बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण मुस्लिम—बहुल जिला बने किशनगंज में मठ—मंदिरों की जमीन पर भी जिहादी तत्व कब्जा कर रहे हैं। जो विरोध करता है, उसके साथ मारपीट की जाती है।
बिहार के कई स्थानों पर जिहादी तत्व मठ—मंदिरों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं। इनकी नजर उन 3,500 एकड़ जमीन पर है, जो किसी मठ—मंदिर की संपत्ति है। इस संपत्ति पर कब्जा लंबे समय से हो रहा है। पहले इसकी गति कम थी, लेकिन अब इसकी गति बढ़ गई है। जब लालू प्रसाद मुख्यमंत्री थे तब जिहादी तत्वों ने पटना के पीरबहोर थाना अंतर्गत बिरला मंदिर की जमीन पर कब्जा किया था। अब पटना से 300 किलोमीटर दूर पूर्णिया प्रमंडल के मठ—मंदिरों की जमीन पर जिहादियों की नजर है।
हाल ही में किशनगंज के दो बड़े मंदिरों की जमीन पर जबरन कब्जा करने का मामला सामने आया है। एक किशनगंज के पौआखली थानांतर्गत राधाकृष्ण मंदिर की जमीन है, तो दूसरी किशनगंज सदर के मोतीबाग चौक स्थित काली मंदिर की जमीन है। राधाकृष्ण मंदिर 175 वर्ष पुराना है। इसे 23 एकड़ जमीन दान में मिली थी, लेकिन भू माफिया या फिर जिहादी तत्वों ने प्रशासन से साठ—गांठ कर इसमें से 5 एकड़ जमीन बेचने की तैयारी कर ली है। वहीं वार्ड नंबर 5 के काली मंदिर की खतियानी जमीन पर भी जिहादी तत्वों ने कब्जा जमाना शुरू कर दिया है। स्थानीय श्रद्धालु जब इस पर आपत्ति करते हैं तो उनके साथ मारपीट भी की जाती है।
श्री राधा कृष्ण मंदिर का इतिहास
श्री राधा कृष्ण मंदिर की स्थापना 1848 में हुई। उस समय यह भोजराज सिन्हा चौधरी के स्वामित्व में था। भोजराज सिन्हा को कोई पुत्र नहीं था। उन्हें सिर्फ एक पुत्री थी जिसका विवाह मधुसूदन सिन्हा के साथ हुआ। भोजराज सिन्हा नेत्रहीन थे। इसलिए घर जमाई मधुसूदन सिन्हा ही उनकी देखभाल करते थे। भोजराज सिन्हा ने अपनी संपत्ति अपने दामाद के नाम कर दी। कुछ समय पश्चात् भोजराज सिन्हा की पुत्री दिवंगत हो गई। मधुसूदन सिन्हा की दूसरी शादी कराई गई। लेकिन दूसरी शादी के बाद भी उन्हें कोई संतान नहीं हुई। इसके बाद मधुसूदन सिन्हा ने खारुदह में अपनी 23 एकड़ जमीन पर श्री राधा कृष्ण मंदिर की स्थापना की। बाद में इस संपत्ति का 2 आना हिस्सा उनके परिवार के पास रहा। 1952 में जमींदारी उन्मूलन कानून के बाद यह हिस्सा भी मंदिर के नाम कर दिया गया। अपनी हिस्सेदारी खत्म होते ही परिजनों ने मंदिर के प्रबंधन में रुचि दिखानी छोड़ दी। लिहाजा मंदिर की स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती चली गई। 1961 में रामदास बाबा जी के शिष्य वासुदेव बाबाजी को सेवादार के तौर पर संपत्ति लिख दी गई। वासुदेव बाबाजी के दिवंगत होने पर इसके सेवादार दामोदर दास बाबाजी बने। अभी इसके सेवादार दामोदर दास बाबाजी हैं। कहा जा रहा है कि दामोदर दास बाबा जी को जिहादियों ने अपने चंगुल में ले लिया है। गलती से दामोदर दास बाबा जी इसे अपनी संपत्ति मान बैठे हैं। जबकि उच्चतम न्यायालय का निर्णय है कि पुजारी को मंदिर की जमीन का मालिक नहीं माना जा सकता है। मंदिर से जुड़ी जमीन के मालिक देवता ही हैं। पुजारी केवल मंदिर की संपत्ति के प्रबंधन का काम कर सकता है। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की एक पीठ ने स्पष्ट कहा है कि पुजारी केवल मंदिर की संपत्ति के प्रबंधन के उद्देश्य से भूमि से जुड़े काम कर सकता है।
मध्य प्रदेश के एक मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदातल ने स्पष्ट कहा है, ‘स्वामित्व स्तंभ में केवल देवता का नाम ही लिखा जाए। देवता एक न्यायिक व्यक्ति होने के कारण भूमि का स्वामी होता है। भूमि पर देवता का ही कब्जा होता है, जिसके काम देवता की ओर से सेवक या प्रबंधकों द्वारा किए जाते हैं। इसलिए, प्रबंधक या पुजारी के नाम का जिक्र स्वामित्व स्तंभ में करने की आवश्यकता नहीं है।’ इस पीठ ने यह भी कहा है कि कि पुजारी काश्तकार मौरुशी, (खेती में काश्तकार) या सरकारी पट्टेदार या मौफी भूमि (राजस्व के भुगतान से छूट वाली भूमि) का एक साधारण किरायेदार नहीं है, बल्कि उसे औकाफ विभाग (‘देवस्थान से संबंधित) की ओर से ऐसी भूमि के केवल प्रबंधन के उद्देश्य से रखा जाता है।
पीठ ने यह भी कहा है, ‘पुजारी केवल देवता की सम्पत्ति का प्रबंधन करने की एक गारंटी है और यदि पुजारी अपने कार्य करने में, जैसे प्रार्थना करने तथा भूमि का प्रबंधन करने संबंधी काम में विफल रहे तो इसे बदला भी जा सकता है। इस प्रकार उन्हें भूमिस्वामी नहीं माना जा सकता।’
शीर्ष अदालत मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस आदेश में न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा ‘एमपी लॉ रेवेन्यू कोड’ 1959 के तहत जारी किए गए दो परिपत्रों को रद्द कर दिया था। इन परिपत्रों में पुजारी के नाम राजस्व रिकॉर्ड से हटाने का आदेश दिया गया था, ताकि मंदिर की सम्पत्तियों को पुजारियों द्वारा अनधिकृत बिक्री से बचाया जा सके।
किशनगंज जिले के कुछ स्थानीय लोगों के अनुसार मंदिर की भूमि पर वर्तमान मंदिर के प्रबंधक दामोदर दास एक साज़िश के तहत मालिकाना हक रखते हैं। दामोदर दास को अपने कब्जे में लेकर जिहादी तत्व मनमाफिक हस्ताक्षर करवा रहे हैं। मंदिर की भूमि को सुरक्षित करने के लिए ग्रामीणों का विरोध हो रहा है। स्थानीय ग्रामीणों के नेतृत्वकर्ता हलधर बोसाक के अनुसार कुछ दिन पहले जानकारी मिली कि उक्त राधाकृष्ण मंदिर की कुछ भूमि का ठाकुरगंज प्रखंड निबंधन कार्यालय में किसी दूसरे के नाम से निबंधन होने जा रहा है और फिर ग्रामीणों ने ठाकुरगंज निबंधन कार्यालय पर मंदिर भूमि के मूल दस्तावेज के साथ निबंधन अधिकारी को आवेदन देकर रोक लगाने की मांग की। ग्रामीणों की पहल का सम्मान करते हुए निबंधन अधिकारी ने तत्काल मंदिर की जमीन को किसी दूसरे के नाम से निबंधित न करने की बात कही है।
काली मंदिर का विवाद
किशनगंज शहर में भी जिहादी मठ—मंदिरों की जमीन पर कब्जा जमा रहे हैं। किशनगंज के वार्ड संख्या 5 में वर्षों पुरानी काली बाड़ी है। काली मंदिर के नाम से स्थानीय माप के हिसाब से 7.05 हेक्टेयर जमीन मंदिर के नाम से है। जिसका खाता संख्या 147 और खेसरा संख्या 254/335 है। यहां 2 हजार 131.09 वर्ग फुट जमीन पर कब्ज़ा जमा लिया गया है। 2304 वर्ग फुट जमीन पर अनवार यूसुफ पिता मो. यूसुफ ने गैस गोदाम तथा गोदाम तक जाने के लिए रास्ता बना लिया है। वहीं 827.09 वर्ग फुट जमीन पर मो. जावेद अख्तर पिता मो. जमाल अख्तर ने ईंट की दीवार और पिलड़ बना लिया है। जिलाधिकारी के आदेश से अमीन ने जमीन की मापी करके इस बात की पुष्टि भी की है लेकिन अभी तक यह अवैध कब्जा हटाने में राज्य सरकार अक्षम दिख रही है। एक स्थानीय पत्रकार बीरेंद्र चौहान ने जब इस मामले को अपने समाचार पत्र में प्रकाशित किया तो उसके साथ बाजार में जिहादी तत्वों ने जमकर मारपीट की। अभी तक यह पत्रकार दहशत में है।
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