केरल में कैथोलिक चर्च में एक पादरी के विरुद्ध कार्रवाई हो रही है। उनके विरुद्ध जांच बैठाई गयी और वह भी इसलिए क्योंकि उन्होंने चर्च की नैतिक जबावदेही पर प्रश्न उठा दिए थे और अब उनके लिए एक विशेष रिलीजियस कोर्ट का गठन किया गया है।
यह मामला है कोझीकोड का, जहां पर साइरो मालाबार चर्च ने एक ऐसे पादरी के विरुद्ध विशेष रिलीजियस कोर्ट का गठन किया है, जिन्होनें अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। पादरी पर कई प्रकार के अपराधों का आरोप है और एक सबसे बड़ा आरोप है विद्रोह भड़काने का। फादर अजी पुथीयापराम्बिल ने यह कहते हुए अपनी सक्रिय पैस्टोरल मिनिस्ट्री से त्यागपत्र दे दिया था कि चर्च का नेतृत्व जीसस की शिक्षाओं से भटक गया है और वह घोटालों में फंस गया है। परन्तु जिस प्रकार से फादर अजी के विरुद्ध यह विशेष अदालत बैठी है, उसे लेकर चर्च में भी विरोध है क्योंकि यह कहा जा रहा है कि ऐसी अदालत का गठन उन पादरियों और बिशप के लिए भी नहीं हुआ, जो यौन शोषण और आर्थिक घोटालों में लिप्त थे। मगर ऐसा क्या हुआ कि चर्च फादर अजी के आरोपों से बौखला गया?
मीडिया के अनुसार फादर अजी ने एक पैरिश प्रीस्ट के रूप में कार्यभार नहीं संभाला। इसी वर्ष मई में जब पादरियों के परस्पर स्थानान्तरण हो रहे थे, जो कि सालाना होते हैं तो फादर पुथीयापराम्बिल ने सैंट जोसेफ चर्च, नूरमथोडू, थामरस्सेरी डीओसेस में कार्यभार संभालने से इंकार कर दिया। परन्तु बिशप इनचनानियिल को इस बात को लेकर भी गुस्सा आया कि फादर पुथीयापराम्बिल ने यह सब ऑनलाइन क्यों लिख दिया?
दरअसल एक और बात बिशप को चुभी थी और वह था फादर पुथीयापराम्बिल द्वारा चर्च पर नैतिक पतन का आरोप लगाना। फादर पुथीयापराम्बिल ने कहा कि चर्च में नैतिक क्षरण हो रहा है और साथ ही चर्च में ऊंचे पदों पर बैठे हुए लोग आर्थिक घोटालों में लिप्त हैं। इस आरोप से बिशप को गुस्सा आया और फिर फादर पुथीयापराम्बिल के विरुद्ध एक अदालत का गठन किया गया, जिसमें उन पर यह आरोप लगाया गया कि वह पदानुक्रम अर्थात हाइरेरकी के प्रति लोगों के दिल में विद्रोह और नफरत भर रहे हैं। वह सोशल मीडिया पर अपने भाषणों के माध्यम से आम वफादार अनुयाइयों को भड़का रहे हैं और गलत संदेश जा रहा है एवं अनुशासन का उल्लंघन हो रहा है।
हालांकि यह बहुत ही हैरान करने वाली घटना है कि एक ऐसे पादरी पर जांच ही नहीं रिलीजियस अदालत बैठाई गयी है और सुनवाई हो रही है कि उन्होंने विद्रोह पैदा करने की कोशिश की। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसी किसी भी रिलीजियस अदालत का गठन चर्च में पनप रहे अन्य घोटालों एवं आरोपी पादरियों के विरुद्ध किया गया, जिनपर यौन शोषण के आरोप थे? क्योंकि एक नहीं कई ऐसे मामले और किस्से हैं जिनमें पादरियों को यौन शोषण के चलते सजा सुनाई गयी।
वर्ष 2017 में एक मामला सामने आया था, जब बाल शोषण के खिलाफ बोलने वाले पादरी फादर रोबिन वद्दाकुमचिरियिल को एक नाबालिग का यौन शोषण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जब 17 वर्षीय लड़की ने पादरी की सन्तान को जन्म दिया था। इस मामले में हालांकि चर्च ने फादर रॉबिन को हर रिलीजियस कार्य से मुक्त कर दिया था, परन्तु चर्च की ओर से ऐसे आरोपों पर अदालत बैठी हो, ऐसा नहीं सुना गया।
जब इन्टरनेट पर खंगाला जाएगा, तो कई मामले सामने आएँगे और सबसे महत्वपूर्ण मामला तो सिस्टर अभया का ही है, जिसमें आरोपी पादरी को भारतीय न्यायालय से दंड मिला, चर्च द्वारा सिस्टर अभया के मामले को हल करने के लिए या पादरी को दंड देने के लिए किसी अदालत का गठन किया गया हो, यह नहीं दिखता। वहीं खुद पर बैठी जाँच अदालत को लेकर फादर पुथीयापराम्बिल ने फिर से उन्हीं मुद्दों को उठाया, जिनके विषय में चर्च बोलते समय असहज रहता है जैसे कि चर्च में लैंगिक समानता और विविध स्तर पर संवाद। उन्होंने कहा कि यदि चर्च उन पर कदम उठाता भी है तो भी वह अपनी बात कहते रहेंगे, क्योंकि उनका उद्देश्य चर्च को आहत करना नहीं बल्कि घावों को भरना है। वह चर्च में मूल्यों के क्षरण पर बात करते रहेंगे क्योंकि लैंगिक भेदभाव सहित कई मुद्दे हैं और उन्होंने चर्च में दुष्प्रवृत्तियों पर लगातार आवाज उठाई है। उन्होंने कहा कि वह अपना यह अभियान जारी रखेंगे।
यह देखना होगा कि चर्च उनके मामले में क्या कदम उठाता है। ऐसा नहीं है कि केरल में चर्च केवल इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार करता है कि चर्च में व्याप्त कमियों पर बात न की जाए, बल्कि हाल ही एक पादरी को इसलिए कार्यमुक्त कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ने का कार्य किया था। हालांकि चर्च की ओर से यह कहा गया कि उन्हें इसलिए हटाया जा रहा है क्योंकि चर्च में रहते हुए किसी राजनीतिक दल के साथ नहीं जुड़ा जा सकता है और यह उनके रिलीजियस क़ानून के विरुद्ध है।
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