दीन दयाल जालान टेक्सटाइल प्रा. लि. का वार्षिक कारोबार 700 करोड़ रुपये का है। इस प्रतिष्ठान में लगभग 1,000 कर्मचारी प्रत्यक्ष और इतने ही अप्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं।
टेक्सटाइल और मल्टी ब्रांड रेडीमेड कपड़ों के बाजार में ‘जालान होल सेल बाजार’ की गिनती देश के बड़े व्यापारियों में होती है। दीन दयाल जालान टेक्सटाइल प्रा. लि. का वार्षिक कारोबार 700 करोड़ रुपये का है। इस प्रतिष्ठान में लगभग 1,000 कर्मचारी प्रत्यक्ष और इतने ही अप्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं।
कंपनी के संस्थापक सूर्यकांत जालान के पुरखे राजस्थान के सीकर में रहते थे। वहां से वे पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) गए, फिर रांची (झारखंड) में बस गए। रांची के सिल्ली गांव में जन्मे सूर्यकांत जालान पिता दीन दयाल जालान के साथ 1969 में वाराणसी आए। तब वे 12 वर्ष के थे। सूर्यकांत बताते हैं, ‘‘ पिता ने जब कारोबार शुरू किया था, तब उनके पास पूंजी नहीं थी। परिवारिक संपत्ति के बंटवारे में कुछ रुपये मिले थे, जो दुकान के किराये आदि में ही खर्च हो गए थे।
वाराणसी में किसी से जान-पहचान भी नहीं थी। जैसे-तैसे पिताजी ने कपड़े का व्यापार शुरू किया। तब तेजी थी, इसलिए काम चल पड़ा। लेकिन 1974 में बाजार में जबरदस्त मंदी आई, जिससे बहुत घाटा हुआ। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें। मैं 10वीं कक्षा में था। आर्थिक तंगी में मेरी पढ़ाई बाधित हुई।’’ उसी समय उन्होंने कारोबार की बारीकियों को समझा और व्यवसाय में कूद पड़े।
आज वाराणसी के रोहनिया जगतपुर में 5 लाख वर्ग फीट में उनका शोरूम है। इसमें 3 लाख वर्ग फीट में व्यावसायिक प्रतिष्ठान निर्मित है। मलदहिया और महमूरगंज में भी रिटेल शोरूम है। दिल्ली, मुंबई व सूरत में खरीद-आढ़त कार्यालय तथा कोलकाता, अमदाबाद व तमिलनाडु के इरोड में एसोसिएट कार्यालय है। कंपनी के परिसर में कर्मचारियों के लिए भोजन, जलपान और आवासीय सुविधा उपलब्ध है।
वे आगे कहते हैं, ‘‘उस कठिन दौर में हमारे एक व्यापारिक सलाहकार ने सलाह दी कि मंदी के दौर में सस्ते दाम पर कपड़े बेचिए। जितने कपड़े बिकें, उससे बाजार से और कपड़े खरीदिए। हम घाटा झेल कर लगभग 40 प्रतिशत सस्ते दाम पर कपड़े बेचते रहे। स्टाक खाली हुआ तो बाजार से सस्ते कपड़े खरीदते गए। धीरे-धीरे बाजार की दशा सुधरी तो कपड़ों के दाम में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे घाटे की भरपाई होने लगी। आज हमारा 700 करोड़ रुपये का व्यापार है। उतार-चढ़ाव के समय अडिग बने रहना चाहिए। मैं इसी को सफलता का मंत्र मानता हूं।’’
जालान कहते हैं कि हमारा उद्देश्य यह होना चाहिए कि व्यापार से अपना जीवन तो संवारें ही, सामाजिक व राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी निभाएं। उनकी कंपनी समाजिक कार्यों पर सालाना 50 करोड़ रुपये खर्च करती है। वे 66 वर्ष की आयु में भी वे व्यापार के साथ सामाजिक दायित्व का भी निर्वहन कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘‘हम भीख नहीं देते, लेकिन प्रयास करते हैं कि कोई भीख भी न मांगे।’’ 1999 में ओडिशा में आए प्रलयकारी चक्रवात में राज्य के कई गांव तबाह हो गए थे। सूर्यकांत जालान ने 5 गांवों को फिर से बसाया। इस कार्य को सूर्यकांत जालान के नेतृत्व में सुरभि शोध संस्थान के लोगों ने पूरा किया।
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