पड़ोसी इस्लामी देश में शासन—प्रशासन पर सेना का दबदबा कितना है, इसका एक और उदाहरण देखने में आया है। यहां पंजाब प्रांत के रावलपिंडी शहर में एक जज को सिर्फ इसलिए पद से हटना पड़ा क्योंकि उसने रक्षा सचिव को अदालत के आदेश को मानने में कोताही करने पर डांट दिया था। बेचारे जज को शायद नहीं पता था कि वह रक्षा सचिव उस पाकिस्तानी फौज का जनरल रह चुका था जिसके इशारे पर सत्ता चलती है।
ये जज महोदय थे रावलपिंडी के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश वारिस अली। लेकिन अब वे लाहौर सत्र अदालत में विशेष कार्याधिकारी बना दिए गए हैं। यानी उस पद पर बैठा दिए गए हैं जो काम का कोई काम नहीं करता, बस बैठे—बैठे तनख्वाह लेता है। पाकिस्तान के किसी फौजी अधिकारी रहे व्यक्ति को फटकराने भर की सजा है ये।
वारिस अली ने आखिर उस दिन किया क्या था। रावलपिंडी के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के नाते वारिस अली ने पाकिस्तान के रक्षा सचिव पद पर बैठे ले. जनरल हमूदुज जमां को फटकार दिया, क्योंकि उन्होंने अदालत के फरमान का पालन करने में कोताही बरती थी।
जज वारिस अली ने रक्षा सचिव को हुक्म दिया था कि फौज के कारोबार तथा उससे मुनाफा कमाने वालों पर उन्हें रिपोर्ट सौंपी जाए। लेकिन रक्षा सचिव ले. जनरल हमूदुज ने कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी यानी अदालत के आदेश की अवहेलना की। इसी पर नाराज होकर जज वारिस अली ने उन्हें फटकार लगा दी थी।
वारिस को पता नहीं था अथवा ध्यान नहीं रहा कि रक्षा सचिव हमूदुज उस देश के जनरल रहे हैं। ले. जनरल हमूदुज को पड़ी फटकार की गूंज सेना मुख्यालय तक पहुंची और जज को उस पद से हटाने का आदेश पारित कर दिया गया। सरकारी—प्रशासनिक कामकाज ही नहीं, न्यायपालिका के कामकाज में भी सेना का ऐसा रौब कायम है।
इस बारे में लाहौर उच्च न्यायालय के पंजीयक शेख खालिद बशीर की तरफ से अधिसूचना जारी की गई कि ‘माननीय मुख्य न्यायाधीश रावलपिंडी के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश वारिस अली को लाहौर सत्र न्यायालय में ओएसडी के पद पर बैठा रहे हैं।’ पाकिस्तान में यह विशेष कार्याधिकारी अर्थात ओएसडी शब्द भी एक मजाक जैसा बन गया है क्योंकि यह पद अक्सर ऐसे सरकारी अधिकारियों को दिया जाने लगा है, जिन्हें कोई काम तो नहीं दिया जाता, लेकिन तनख्वाह मिलती रहती है।
यह मामला इतना तूल पकड़ चुका है कि अंग्रेजी दैनिक द डॉन में रिपोर्ट छपी है। इसमें लिखा है कि एक मामले की सुनवाई पूरी करके जज वारिस अली ने सरकार को आदेश दिया कि रक्षा सचिव को हटा दिया जाए। जज वारिस अली ने रक्षा सचिव को हुक्म दिया था कि फौज के कारोबार तथा उससे मुनाफा कमाने वालों पर उन्हें रिपोर्ट सौंपी जाए। लेकिन रक्षा सचिव ले. जनरल हमूदुज ने कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी यानी अदालत के आदेश की अवहेलना की। इसी पर नाराज होकर जज वारिस अली ने उन्हें फटकार लगा दी थी। लेकिन इस वजह से उन्हें जिस तरह अपमानित किया गया, उसने न्यायपालिका में खासी गहमागहमी पैदा कर दी।
टिप्पणियाँ