चंपारण (बिहार) के एक अति साधारण परिवार में जन्मे राकेश पांडे का कारोबार आज कई देशों में फैला है। उनकी कंपनी ‘ब्रावो फार्मा’ नौ देशों में कैंसर की दवा तैयार करती है। यह कंपनी एचआईवी पर निरंतर शोध भी कर रही है।
यदि आपके अंदर हिम्मत और मेहनत करने की इच्छा है तो सफलता अवश्य मिलेगी। कुछ ऐसा ही किया है राकेश पांडे ने। चंपारण (बिहार) के एक अति साधारण परिवार में जन्मे राकेश पांडे का कारोबार आज कई देशों में फैला है। उनकी कंपनी ‘ब्रावो फार्मा’ नौ देशों में कैंसर की दवा तैयार करती है। यह कंपनी एचआईवी पर निरंतर शोध भी कर रही है। एक समय ऐसा था कि जब राकेश पढ़ने के लिए पटना आए तो उनके पिता के पास इतना भी पैसा नहीं था कि वे अपने बेटे को पटना में रखकर पढ़ा सकें।
राकेश भी अपने पिता की स्थिति से अवगत थे। इस कारण उन्होंने पटना के एक होटल में ‘वेटर’ का काम करके पढ़ाई का खर्चा निकाला। पटना के बाद वे दिल्ली आ गए। यहां भी एक मार्केटिंग कंपनी में 6,000 रु. महीने की नौकरी शुरू की। वे काफी समय तक कंपनी के उत्पाद को बेचने में लगे रहे। उन्हें जो लक्ष्य दिया जाता, उसे वे बहुत ही आसानी से पूरा कर देते। इस कारण कंपनी के उपाध्यक्ष ने एक दिन राकेश को सलाह दी कि तुम जो कर रहे हो, वही करो, लेकिन अपनी कंपनी के माध्यम से करो। राकेश के लिए यह सलाह किसी सपने से कम नहीं थी।
अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में किस तरह के बदलाव आए हैं। इसके साथ ही वे कश्मीर घाटी में उद्योगों को बढ़ावा देना चाहते हैं। राकेश कहते हैं, आप चाहे कितनी भी ऊंचाई छू लें, लेकिन अपनी जड़ों को कभी न भूलें। अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति निष्ठावान रहें।
उन्होंने अपने कुछ साथियों से मदद लेकर 2011 में ‘ब्रावो फार्मा’ कंपनी की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। दिन-रात काम किया। इससे कंपनी का व्याप बढ़ने लगा। जैसे-जैसे काम बढ़ा, उन्होंने और लोगों को भी अपने साथ जोड़ना शुरू किया। मात्र 12 वर्ष पुरानी यह कंपनी आज वैश्विक हो चुकी है। इसका सालाना कारोबार 100 करोड़ रु. से कुछ ऊपर है। ब्रिटेन, अफ्रीका, मध्य एशिया, फिनलैंड आदि देशों में कंपनी का काम है। राकेश कहते हैं कि मेरी कंपनी का मुख्य उद्देश्य है सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराना।
राकेश केवल कारोबारी ही नहीं हैं। ये देश और समाज के लिए भी बहुत कुछ करते हैं। अभी हाल ही में राकेश ने ‘चंपारण-कश्मीर सद्भवाना यात्रा’ पूरी की है। इसके अंतर्गत वे बिहार के 100 से अधिक युवाओं को अपने खर्चे पर जम्मू-कश्मीर ले गए। इसके पीछे उनका उद्देश्य था युवाओं को कश्मीर की धार्मिक धरोहरों, जैसे शंकराचार्य मंदिर, क्षीर भवानी मंदिर, त्रेहगाम शिव मंदिर, मार्तण्ड सूर्य मंदिर और शारदापीठ के दर्शन कराना, उन्हें इन धरोहरों के बारे में बताना, जिन्हें बर्बाद करने की पूरी कोशिश की गई, लेकिन अब ये फिर से वापस अपने वैभव को प्राप्त करने की ओर बढ़ रही हैं।
उन्होंने इस यात्रा के जरिए युवाओं को यह भी बताया कि अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में किस तरह के बदलाव आए हैं। इसके साथ ही वे कश्मीर घाटी में उद्योगों को बढ़ावा देना चाहते हैं। राकेश कहते हैं, आप चाहे कितनी भी ऊंचाई छू लें, लेकिन अपनी जड़ों को कभी न भूलें। अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति निष्ठावान रहें।
राकेश ने कोरोना काल में हजारों लोगों की मदद की थी। इन सेवा कार्यों के लिए उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए हैं।
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