केंद्रीय कानून लागू नहीं रहने से उनका गलत रूप में इस्तेमाल करने वालों के विरुद्ध भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाती थी। जैसे जो लोग बच्चों को सेना पर पत्थर फेंकने के लिए उकसाते थे, वे बहुत ही आसानी से बच जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 और 35-ए के हटने से वहां के बच्चों को भी वही अधिकार मिल गए हैं, जो देश के अन्य बच्चों को हैं। उल्लेखनीय है कि यहां बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कोई केंद्रीय कानून लागू नहीं रहने से उनका गलत रूप में इस्तेमाल करने वालों के विरुद्ध भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाती थी। जैसे जो लोग बच्चों को सेना पर पत्थर फेंकने के लिए उकसाते थे, वे बहुत ही आसानी से बच जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब राज्य में किशोर न्याय अधिनियम-2015 लागू हो गया है। इस अधिनियम की धारा-83 यह तय करती है कि बच्चों का अवैधानिक गतिविधियों के लिए उपयोग न किया जाए। ऐसा करने पर 7 साल तक की सजा का प्रावधान है और यह गैर-जमानती अपराध है।
अनुच्छेद-370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) भी प्रभावी हो गया है। यानी अब यह आयोग देश के अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में भी बाल अधिकारों के संरक्षण का काम कर सकता है। आयोग ने अपना काम भी शुरू कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि 5 अगस्त, 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य था, जहां अनाथ बच्चों को गोद लेने का प्रावधान नहीं था। कुछ कट्टरवादी तर्क देते थे कि इस्लाम में गोद लेने की परंपरा नहीं है। इस कारण राज्य के अनाथ बच्चे दर-दर भटकने को मजबूर होते थे। अब एनसीपीआर ने राज्य सरकार पर दबाव डाला है कि जो लोग अनाथ बच्चों को गोद लेना चाहते हैं, उन्हें लेने दिया जाए।
‘‘अब कश्मीरी अनाथ बच्चों को गोद लिया जा सकता है’’
मार्च, 2007 में गठित राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) का काम है बच्चों को उनका अधिकार दिलाना और उन्हें शोषण से बचाना। इसके अध्यक्ष हैं प्रियंक कानूनगो। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
बाल कल्याण से जुड़े केंद्रीय कानूनों के जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में लागू होने से वहां के बच्चों को किस प्रकार की मदद मिलेगी?
दोनों प्रदेशों के बच्चों के विकास की राह तैयार करने में प्रशासनिक तंत्र और समाज दोनों को मदद मिलेगी। आयोग दोनों प्रदेशों के बच्चों के अधिकारों के संरक्षण और विकास के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करने में अपना योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध है।
अब तक आयोग ने इन दोनों राज्यों के बच्चों के लिए किस तरह के काम शुरू किए हैं?
आयोग ने जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के बच्चों के विकास के लिए कई योजनाओं पर कार्य करना शुरू कर दिया है। इसके लिए कई प्रभावी कदम भी उठाए गए हैं। इन राज्यों के बच्चे अपने साथ हो रहे अन्याय की शिकायत आसानी से आयोग तक पहुंचा सकें, इसके लिए आयोग ने अपनी वेबसाइट पर एक अलग व्यवस्था की है। इसके साथ ही यहां के बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और वैधानिक अधिकारों की देखरेख के लिए अलग से ‘जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख प्रकोष्ठ’ का गठन किया गया है। आयोग ने जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के बच्चों के विकास के लिए व्यवस्थात्मक त्रुटियों पर एक दस्तावेज तैयार किया है, ताकि कोई योजना आसानी से बनाई जा सके।
कश्मीर घाटी में बच्चों से सैनिकों पर पत्थर फेंकवाए जाते हैं। ऐसे बच्चों और उनका दुरुपयोग करने वालों के विरुद्ध भी आपने कोई निर्णय लिया है?
आयोग ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया है। नए कानून के हिसाब से पुलिस को काम करने के निर्देश दिए गए हैं। ऐसे लोग बच नहीं सकते हैं, उन्हें सजा मिलेगी ही।
जम्मू-कश्मीर में ऐसे अनाथ बच्चे बहुत हैं, जिनके माता या पिता या माता-पिता दोनों की हत्या आतंकवादियों ने कर दी है। ऐसे बच्चों के भविष्य के लिए आयोग ने कोई योजना तैयार की है?
अनाथ बच्चों को परिवार मिले, यह उनका अधिकार है। अभी तक केंद्रीय कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे। इस कारण वहां के अनाथ बच्चों को गोद दिए जाने की कोई नियंत्रित प्रक्रिया नहीं थी, परंतु अब किशोर न्याय अधिनियम 2015 के प्रावधानों के तहत उन बच्चों को गोद दिया जा सकता है। इसके लिए आयोग ने आवश्यक दिशानिर्देश राज्य प्रशासन को दिए हैं। देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के लिए निर्धारित बालगृहों का पंजीयन भी केंद्रीय कानून के तहत आवश्यक हो गया है।
जम्मू में शिविरों में रह रहे कश्मीरी पंडितों के बच्चों के लिए भी कुछ करने की जरूरत है। क्या इन बच्चों के लिए आयोग ने कुछ सोचा है?
इन बच्चों पर आयोग का विशेष ध्यान है। फिर भी राज्य में जो भी बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, जाहिर है इनमें कश्मीरी पंडितों के बच्चे भी शामिल हैं, उनकी शिकायतों के तुरंत निपटान के लिए आयोग ने ‘जम्मू-कश्मीर व लद्दाख’ प्रकोष्ठ का गठन किया है। इससे उनकी समस्याओं का समाधान जल्दी निकल जाएगा।
राज्य में बाल अधिकार सुरक्षित हों और किसी बच्चे का कोई शोषण न कर सके, इन सबको सुनिश्ति करने के लिए गत मार्च महीने में एनसीपीआर का एक प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर के दौरे पर गया था। भारत के इतिहास में एनसीपीआर का यह पहला जम्मू-कश्मीर दौरा था। आयोग ने जम्मू के आरएस पुरा स्थित ‘नारी निकेतन’, ‘आब्जर्वेशन होम’ और ‘चिल्ड्रेन होम फॉर ब्यायज’ के साथ-साथ गांधी नगर के मॉडल पुलिस थाना और राजकीय कन्या उच्च विद्यालय का दौरा कर बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने का प्रयास किया। इसके साथ ही आयोग ने जम्मू स्थित बाल कल्याण समिति और जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें बाल अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए और कदम उठाने को कहा। आयोग ने जम्मू में रह रहे कश्मीरी पंडितों की कॉलोनी का भी दौरा कर उनके बच्चों की समस्याओं को जानने का प्रयास किया।
ये कानून भी लागू
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बाल संरक्षण अधिकार अधिनियम-2005, शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009, पॉक्सो एक्ट-2012 तथा बच्चों से संबंधित अन्य केंद्रीय कानून प्रभावी हो गए हैं। बाल संरक्षण अधिकार अधिनियम-2005 के तहत जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्थापना का मार्ग भी खुल गया है। इससे स्थानीय स्तर पर बाल अधिकारों के संरक्षण की देखरेख की व्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सकेगा। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत अब बच्चों को हर श्रेणी के तहत निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत सीटों पर मुफ्त दाखिला मिलेगा। इससे प्रदेश में बच्चों के बीच गैर-बराबरी के वातावरण को खत्म करने में मदद मिलेगी। अधिनियम के तहत अब विद्यालयों में बच्चों को शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने पर प्रतिबंध लगेगा। बच्चों को उनकी आयु के हिसाब से कक्षाओं में दाखिला मिल सकेगा और मुफ्त यूनिफॉर्म, मुफ्त किताबें, मध्याह्न भोजन इत्यादि बच्चों के अधिकार में शामिल हो गए हैं।
बच्चों को यौन हिंसा से बचाने के लिए प्रदेश में पहले जो कानून थे, उनकी जगह पॉक्सो एक्ट-2012 जैसा प्रभावी केंद्रीय कानून लागू हो गया है। इसके तहत अश्लील साहित्य और चित्रों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सकेगी तथा पीड़ित बच्चों को मुआवजा देने की प्रक्रिया सरल और सुदृढ़ हो जाएगी। यही नहीं, बाल मजदूरी कानून के अंतर्गत प्रभावित बच्चों को मुआवजा देने के लिए कोष बन सकेगा और उसी से किसी बच्चे को मुआवजा दिया जा सकता है। खासतौर पर बाल श्रम अधिनियम के नियम 17 और 2 (बी) के तहत बच्चों के विद्यालय से 30 दिन तक गायब रहने पर उनकी जिला स्तर पर देखरेख होगी और बच्चे को दोबारा विद्यालय से जोड़ा जाएगा। बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए इस कानून के तहत भी बड़ी कार्रवाई की जा सकेगी।
किशोर न्याय अधिनियम-2015 के अंतर्गत पूरे भारत में गोद लेने की प्रक्रिया को वैधानिक रूप दिया गया है। जम्मू-कश्मीर के लोग बच्चे गोद लेने की वैधानिक प्रक्रिया से वंचित थे, लेकिन इस कानून के तहत अनाथ बच्चों को परिवार मिल सकेगा और अनाथ होने के दंश से मुक्ति मिल सकेगी। इस कानून के प्रभावी होने से बालगृहों का पंजीकरण अनिवार्य हो गया है। जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) एक्ट का वह प्रावधान भी यहां लागू हो जाएगा जिसके अंतर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि 16-18 वर्ष की आयु के बीच संगीन अपराध करने वाले बच्चों के खिलाफ नाबालिग के तौर पर कानूनी प्रक्रिया चलेगी या सामान्य व्यक्ति की भांति। उल्लेखनीय है कि निर्भया कांड में नाबालिग के द्वारा संगीन अपराध को अंजाम देने के बाद जेजे एक्ट में बदलाव कर इस महत्वपूर्ण प्रावधान को जोड़ा गया था। बच्चों को नशे से बचाने की लड़ाई में भी इस अधिनियम का लाभ मिलेगा। यानी कह सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर के बच्चों के लिए एक नई सुबह हुई है, जिसे ऊर्जावान बनाने का दायित्व सरकार और समाज, दोनों पर है।
26 जुलाई, 2020
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