–स्वामी दिव्यज्ञान
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हाल ही में झारखंड में अपने विधायक दल के नेता और सचेतक की नियुक्ति की है। चंदनकियारी से विधायक और भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अमर बाउरी को विधायक दल का नेता बनाया गया है, जबकि मांडू के विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को विधानसभा में पार्टी का सचेतक घोषित किया गया है। ये नियुक्तियां भाजपा की ओबीसी-दलित-जनजाति गठजोड़ की रणनीति का हिस्सा हैं।
झारखंड में भाजपा का मुख्य विरोधी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) है, जिसका नेतृत्व पहले जनजाति नेता शिबू सोरेन करते थे और आज उनके पुत्र हेमंत सोरेन कर रहे हैं। हेमंत सोरेन ही मुख्यमंत्री के रूप में झारखंड का शासन भी चला रहे हैं। भाजपा को झारखंड में सत्ता हासिल करने के लिए जनजाति वोट बैंक पर कब्जा करने की जरूरत थी। यही कारण है कि एक सधी रणनीति के तहत बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया, जिसका परिणाम विभिन्न उपचुनावों में दिखा और पार्टी और गठबंधन का वोट प्रतिशत बढ़ा। अब पार्टी ने अमर बाउरी को विधायक दल का नेता बनाया है। बाउरी अनुसूचित जाति से आते हैं और झारखंड के बोकारो जिले के चंदनकियारी विधानसभा से विधायक हैं। उनकी नियुक्ति से भाजपा को 28 अनुसूचित जाति के वोट बैंक में सेंध लगाने में मदद मिलेगी। एक विशेष विचारधारा के समर्थक डॉ. एच. एन. दुसाध जैसे चिंतक भी भाजपा के इस दांव से निश्चित ही परेशान हो गए होंगे।
भाजपा ने जयप्रकाश भाई पटेल को सचेतक बनाया है, जो ओबीसी के सबसे बड़े समुदाय ”कुड़मी” (कुर्मी ) से आते हैं। पटेल मांडू विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं, जो झारखंड के हज़ारीबाग जिले में आता है। ओबीसी समुदाय झारखंड की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। पटेल की नियुक्ति से भाजपा को ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगाने में और मदद मिलेगी। वैसे भी कुर्मी एक—दो विधानसभा क्षेत्रों को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के ही परंपरागत मतदाता हैं। कुर्मी समाज बहुत दिनों से यह मांग कर रहा था कि प्रदेश भाजपा में उसका भी प्रतिनिधित्व हो। हलांकि जयप्रकाश भाई पटेल का नाम पहले विधायक दल के नेता के तौर पर प्रस्तुत किया गया था, लेकिन ऐसा लगता है जैसे आजसू, जो कि भारतीय जनता पार्टी झारखंड की सबसे बड़ी साझेदार है, उसके सुप्रीमो सुदेश महतो के हस्तक्षेप के बाद उनके दायित्व में बदलाव आया।
जयप्रकाश भाई पटेल पूर्व सांसद टेकलाल महतो के पुत्र हैं। भले ही वे भाजपा के तत्कालीन कद्दावर नेता यशवंत सिन्हा के राजनीतिक विरोधी रहे हों, लेकिन धर्म और अन्य मामलों में अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा का कई बार समर्थन करते थे। संगठनात्मक गुण और भाजपा की कार्य—पद्धति के चलते जयप्रकाश भाई पटेल ने बड़ा त्याग किया और झारखंड मुक्ति मोर्चा को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। एक राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके झारखंड मुक्ति मोर्चा को छोड़ देने के चलते ही उनके ससुर मथुरा प्रसाद महतो जैसे मजबूत और कद्दावर नेता को झामुमो मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला। कारण कुछ और भी हो सकते हैं। लेकिन जयप्रकाश भाई पटेल को शुरू से ही भारतीय जनता पार्टी ने काफी महत्व दिया पहले प्रदेश मंत्री बनाया। आज भाजपा में प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। आज संघ, संगठन के प्रत्येक कार्य और कार्यक्रम में जयप्रकाश भाई पटेल बढ़-चढ़कर काम करते हैं। मुख्य सचेतक का पद इन्हें दिया जाना इनकी कर्मनिष्ठा का वास्तविक परिणाम है, जिससे कुर्मी जाति एवं पिछड़ी जाति में बहुत अच्छा संदेश जाएगा।
भाजपा की ओबीसी-दलित-जनजाति गठजोड़ की रणनीति झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। यह रणनीति भाजपा को झारखंड में एक मजबूत आधार बनाने में मदद कर सकती है। यह रणनीति भाजपा को झारखंड में सत्ता हासिल करने में निश्चित ही मदद करेगी।
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