1945-50, खंड 1, नवजीवन : अहमदाबाद, 1971, पृष्ठ 263)
कुछ दिनों बाद, 15-16 मई 1949 को एक बैठक और हुई। इस बार यह सरदार पटेल के निवास पर हुई। यहाँ शेख की मांगों पर विचार किया गया लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला। अतः नेहरू अकेले मई महीने के आखिरी दिनों में शेख से मिलने श्रीनगर पहुँच गए और उन्होंने वहां शेख के साथ कई समझौते कर लिए। (एमके टेंग, कश्मीर आर्टिकल 370, अनमोल पब्लिकेशन: दिल्ली, 1998, पृष्ठ 75)
नेहरू और शेख के बीच क्या बातचीत हुए अब इसकी जानकारी सरदार पटेल को नहीं थी। इस प्रकार नेहरू और शेख ने मिलकर संवैधानिक प्रावधानों पर चर्चा कर ली और किसी को इसकी भनक भी नहीं होने दी। इस नए संवैधानिक प्रावधान यानि अनुच्छेद 370 को तैयार करने की जिम्मेदारी आयंगर और शेख को दी गयी।
अनुच्छेद 370 – भारत के संविधान से छेड़छाड़
Ajit Prasad Jain was served as Minister with cabinet rank in charge of the Ministry of Rehabilitation in first Lok Sabha. He has written a book titled, ‘Kashmir: What Really Happened’ which includes a surprising information related to the Article 370, “The draft was approved by the Sheikh and his colleagues. The Congress party passed it.” (p.81)
(It is clear that neither this Article went to the Drafting Committee nor any expert of the constitution was consulted. This was the single Article of Indian Constitution that was drafted in Srinagar and approved behind the closed doors of Indian National Congress office.)
वी. शंकर (सरदार पटेल के सहयोगी) अपनी किताब ‘माय रेमिनिसेंस ऑफ़ सरदार पटेल’ में लिखते है कि “संविधान सभा की सामान्य छवि को सबसे ज्यादा खतरा उस प्रस्ताव (अनुच्छेद 370) से हुआ जो जम्मू-कश्मीर से संबंधित था।” (वी. शंकर, माय रेमनिसिंस ऑफ़ सरदार पटेल, खंड 2, मैकमिलन : दिल्ली, 1974, पृष्ठ 61)
वी. शंकर लिखते है, “शेख जब जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने लगे तो गोपालस्वामी आयंगर ने जवाहरलाल नेहरू से इस पर विस्तार से चर्चा की। इसके बाद एक मसौदा (अनुच्छेद 370) तैयार किया गया जिसे भारत की संविधान सभा के समक्ष कांग्रेस द्वारा रखा गया।” (वी. शंकर, माय रेमनिसिंस ऑफ़ सरदार पटेल, खंड 2, मैकमिलन : दिल्ली, 1974, पृष्ठ 61)
अनुच्छेद 370 का कई ड्राफ्ट्स और सरदार पटेल का हस्तक्षेप
अनुच्छेद 370 के कई ड्राफ्ट तैयार किये गए। शुरूआती ड्राफ्ट्स आयंगर और शेख ने मिलकर तैयार किये थे। जब सरदार को इसके बारे में जानकारी दी गयी तो उन्होंने किसी भी ड्राफ्ट को स्वीकार करने के लिए साफ़ मना कर दिया।
सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद अनुच्छेद 370 का एक अन्य मसौदा 12 अक्तूबर 1949 को तैयार किया गया। जिसे शेख ने नामंजूर कर दिया और एक वैकल्पिक मसौदा बनाकर भेज दिया। (दुर्गा दास (संपादित), सरदार पटेल कॉरेस्पोंडेंस 1945-50, खंड 1, नवजीवन : अहमदाबाद, 1971, पृष्ठ 300)
आयंगर ने कुछ परिवर्तनों (शेख के मुताबिक) के साथ 15 अक्तूबर 1949 को दूसरा मसौदा शेख को भेजा। उस समय वे दिल्ली में ही थे और इस बार भी सरदार पटेल ने उसे नकार दिया। (दुर्गा दास (संपादित), सरदार पटेल कॉरेस्पोंडेंस 1945-50, खंड 1, नवजीवन : अहमदाबाद, 1971, पृष्ठ 300)
सरदार बनाम शेख – सरदार पटेल की नाराजगी
सरदार पटेल का रुख साफ़ था। जितना संभव हुआ उन्होंने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास किया। इसलिए शेख ने भी सरदार पटेल को दरकिनार करने के लिए पूरा अभियान छेड़ दिया था।
अतः सरदार पटेल ने इस पूरे मामले से अपने आप को पीछे करते हुए आयंगर को अक्तूबर 16 को पत्र लिखा, “इन परिस्थितियों में मेरी सहमति का कोई प्रश्न नहीं बनता। आपको लगता है कि ऐसा करना ही ठीक है तो आप वह कीजिए।” (वी. शंकर, सरदार पटेल : चुना हुआ पत्र व्यवहार, खंड 1, नवजीवन : अहमदाबाद, पृष्ठ 305)
शेख की वास्तविक मांग – अलगाववाद के बीज और नेहरू का समर्थन
शेख की वास्तविक मांग थी कि भारतीय संसद को राज्य के लिए कानून बनाने और अधिमिलन पत्र में उल्लिखित तीन विषयों – सुरक्षा, वैदेशिक मामले और संचार से सीधे सबंधित संवैधानिक प्रावधान के लिए प्रतिबंधित किया जाए। वे राज्य की संविधान सभा को संविधान बनाने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता चाहते थे। (वी. शंकर, माय रेमनिसिंस ऑफ़ सरदार पटेल, खंड 2, मैकमिलन : दिल्ली, 1974, पृष्ठ 61)
शेख ने यह खुलासा 17 अक्तूबर 1949 को आयंगर को लिखे एक पत्र में किया जिसमें उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नेहरू ने इसके लिए उनसे वादा किया है। (दुर्गा दास, सरदार पटेल कॉरेस्पोंडेंस 1945-1950, खंड 1, नवजीवन : अहमदाबाद, पृष्ठ 306)
कैसे सरदार पटेल को मनाया गया
इस सन्दर्भ में वी. शंकर कांग्रेस कार्यसमिति की बैठकों पर अपना संस्मरण लिखते है, “एक विदेश दौरे पर जाने से पहले पंडित नेहरू ने गोपालस्वामी आयंगर के साथ स्थिति पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कुछ प्रावधानों का मसौदा तैयार किया जिन्हें शेख अब्दुल्ला ने स्वीकार कर लिया और वे अब संविधान सभा की कांग्रेस पार्टी के समक्ष रखे जाने थे। पार्टी में एक बड़ा समूह जम्मू और कश्मीर में भावी भारतीय संघ के अंतर्गत राज्यों के बीच किसी भी भेदभाव के सुझाव पर सवाल उठा रहा था। सरदार स्वयं भी उस राय के पक्ष में पूरी तरह से थे, लेकिन अपने ढंग से समस्याओं के हल करने वाले पंडित नेहरू और गोपालस्वामी आयंगर ने हर बात काटने की अपनी नीति के अनुसार उन्होंने अपने विचार व्यक्त नहीं किये। वास्तव में उन्होंने प्रारूप का प्रस्ताव तैयार करने में हिस्सा नहीं लिया और उन प्रस्तावों के बारे में उन्होंने सुना भी तभी जब गोपालस्वामी आयंगर ने कांग्रेस पार्टी में उसकी घोषणा की। इसका सभी ने विरोध किया और गोपालस्वामी के एकमात्र प्रभावहीन समर्थक मौलाना आजाद के साथ अकेले पड़ गए। बाद में शाम को सरदार के पास गोपालस्वामी का फोन आया और उन्होंने कांग्रेस के सामने पेश प्रस्ताव तैयार करने की स्थिति के बारे में समझाया। उन्होंने लगा कि सिर्फ सरदार ही दखल देकर स्थिति को संभल सकते है। उन्होंने सरदार से उनके बचाव में आने का अनुरोध किया। शेख अब्दुल्ला इस पूरी बहस से अलग रहे। मैंने उतनी हंगामेदार बैठक नहीं देखी। गोपालस्वामी के फ़ॉर्मूला के विरोध में सबकी राय आक्रामक थी और यह मुद्दा संविधान सभा की संप्रभुता तक भी पहुँच गया कि कश्मीर राज्य की संविधान सभा के बिना ही संविधान का निर्माण कर लिया जाए। ऐसी स्थिति में मौलन आजाद हो-हल्ला मचाकर सबको बोलने से रोकने लगे। बहस को पटरी पर लाने का काम सरदार पर छोड़ दिया गया और अनुरोध किया कि अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं के कारण एक अस्थाई दृष्टीकोण अपनाया जाए और अंतिम सम्बन्ध का प्रश्न जरुरत के हिसाब से बाद में हल किया जाएगा। आखिरकार यहविचार माना गया और गोपालस्वामी का प्रारूप कुछ जरुरी सुधारों के बाद स्वीकार कर लिया गया।” (वी. शंकर, माय रेमनिसिंस ऑफ़ सरदार पटेल, खंड 2, मैकमिलन : दिल्ली, 1974, पृष्ठ 61-62)
अनुच्छेद 370 संविधान सभा में – एक आखिरी परिवर्तन
अनुच्छेद 370 भारत के संविधान में 17 अक्तूबर 1949 में प्रस्तावित किया गया था। उससे पहले आखिरी समय में भी एक परिवर्तन किया गया था। शेख उस दिन संविधान सभा में मौजूद थे क्योंकि उन्हें वह बदलाव रास नहीं आया। उन्होंने स्थिति को अपने अनुकूल बनाने के लिए बाहर आकर आयंगर को पत्र लिखा और संविधान सभा से त्याग पत्र देने की धमकी दी। (दुर्गा दास, सरदार पटेल कॉरेस्पोंडेंस 1945-1950, खंड 1, नवजीवन : अहमदाबाद, पृष्ठ 306)
वास्तव में, शेख को इस बात की कल्पना नहीं कर पाए कि संशोधन सूची में परिचालित अंतिम मसौदे में ऐसा कोई परिवर्तन होगा। हालाँकि, इस विषय में अंतिम निर्णय से पहले उन्हें बताया गया था। वे सभा छोड़कर चले गए और यह मानते रहे कि वह उसी रूप में प्रस्तुत किया जायेगा जिस रूप में उनकी स्वीकृति प्राप्त हुई थी। हालाँकि, ऐसा हुआ नहीं और अनुच्छेद की धारा 1 की उपधारा ख के स्पष्टीकरण में एक परिवर्तन कर दिया गया था। (वी. शंकर, सरदार पटेल : चुना हुआ पत्र व्यवहार, खंड 1, नवजीवन : अहमदाबाद, पृष्ठ 369 (गोपालस्वामी आयंगर को शेख अब्दुल्ला का पत्र – 17 अक्तूबर 1949)
गोपालस्वामी आयंगर का वक्तव्य
संविधान सभा में गोपालस्वामी आयंगर के अनुसार, “वहां स्थिति असामान्य हैं, इसलिए इस अनुच्छेद को संविधान सभा के समक्ष पेश किया गया है।“
जब एक सदस्य पूछा कि यह भेदभाव किसलिए किया जा रहा है? इस पर आयंगर ने जवाब दिया कि जम्मू-कश्मीर अभी अधिमिलन के लिए परिपक्व नहीं है, लेकिन जल्दी ही यह अन्य रियासतों की तरह भारत का हिस्सा होगा। (भारत की संविधान सभा : अनुच्छेद 306A – 17 अक्तूबर 1949)
सरदार पटेल ने अपने हस्तक्षेप से क्या परिवर्तन करवाए?
पहला जो ड्राफ्ट आया उसमें सभी संवैधानिक शक्तियां शेख अब्दुल्ला की सरकार के पास थी.
फिर जो सरदार पटेल ने बदलाव करवाया उसमें शेख की अंतरिम सरकार के स्थानपर यूनियन ऑफ़ इंडिया को जोड़ दिया गया.
इसके बाद फिर एक और ड्राफ्ट तैयार किया गया जोकि शेख और आयंगर ने मिलकर तैयार किया था.
इसके बाद जिस दिन यह संविधान सभा में लाया गया उसी दिन भी सरदार पटेल के प्रयासों से एक और बदलाव किया गया जिसने 2019 में इस अनुच्छेद को हटाने का रास्ता साफ़ कर दिया.
1964 में इस अनुच्छेद को हटाने के असफल प्रयास
लोकसभा में हरि विष्णु कामथ (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी), बिशनचन्द्र सेठ (हिन्दू महासभा), भीष्म प्रसाद यादव (कांग्रेस), बी.के. धाओं (कांग्रेस), यशपाल सिंह (कांग्रेस आई.), दीवान चंद शर्मा (कांग्रेस), सिद्देश्वर प्रसाद (कांग्रेस), प्रफुल्ल चन्द्र बरुआ (कांग्रेस) और प्रकाशवीर शास्त्री (निर्दलीय) ने मिलकर एक सवाल पूछा, “जम्मू और कश्मीर राज्य के भारतीय संघ के साथ घनिष्ठ एकीकरण (close integration) के लिए आगामी कदम किस प्रकार लिए गए है अथवा लिए जा रहे है?” (Lok Sabha Debates, 12 February 1964)
इसी क्रम में यशपाल सिंह ने अनुच्छेद 370 को इस दिशा में अड़चन बताया और सवाल किया कि इसे हटाने में अभी और कितना समय लगेगा?
कांग्रेस के सदस्य एम. सी. छागला ने सुरक्षा परिषद से संबंधित लोकसभा की चर्चा में कहा, “मुझे उम्मीद है कि जल्दी ही अनुच्छेद 370 संविधान से विलुप्त हो जाएगा। (Lok Sabha Debates, 24 February 1964)
कुछ दिनों बाद कामथ, यशपाल और बरुआ ने फिर से भारत सरकार (गृह मंत्री) से सदन में प्रश्न किया, “क्या उन्हें इसकी जानकारी है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने स्वयं इस पक्ष में वक्तव्य दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त अथवा समाप्त करके भारतीय संघ के साथ राज्य का पूर्ण अधिमिलन होना चाहिए।” (Lok Sabha Debates, 25 March, 1964)
प्रकाशवीर शास्त्री लोकसभा में बिजनौर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उन्होंने 11 सितम्बर को अनुच्छेद 370 पर संविधान संशोधन बिल (omission of Article 370) पेश किया। उनके भाषण के पहले शब्द इस प्रकार थे, “जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति से संबधित भारतीय संविधान की धारा 370 हटा दी जाए।” (Lok Sabha Debates, 11 September 1964)
भारत सरकार ने जवाब में इसे राज्य सरकार पर टालते हुए कहा कि वहां से ऐसा कोई सुझाव नहीं आया है। प्रकाशवीर 20 नवम्बर को दोबारा प्रस्ताव ले आये, “संविधान में संशोधन करने वाले अर्थात संविधान की धारा 370 को संविधान से हटाकर जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत का अभिन्न अंग बनाने वाले विधेयक पर जो चर्चा 11 सितम्बर, 1964 को स्थगित की गयी, उसको फिर से आरम्भ किया जाए।” (Lok Sabha Debates, 20 November 1964) सदन में सभापति के माध्यम से सरकार ने चर्चा के लिए स्वीकृति दे दी।
इस दिन सबसे पहले अब्दुल गनी गोनी ने भाषण देते हुए प्रकाशवीर को शुभकामनाएँ दी। गोनी पहले भी नेशनल कांफ्रेंस की कार्यसमिति में इस अनुच्छेद को हटाने का प्रस्ताव ला चुके थे। ऐसा उन्होंने गुलाम मोहम्मद सादिक के कहने पर किया था। हालाँकि तब सादिक वहां के मुख्यमंत्री नहीं थे। लोकसभा में गोनी ने लोकतंत्र का हलवा देते हुए केंद्र सरकार को कहा कि वह इस पर एक उचित विधेयक लेकर आये। उसे राज्य सरकार को भेजे और उन्हें सात दिन का समय दे। क्योंकि सादिक अब वहां मुख्यमंत्री है और वे अनुच्छेद हो हटाने के लिए पहले से ही प्रतिबद्ध है।
सैयद नज़ीर हुसैन समनानी ने प्रकाशवीर के समर्थन में कहा, “जैसे महाराष्ट्र है, वैसे ही जम्मू है। हमारे इन फैसलों के बावजूद सवाल यह है कि आजतक क्यों है दफा 370? किसलिए हैं दफा 370?……हमने कभी नहीं चाहा कि हम दफा 370 को कायम रखना चाहते है।
दिन के खत्म होने तक बहस लम्बी चली। बिना किसी निर्णय के लोकसभा को अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। इसके बाद 4 दिसंबर को एक और कोशिश की गयी लेकिन सरकार ने नामंजूर कर दी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार की इच्छा को पूरा किया
वी. शंकर ने एकबार सरदार पटेल से पूछा था कि उन्होंने इस बचे हुए अनुच्छेद को भी क्यों पारित होने दिया? इस पर उनका जवाब था कि न तो शेख अब्दुल्ला और न ही गोपालस्वामी स्थायी है। भारत सरकार की ताकत और हिम्मत पर भविष्य निर्भर करेगा और अगर हमें अपनी ताकत पर भरोसा नहीं होगा, तो हम एक राष्ट्र के रूप में मौजूद नहीं रह पाएंगे। (वी. शंकर, माय रेमनिसिंस ऑफ़ सरदार पटेल, खंड 2, मैकमिलन : दिल्ली, 1974, पृष्ठ 63)
आख़िरकार, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में एक ऐतिहासिक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केन्द्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया। जिसे संसद के दोनों सदनों ने बहुमत के साथ स्वीकार कर लिया।
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