मस्तुंग जैसी मजहबी कट्टरपंथी वारदात नई चीज है। मस्तुंग की घटना न केवल बलूचिस्तान में आजादी की लड़ाई लड़ रहे संगठनों के लिए चिंता की बात है, बल्कि बलूच समाज के लिए भी खतरे की घंटी है।
बलूचिस्तान प्रांत के कलात डिवीजन का एक जिला है मस्तुंग। वही कलात जिसने भारत की आजादी और पाकिस्तान के जन्म से पहले एक आजाद बलूचिस्तान देश को अस्तित्व में लाने की राह में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। बलूचिस्तान में चल रही आजादी की लड़ाई का आधार वही कलात की पहल है। आज फिर कलात इतिहास के एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां से आसमान बड़ा स्याह दिख रहा है। कारण, पाकिस्तानी फौज के तरह-तरह के अत्याचारों के बीच भी अपने जनजातीय आदर्शों और संस्कारों को जिंदा रखने वाले समाज पर मजहबी कट्टरपंथ का साया मंडरा रहा है।
हाल ही में मस्तुंग में एक मस्जिद के बाहर हुए फिदायीन हमले में 60 से ज्यादा लोगों की जान चली गई और बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए। बलूचिस्तान को हिंसा देखने की आदत है। पाकिस्तान के कब्जे से खुद को आजाद करने के लिए जान की बाजी लगाते बलूचों और फौजी बूट के तले उसे रौंदने में जुटी पाकिस्तानी फौज और खुफिया एजेंसियों की इस लड़ाई में हिंसा होती रही है। पाकिस्तान की फौज ने बलूचों का मनोबल तोड़ने के लिए तरह-तरह के अत्याचार किए, बलूचों की लक्षित हत्याएं कीं। लोगों को गायब कर देती रही और उनमें खौफ फैलाने के लिए महिलाओं-बच्चों को भी नहीं बख्शा। बलूचों ने भी फौज और फौजी अमले को निशाना बनाने की अपनी क्षमता को लगातार घातक बनाया। लेकिन बलूचिस्तान की धरती के लिए
मस्तुंग जैसी मजहबी कट्टरपंथी वारदात नई चीज है। मस्तुंग की घटना न केवल बलूचिस्तान में आजादी की लड़ाई लड़ रहे संगठनों के लिए चिंता की बात है, बल्कि बलूच समाज के लिए भी खतरे की घंटी है। मजहबी कट्टरपंथ को सियासी फायदे के लिए इस्तेमाल करने वाले पाकिस्तान की फितरत में ऐसे तत्वों की नकेल कसना नहीं है। क्वेटा के राजनीतिक कार्यकर्ता जाहिद बलोच कहते हैं, ‘बेशक तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने इस हमले की निंदा की है, लेकिन उसकी मौजूदगी बलूचिस्तान में है और वह लगातार अपना आधार बढ़ाता जा रहा है। बलूच कौम के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।’
‘हम किसी भी सूरत में इस तरह की घटना को स्वीकार नहीं कर सकते। पाकिस्तान सरकार की नीतियां बलूच और पश्तून देशों के खिलाफ रही हैं। पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय ताकतों के हाथों में खेलते हुए अफगानिस्तान में अपने हितों की रक्षा के लिए मजहब को औजार के तौर पर इस्तेमाल किया। आज वह बलूचिस्तान में भी वही खेल खेल रहा है जिसकी वजह से आने वाले समय में बलूचिस्तान के हालात भी पश्तून देश जैसे हो सकते हैं।’
-बलूचिस्तान नेशनल मूवमेंट
चौतरफा विरोध
इसमें शक नहीं कि मस्तुंग का फिदायीन हमला बलूच समाज के लिए बड़ी चुनौती है। समाज ने इसे समझा और अपनी चिंताओं को व्यक्त भी किया। पूरे बलूचिस्तान में दुकान-बाजार बंद रहे, जगह-जगह रैलियां निकाली गईं और लोगों ने दोषियों को सजा देने की मांग की। बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई लड़ रहे विभिन्न संगठनों ने इस हमले की निंदा की है। बलूचिस्तान नेशनल मूवमेंट ने बयान जारी कर इसे ‘बलूच मुल्क’ पर सीधा हमला करार दिया और कहा, ‘हम किसी भी सूरत में इस तरह की घटना को स्वीकार नहीं कर सकते। पाकिस्तान सरकार की नीतियां बलूच और पश्तून देशों के खिलाफ रही हैं।
पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय ताकतों के हाथों में खेलते हुए अफगानिस्तान में अपने हितों की रक्षा के लिए मजहब को औजार के तौर पर इस्तेमाल किया। आज वह बलूचिस्तान में भी वही खेल खेल रहा है जिसकी वजह से आने वाले समय में बलूचिस्तान के हालात भी पश्तून देश जैसे हो सकते हैं।’ वैसे, यह क्या महज इत्तेफाक है कि मस्तुंग में फिदायीन हमले के साथ ऐसा ही हमला खैबर पख्तूनख्वा की मस्जिद में हुआ जिसमें पांच लोगों की जान चली गई?
बीएनएम के सूचना सचिव काजीदाद मोहम्मद रेहान कहते हैं, ‘मस्तुंग में जो हुआ, वह अफसोसनाक है। यह मजहबी कट्टरपंथ है, जो बलूचिस्तान में अपने पैर पसार रहा है। यह बलूच मुल्क के लिए एक बड़ा खतरा है और इसने सभी मजहबों को बराबरी की अहमियत देने की हमारी रवायत को खतरे में डाल दिया है। याद रखना होगा कि मजहबी कट्टरपंथ को सिर्फ ताकत से काबू नहीं किया जा सकता। एक उदार विचारधारा से ही उसका फैलाव रोका जा सकता है। यह बात पाकिस्तान के हुक्मरानों को समझनी होगी क्योंकि मजहबी कट्टरपंथ को सियासी फायदे के लिए इस्तेमाल करने के नतीजे बेहद बुरे होंगे और इसका खामियाजा न केवल बलूचिस्तान बल्कि तमाम दूसरे मुल्कों को भी भुगतना होगा।’
नुकसान है बड़ा
यह सच है कि राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए मजहब और दहशतगर्दी को औजार के तौर पर इस्तेमाल करने की पाकिस्तान की पुरानी आदत रही है। अफगानिस्तान में तत्कालीन सोवियत संघ से मुकाबले के लिए अमेरिकी हितों को पूरा करने का साधन बनने के दौरान ही पाकिस्तान ने आतंकवाद को इस्तेमाल करना सीख लिया। कैसे एक हाथ से आतंकवाद को खाद-पानी देकर उसकी जड़ों को मजबूत किया जाए और फिर उसे ही काबू करने के नाम पर दूसरे हाथ से अमेरिका से मिले पैसे से जेब भरी जाए, इसमें पाकिस्तान को महारत हासिल है। बलूचिस्तान नेशनल मूवमेंट के सीनियर ज्वाइंट सेक्रेटरी कमाल बलोच कहते हैं, ‘पहले इस तरह के हमले के लिए आईएसआईएस ने जिम्मेदारी ली थी, लेकिन इस बार उसने ऐसा कुछ नहीं किया। ऐसे में माना जा सकता है कि उसने यह नहीं किया होगा। फिर किसने किया? शायद आईएसआई या पाकिस्तान की ही कि सी एजेंसी ने। हो सकताहै कि पाकिस्तान किसी बड़े फौजी अभियान को अंजाम देना चाह रहा हो?’
बलूचिस्तान में पाकिस्तान तरह-तरह के हथकंडे अपनाता रहा है और बलूच जानते हैं कि आजादी के लड़ाई को कुचलने के लिए फौज और आईएसआई किसी भी हद तक गिर सकती है। बलूच यकजहेती कमेटी का भी कुछ ऐसा ही मानना है। संस्था ने मजहबी कट्टरपंथ के सिर उठाने को बलूचिस्तान में बलूच नरसंहार का जरिया माना है। उसने बयान जारी किया: ‘यह पाकिस्तान सरकार की ओर से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए किया गया हमला है। मकसद साफ है- बलूचों के जद्दोजहद का सामना करने से बेहतर है लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ हिंसा में ही उलझा दो। पाकिस्तान बलूचों को आपस में बांटने के लिए मजहबी दहशतगर्द तंजीमों का इस्तेमाल कर रहा है। यह इसलिए भी है कि लोगों का ध्यान इस ओर से हटा दो कि पाकिस्तान की फौज बलूचिस्तान में कैसे-कैसे जुल्म कर रही है।’
वैसे, इसका एक पक्ष यह भी हो सकता है कि बलूचिस्तान में चुनाव होने वाले हैं और इसके बावजूद कि वहां ऐसी कार्यवाहक सरकार है जो इस्लामाबाद के इशारे पर नाचती है, फौज वहां चुनाव को ही टालना चाह रही हो? अगर बलूचिस्तान के मामले में फौज की मनमानी के इतिहास को देखें, तो यह कोई दूर की कौड़ी नहीं दिखती। वैसे, बलूचिस्तान की प्रांतीय सरकार में फिलहाल जो कार्यवाहक सरकार है, उसमें बलूचिस्तान अवामी पार्टी के ज्यादा लोग हैं और इस पार्टी को पाकिस्तानी फौज का ही एक अघोषित अंग माना जाता है। बलूचिस्तान में चुनावों में फौज बड़े पैमाने पर गड़बड़ी करती है, लेकिन लाख सावधानी के बाद भी इसके इक्का-दुक्का वीडियो वगैरह निकल ही आते हैं। हो सकता है कि यह भी एक मुद्दा हो।
जो भी हो, इसमें संदेह नहीं कि मस्तुंग के फिदायीन हमले ने बलूचिस्तान को इतिहास के एक अहम मोड़ पर ला खड़ा कर दिया है। यहां से कई रास्ते निकल रहे हैं। एक रास्ता पाकिस्तान की सपरस्ती में मजहबी कट्टरपंथ के और मजबूत होने की ओर जाता है जिसमें बलूचिस्तान में पाकिस्तान को और भी सख्ती से पेश आने का बहाना मिल जाएगा और वह एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने खुद को आतंकवाद फैलाने वाले की जगह आतंकवाद का पीड़ित बताता फिरेगा। यहां से एक और रास्ता निकलता है जिसमें बलूच समाज अपने भीतर पल रहे इन मजहबी दहशतगर्दी के विषबीजों को चुन-चुनकर खत्म करे। लेकिन बलूच समाज को दोनों ही सूरतों में बड़ी कीमत चुकानी होगी।
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