बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले लोग पैसे देकर अपने घरों का कूड़ा उठवा रहे थे। यह सब देख कर उन्होंने दो दोस्तों के साथ कबाड़ का व्यवसाय शुरू करने की योजना बनाई। तय हुआ कि ‘सेल कबाड़ी डॉट कॉम’ नाम से वेबसाइट बनाकर घर-घर से कबाड़ खरीदा जाए। इसके लिए 10 लाख परिवारों से संपर्क करने का लक्ष्य रखा गया।
बिहार के सासाराम के विश्वेश कुमार ने 2014 में बेंगलुरु से कम्पूटर साइंस की पढ़ाई पूरी की। उसी वर्ष वह चचेरी बहन की शादी में वाराणसी गए और वहां जगह-जगह कूड़े का अंबार देखा। बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले लोग पैसे देकर अपने घरों का कूड़ा उठवा रहे थे। यह सब देख कर उन्होंने दो दोस्तों के साथ कबाड़ का व्यवसाय शुरू करने की योजना बनाई। तय हुआ कि ‘सेल कबाड़ी डॉट कॉम’ नाम से वेबसाइट बनाकर घर-घर से कबाड़ खरीदा जाए। इसके लिए 10 लाख परिवारों से संपर्क करने का लक्ष्य रखा गया।
अमूमन लोग किताब, कॉपी, अखबार आदि भी फेंक देते हैं, जिन्हें पुन: संसाधित किया जा सकता है। इन्हें बेचने पर अच्छी कीमत मिल जाती है। विश्वेश ने लोगों से कबाड़ खरीदना शुरू किया। कबाड़ खरीददारों से भी बात की। शुरुआत में चुनौतियां कम नहीं थी। सबसे बड़ी चुनौती थी 10 लाख परिवारों तक पहुंचना, इसके लिए बड़ा नेटवर्क तैयार करना और फिर उसे संजोये रखना। कदम-कदम पर हतोत्साहित करने वाले लोग भी थे। परिवार के लोग कहते थे-‘पढ़-लिख कर कबाड़ बेचोगे?’ लेकिन विश्वेश ने हार नहीं मानी। उन्होंने बताया कि कबाड़ के लिए डोर टू डोर सर्वे किया। फिर सुनियोजित तरीके से काम शुरू किया, जिसके अच्छे परिणाम निकले। जब काम चल पड़ा तो उन्हीं लोगों ने साझीदार बनने की इच्छा जताई, जो पहले तंज कसते थे।
विश्वेश वीएमसी नाम से फ्लाई ऐश की ईंट भी बनाते हैं, जिसका वार्षिक कारोबार 5 करोड़ रुपये का है। पारंपरिक ईंट की तुलना में इस पर लागत आधी आती है। वे बताते हैं कि दक्षिण के राज्यों में मिट्टी खोदने पर रोक है, इसलिए वहां फ्लाई ऐश की ईंट ही उपयोग में लाई जाती हैं। भविष्य में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में भी यही फ्लाई ऐश की ईंट ही बाजार में दिखाई देंगी। इसके अलावा, विश्वेश कुमार का ग्रुप हाउसिंग कारोबार भी है।
काम अच्छा चल रहा था, लेकिन 2020 में कोरोना आ गया और उनका सालाना 5 करोड़ रुपये का कारोबार ठप हो गया। विश्वेश ने इस बार वेयर हाउस और रियल एस्टेट में कदम रखे। आज वाराणसी और बिहार में उनके करीब 21 वेयरहाउस हैं, जिसमें देशी-विदेशी कंपनियां भंडारण करती हैं। ब्रिटानिया, आर्या, सोहन लाल-मोहन लाल आदि कंपनियों से उनका करार है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में उपजने वाले अधिकांश गेहूं और धान का भंडारण इन गोदामों में ही किया जाता है, क्योंकि किसानों के पास उपज रखने के लिए जगह नहीं है।
इसलिए उन्हें अनाज बेचने की जल्दी रहती है। यदि किसान कुछ समय तक अनाज को सुरक्षित रखें तो बाद में इसे अपनी मर्जी के दाम पर बेच सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने ब्लॉक स्तर पर एक वेयर हाउस बनाने की घोषणा की है। इसे देखते हुए वे कई जगहों पर किसानों से लीज पर जमीन लेकर वेयर हाउस बना रहे हैं। वेयरहाउस क्षेत्र में उनका सालाना कारोबार 2 करोड़ रुपये का है।
विश्वेश वीएमसी नाम से फ्लाई ऐश की ईंट भी बनाते हैं, जिसका वार्षिक कारोबार 5 करोड़ रुपये का है। पारंपरिक ईंट की तुलना में इस पर लागत आधी आती है। वे बताते हैं कि दक्षिण के राज्यों में मिट्टी खोदने पर रोक है, इसलिए वहां फ्लाई ऐश की ईंट ही उपयोग में लाई जाती हैं। भविष्य में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में भी यही फ्लाई ऐश की ईंट ही बाजार में दिखाई देंगी। इसके अलावा, विश्वेश कुमार का ग्रुप हाउसिंग कारोबार भी है।
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