कम्युनिस्ट चीन ने आखिर अपनी धोखेबाजी वाली प्रवृत्ति दिखानी शुरू कर दी है। पिछले दिनों रूस के साथ अपनी नजदीकियों को बढ़—चढ़कर प्रचारित करने और रूस के राष्ट्रपति पुतिन को सस्ती दरों पर गैस देने को राजी करने के बाद, ताजा खबरों के अनुसार, चीन ने इस गैस सप्लाई के लिए बन रही पाइपलाइन के निर्माण का काम रोक दिया है। विशेषज्ञों को संदेह है कि चीन ‘दोस्त’ मास्को की पींठ में छुरा घोंप सकता है। संभवत: ड्रैगन यूक्रेन में भारी बर्फबारी में युद्ध में उलझे रूस से तय दरों से भी कम पर गैस देने का दबाव बना रहा है।
चीन जिस साइबेरिया 2 गैस पाइपलाइन को बना रहा है उस पर काम फिलहाल ठप है। सूत्रों के अनुसार, यह बीजिंग की रूस पर दबाव बनाने की एक चाल है। शायद पुतिन इसके लिए तैयार न हों, लेकिन चीन ने यह करके दिखा दिया है कि अपने मुनाफे के आगे उसके लिए ‘दोस्ती’ कोई मायने नहीं रखती। ऐसा बर्ताव ड्रैगन में कितने ही देशों के साथ करता आ रहा है।
मास्को इस वक्त सर्दी की मार के बीच यूक्रेन में युद्ध जारी रखने की जद्दोजहद झेल रहा है, तो अब यह चीन के साथ तनाव का यह नया विषय उठ खड़ा हुआ है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए यह राष्ट्रपति जिनपिंग की ओर से एक तगड़ा आघात साबित हो सकता है। कारण, चीन उस पाइपलाइन को बनाने से पल्ला झाड़ने के पैंतरे दिखा रहा है जो रूस की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ज्यादा मायने रखने वाली मानी जाती है।
साइबेरिया 2 गैस पाइपलाइन ही है जिसके जरिए रूस ने चीन के साथ घटी दरों पर अरबों क्यूबिक मीटर गैस देने का करार किया है। लेकिन अब चीन की कम्युनिस्ट सत्ता पुतिन को यूक्रेन में घिरे देखकर मजबूरी का फायदा उठाने की गरज से तय कीमतों को भी नीचे लाने का दबाव बनाती दिख रही है। इतना ही नहीं, तो बीजिंग चाहता है कि इस पाइपलाइन के निर्माण पर आ रहा खर्च भी रूस ही वहन करे। इस दृष्टि से उसने अब तक इस पर खर्च किए अरबों डॉलर का हिसाब भी रूस के हवाले कर दिया है।
कहां तो बीजिंग ने पिछले दिनों इसी पाइपलाइन को आगे रखकर दुनिया को जताया था कि उसकी रूस के साथ निकटताएं बढ़ चुकी हैं और यह पाइपलाइन ‘दोस्ती’ को और मजबूत करने जा रही है। लेकिन अब विशेषज्ञ इस सोच में पड़े हैं कि क्या कम्युनिस्टों ने अपनी शैतानी मंशाओं के हिसाब से रूस को इस मुद्दे पर मंझधार में छोड़ने का मन तो नहीं बना लिया।
यूक्रेन युद्ध और इस पाइपलाइन को लेकर रूस पसोपेश में है। चीन इसी स्थिति का फायदा उठाने फिराक में है। रूस को बेशक इस संदर्भ में जल्द ही कोई निर्णय लेना होगा ताकि युद्ध से डगमगाई उसकी अर्थव्यवस्था को कुुछ सहारा तो मिले। आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा कि पुतिन खुद को जिनपिंग पर भरोसा करने की स्थिति में पाते हैं कि नहीं।
इस संदर्भ में और खुलासा चीन के प्रसिद्ध दैनिक ‘साऊथ चाइना मार्निंग पोस्ट’ से होता है। इसमें छपी एक रिपोर्ट बताती है कि इस पाइपलाइन के पूरी बनने पर इसके माध्यम से प्रतिवर्ष 50 अरब क्यूबिक मीटर नेचुरल गैस पहुंचाई जाने का विचार बन रहा था। कारण यह है कि यूक्रेन में जारी संघर्ष की वजह से रूस यूरोपीय देशों को गैस नहीं भेज पा रहा है। यूरोपीय देशों में उसकी गैस बड़े पैमाने पर खरीदी जा रही थी और उसे वहां से काफी पैसा भी आ रहा था, लेकिन अब वह आर्थिक स्रोत बंद है।
इस वजह से रूस इस उम्मीद में है कि वह गैस चीन को बेचने से कुछ हद तक घाटा पट जाएगा। लेकिन क्या अब ऐसा होगा, चीन के व्यवहार से तो इस पर सवाल खड़ा हो गया है। किसी भी देश की मजबूरी का फायदा उठाना चीन की शैतानी नीति रही है। भारत के पड़ोसी देश और अफ्रीका के गरीब देश उसकी यह फितरत बखूबी पहचानते हैं। इसीलिए चीन को अब रूस से वह गेस उन दामों से भी कम पर चाहिए जो पहले तय हुए थे।
राष्ट्रपति जिनपिंग के रूस दौरे में संभवत: उनकी पुतिन से इस विषय पर बात हुई थी। पुतिन ने लगभग 98 अरब क्यूबिक मीटर गैस चीन को देने का वायदा भी किया था। मौजूदा साइबेरिया 1 पाइपलाइन के रास्ते सालाना सिर्फ 67 अरब क्यूबिक मीटर गैस ही सप्लाई की जा सकती है। इसीलिए रूस चाहता है कि यह दूसरी साइबेरिया 2 पाइपलाइन जितना जल्दी हो बन जाए, लेकिन अब चीन की तरफ से पैदा किया गया यह नया अड़ंगा पुतिन की इस योजना को और पीछे धकेल सकता है।
रूस से भी मिले सुराग यही बता रहे हैं कि ड्रैगन कीमतें और कम करने का दबाव बना रहा है। वह जानता है कि इस पाइपलाइन को बनवाना पुतिन की मजबूरी है, क्योंकि वह नहीं चाहेंगे कि उनकी अरबों क्यूबिक मीटर गैस जाया हो। वे यही चाहेंगे कि उससे उनके देश को कुछ पैसा तो मिले।
उधर चीन की तरफ से कम कीमतों के अलावा भी एक और शर्त लगाए जाने का पता चला है। वह यह कि इस पाइपलाइन को बनाने का खर्च भी रूस ही उठाए। इसी उद्देश्य से उसने अब तक इस पर आया खर्च का हिसाब रूस के हवाले कर दिया है।
यूक्रेन युद्ध और इस पाइपलाइन को लेकर रूस पसोपेश में है। चीन इसी स्थिति का फायदा उठाने फिराक में है। रूस को बेशक इस संदर्भ में जल्द ही कोई निर्णय लेना होगा ताकि युद्ध से डगमगाई उसकी अर्थव्यवस्था को कुुछ सहारा तो मिले। आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा कि पुतिन खुद को जिनपिंग पर भरोसा करने की स्थिति में पाते हैं कि नहीं।
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