इजरायल पर हमास के आतंकी हमले के बाद इजरायली पलटवार से गाजा पट्टी धूल और धुएं से पट गई है। समूची दुनिया इस मसले पर एक बार फिर से दो खेमों में बंट गई है। पहला खेमा अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी समेत कई पश्चिमी देश हैं। वहीं दूसरा खेमा इस्लामिक देशों का है, जो कि लगातार इजरायल पर हमले की बात कर रहे हैं। इनका अगुआ ईरान बना हुआ है। जबकि भारत ने इस मामले में इजरायल का समर्थन किया है।
भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि वो फिलिस्तीन और इजरायल को एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर देखती है, लेकिन हमास ने जो किया है वो एक आतंकी हमला है और भारत आतंकवाद के खिलाफ है। हालाँकि, देश के कट्टरपंथी मानसिकता वाले चंद मुसलमान लगातार फिलिस्तीनी आतंकी संगठन का समर्थन कर रहे हैं। मुस्लिम संगठन खुलकर हमास के समर्थन में नारे लगा रहे हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि कई सालों से इजरायल, फिलिस्तीन और उसके लोगों पर जुल्म कर रहा है। लेकिन ऐसे लोगों ने एक बार भी देश के रुख के साथ खड़े होकर इजरायल पर हमास के आतंकी हमले का विरोध तक नहीं किया।
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देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी फिलिस्तीन का ही समर्थन कर रही है। भारत में इस्लामिक कट्टरपंथी मानसिकता वाले लोग ‘तेरा-मेरा रिश्ता क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह’ और अल्लाह हु अकबर के मजहबी नारे लगाकर हिन्दुस्तान के बहुसंख्यक हिन्दुओं को अपनी ताकत का अहसास कराने की कोशिशें कर रहे हैं। यहीं नहीं हिन्दुस्तान के कुछ मुसलमान इजरायल के खिलाफ जंग छेड़ने तक की बात कर रहे हैं। इन लोगों को हमास के आतंकियों का बर्बर कृत्य बहादुरी का काम लगता है।
उल्लेखनीय है कि खाड़ी और अरब के इस्लामिक देश भी इजरायल के खिलाफ एकजुट होकर हमला करने की तैयारियों में लगे हुए हैं। इस्लामिक देश भी आतंकी संगठन हमास की बर्बरता को नॉर्मल चीज बताने की कोशिशों कर रहे हैं। ईरान तो खाड़ी के देशों से इजरायल पर हमले के लिए बातचीत भी करने लगा है। ईरान ने हिजबुल्ला आतंकी संगठन से भी इजरायल के खिलाफ एक्शन को लेकर बात की है। दरअसल, ईरान लेबनान के आतंकी संगठन को आतंकी नहीं मानता है। उसका कहना है कि हिजबुल्ला एक राजनीतिक संगठन है। इन देशों को भी हमास का कृत्य बहादुरी का काम लगता है।
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हमास जैसे बर्बर आतंकी संंगठन के लिए नारेबाजी करके या भड़काऊ भाषण देकर भारत में कट्टरपंथी मौलाना क्या साबित करना चाहते हैं? क्या वे आतंक के साथ हैं? आतंकियों का साथ देने वाले को भी आतंकी ही माना जाता है तो क्या उन्हें भी आतंकी मान लिया जाए? भारत में शोर-शराबा करके ये लोग उस इजरायल पर दबाव नहीं बना पाएंगे, जिसके नागरिक युद्ध लड़ने के लिए दूसरे देशों से चलकर इजरायल आ रहेे हैं।
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कट्टरपंथी मानसिकता वाले लोगों को ये समझने की आवश्यकता है कि इजरायल मर कर जिंदा हुआ राष्ट्र है। ऐसा इसलिए क्योंकि नाजी हिटलर ने द्वितीय विश्वयुद्ध में 60 लाख यहूदियों का नरसंहार किया था। यहूदियों के पास रहने के लिए न तो अपना देश था और न ही अपनी कोई पहचान बची थी इनकी। अपनी जान बचाने के लिए ये भागकर फिलिस्तीन पहुंचे।
फिलिस्तीन के कुछ गांवों में आकर ये बस गए। लेकिन फिलिस्तीन एक मुस्लिम राष्ट्र था और वो यहूदियों को स्वीकार नहीं करना चाहते थे। इसीलिए फिलिस्तीनियों ने यहूदियों पर जमकर अत्याचार किए। यहूदी महिलाओं से रेप और उनके साथ मारपीट की जाती थी। 1945 आते-आते फिलिस्तीनी मुस्लिमों और यहूदियों के बीच टकराव तेज हो गया। इस मसले के समाधान के लिए ब्रिटेन इसे संयुक्त राष्ट्र में लेकर चला गया। जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने फैसला किया कि फिलिस्तीन को बांटकर दो मुल्क बना दिए जाएं।
बाद में 14 मई 1948 को फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांट दिया गया। इसी के साथ जन्म हुआ इजरायल का। इसके बाद इजरायलियों ने अपनी खोई पहचान, संस्कृति और भाषा को पुनर्जीवित करने के लिए अथक परिश्रम किया। हिब्रू इजरायल की राष्ट्र भाषा है, जो कि धरती से विलुप्त हो गई थी, लेकिन इजरायलियों ने उसे दोबारा जिंदा कर दिया। वहीं फिलिस्तीन को ये बंटवारा स्वीकार नहीं था, तो वो बदले की आग में झुलस रहा है। चारों तरफ से दुश्मनों से घिरा इजरायल हमेशा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ा है।
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