चीन की दक्षिण चीन सागर में चल रहीं चालाकियों के संदर्भ में फिलिपींस के राष्ट्रपति की हुंकार की गूंज बीजिंग तक जरूर पहुंच गई होगी। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण दक्षिण चीन सागर में चीन के जहाज दूसरे देशों के जहाजों को ही नहीं धमकाते हैं, बल्कि विस्तारवादी चीन वहां मौजूद दूसरे देशों के टापुओं पर अपना मालिकाना हक भी जमाता है। उसकी धौंस यह है कि वह पूरा सागर उसका है, उसके अधीन है, जबकि असल स्थिति यह नहीं है। चीन की हरकतों ने वहां ऐसा तनाव पैदा कर दिया है कि फिलिपींस के राष्ट्रपति मार्कोस ने खुलकर कहा कि हम अपनी एक इंच जमीन भी किसी बाहरी ताकत को कब्जाने नहीं देंगे।
फिलिपींस के राष्ट्रपति एपेक शिखर वार्ता के लिए अमेरिका में थे। वहां अपने वक्तव्य में उन्होंने चीन और दक्षिण चीन सागर का उल्लेख करते हुए कहा कि हम अपने स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं करेंगे, किसी भी देश को अपनी एक इंच जमीन भी नहीं कब्जाने देंगे।
चीन एक तरह से पूरे दक्षिण चीन सागर को ‘अपना’ बताता है। लेकिन फिलीपींस के अलावा चार और देश हैं जो विस्तारवादी कम्युनिस्ट सरकार के दावे को सिरे से खारिज करते आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन भी चीन के ऐसे सभी दावों को आधारहीन बता चुका है। लेकिन तो भी, अपनी फितरत के अनुसार, चीन दक्षिण चीन सागर पर इस संयुक्त राष्ट्र कंवेशन को मानने से इंकार करता रहा है।
दरअसल पिछले कुछ दिनों से फिलिपींस और चीन के बीच उस सागर में तनाव चल रहा है। चीन फिलिपींस के दो टापुओं को अपनी जमीन बताकर कब्जाने की चालें चलता आ रहा है जबकि उन पर फिलिपींस के सैनिक बेस हैं। पिछले दिनों उन्हीं सैनिकों को रसद पहुंचाने जा रहे जहाज को चीन के तटरक्षक जहाज ने धमकाते हुए उसका रास्ता रोक दिया और यह गतिरोध लंबा खिंचता गया था। उस प्रकरण में चीनी तटरक्षकों ने फिलीपींस के जहाज को रेडियो संदेशों पर धमकियां जैसी दीं कि वह ‘बिना इजाजत के चीन के जल क्षेत्र क्यों घुसा है, उसने सीमा लांघी है’। कुछ अन्य देशों के जहाजों पर भी चीन ऐसे ही आरोप लगाता रहा है।
उनकी भावनाओं से सहमति जताते हुए बाद में बाइडन प्रशासन की ओर से बयान आया कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में कई टापुओं पर अपने सैनिक जमा किए हुए हैं और वह वहां तनाव बढ़ाने में लगा है। इस संदर्भ में चीन फिलिपींस, अमेरिका और जापान जैसे देशों को धमकाता भी आ रहा है। उसके टोही जहाज सागर में गश्त करते हुए अपनी धमक जैसी बनाए रखने की कोशिश करते रहते हैं।
रणनीतिक और सामरिक रूप से दक्षिण चीन सागर की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। लेकिन चीन द्वारा उसे ‘अपना’ जलक्षेत्र बताने के पीछे उसकी विस्तारवादी सोच के अलावा इलाके पर अपनी दादागिरी दिखाना भी है। वह ऐसा इलाका है जहां कई अन्य देशों के अपने अपने दावे हैं। जैसे पहले बताया, दो टापू, एटोल और शोल फिलिपींस के माने जाते हैं। फिलीपींस के राष्ट्रपति मार्कोस जूनियर का साफ कहना है कि चीन इन्हीं एटोल तथा शोल को लेकर अपनी धमक दिखाता है जबकि ये दोनों ही टापू के लिए अपनी रुचि दिखाई है, जो फिलीपींस के सागर तट के बहुत ही नजदीक स्थित हैं। इस वजह से तनाव कम होने की बजाय बढ़ता ही गया है।
एपेक की शिखर बैठक अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में हुई थी, जिसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल हुए थे और इस मौके पर उनकी राष्ट्रपति बाइडन से एक महत्वपूर्ण वार्ता भी हुई थी। यहां बता दें कि मार्कोस का अमेरिका जाना भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कारण यह कि एक, दक्षिण चीन सागर में अमेरिका उसकी स्थिति से सहमति जताता है। दूसरे, दोनों देशों के बीच एक लंबे समय से गठजोड़ है, जिसके कई ऐसे आयाम हैं जो दोनों देशों के साझे हित से जुड़ते हैं।
चीन की जहां तक बात है, तो वह एक तरह से पूरे दक्षिण चीन सागर को ‘अपना’ बताता है। लेकिन फिलीपींस के अलावा चार और देश हैं जो विस्तारवादी कम्युनिस्ट सरकार के दावे को सिरे से खारिज करते आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन भी चीन के ऐसे सभी दावों को आधारहीन बता चुका है। लेकिन तो भी, अपनी फितरत के अनुसार, चीन दक्षिण चीन सागर पर इस संयुक्त राष्ट्र कंवेशन को मानने से इंकार करता रहा है।
मार्कोस चीन के मुकाबले एक बहुत छोटे से देश के राष्ट्रपति हैं, लेकिन चीन की किसी भी तरह की दबंगई के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं। और यह बात उन्होंने ‘एपेक’ के दौरान अपने भाषण में भी कही कि फिलिपींस झुकेगा नहीं। अमेरिका के रक्षा विभाग का स्पष्ट रुख है कि चीन ने दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अनेक टापुओं का जबरदस्त सैन्यीकरण कर दिया है। टापुओं पर उसने जहाज तथा विमान रोधी मिसाइलें, लड़ाकू विमान और अन्य अत्याधुनिक सैन्य उपकरण तैनात किए हुए हैं।
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