भारत बांग्लादेश सीमा के पास भारतीय सैन्य गौरव का गान करने वाला एक भव्य स्मारक बनने जा रहा है। यह स्मारक 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपनी जान की बाजी लगाने वाले भारतीय रणबांकुरों के नामों से युक्त होगा और उनकी याद को समर्पित होगा। बांग्लादेश और भारत के लोगों को इस नए बनने जा रहे स्मारक को लेकर बेदह खुशी हुई है और बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी यह प्रसन्नता प्रकट भी की है। स्मारक के लिए आवश्यक तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
भारत और बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ संबंधों के प्रतीक के तौर पर बनने वाले इस स्मारक का वास्तुशिल्प इसी मित्रता को प्रगाढ़ करने वाला होगा। स्मारक के रूप—रंग में कई मूलभूत आयाम शामिल किए गए हैं। पहली बात, यह बांग्लादेश के निर्माण में अपना जीवन लगा देने वाले सैनिकों की स्मृतियों को सामने रखेगा। एक प्रकार से यह स्मारक भारत के सशस्त्र बलों के प्रति आभार प्रकट करने जैसा ही होगा। 1971 युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान के उस हिस्से को बांग्लादेश नाम का देश बनाने वाले सैनिकों को समर्पित इस स्मारक की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद ने मार्च 2021 में रखी थी।
1971 के युद्ध में भारत की एक बड़ी भूमिका रही थी, उस युद्ध में भारतीय फौज ने शौर्य दिखाया था। 3 से 16 दिसम्बर 1971 के बीच हुए उस युद्ध में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय कमांडरों के आगे समर्पण किया था। इस तरह पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा उससे कट गया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। भारत में हर साल 16 दिसम्बर का दिन विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
जैसा पहले बताया, भारत-बांग्लादेश सरहद के निकट आशूगंज नामक जगह, जहां 4 एकड़ भूमि पर यह लंबा—चौड़ा स्मारक बनने जा रहा है, ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। यही वह जगह है जहां युद्ध से संबंधित कई घटनाक्रम घटित हुए थे। उस युद्ध में 1,600 से ज्यादा भारतीय सैनिकों ने अपने प्राण न्योछावर किए थे।
स्मारक के वास्तुशिल्प में एक ऐसी रचना होगी जो दोनों देशों के बीच दोस्ती की झलक देगी। ‘उड़ते कबूतरों के माध्यम से शूरवीरों के बलिदान के मोल पर हासिल हुई शांति को परिलक्षित करेंगे। इस स्मारक को साकार करने में अनेक लोग जुटे हैं। इनमें प्रमुख हैं स्मारक के मुख्य वास्तुकार आसिफुर रहमान भुइयां, बांग्लादेश मुक्ति युद्ध मामलों के मंत्री मोजम्मेल हक, 1971 के युद्ध के सेनानी रहे और आज मुक्ति संघर्ष मंत्रालय सचिव इशरत जहां।
स्मारक के बीच में ऐसे शिल्प और चित्र होंगे जहां उस युद्ध का एक अनुभव और झलक पेश की जाएगी। शहीदों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए रोज समारोहपूर्वक झंडा लगाया जाएगा, एक म्यूजियम होगा, पुस्तक बिक्रि केन्द्र, एक पार्क और अल्पाहार जैसी चीजें होंगी।
तत्कालीन पूर्वी 1971 के युद्ध में भारत की एक बड़ी भूमिका रही थी, उस युद्ध में भारतीय फौज ने शौर्य दिखाया था। 3 से 16 दिसम्बर 1971 के बीच हुए उस युद्ध में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय कमांडरों के आगे समर्पण किया था। इस तरह पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा उससे कट गया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। भारत में हर साल 16 दिसम्बर का दिन विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
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