बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को संरक्षण देने वालों को पुचकारा जाता है, तो कभी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अच्छे काम के बावजूद प्रताड़ित किया जाता है।
आजकल झारखंड में वह सब हो रहा है, जिसकी कल्पना ही चिंता पैदा कर देती है कि आने वाला समय देश के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो सकता है। कभी नक्सलियों के मनोबल को बढ़ाने वाला निर्णय लिया जाता है, कभी बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को संरक्षण देने वालों को पुचकारा जाता है, तो कभी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अच्छे काम के बावजूद प्रताड़ित किया जाता है। एक ऐसे ही मामले ने इन दिनों राज्य में हंगामा मचाया हुआ है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों राज्य सरकार ने लोहरदगा में तैनात विशेष शाखा (गुप्तचर विभाग) के उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) जितेंद्र कुमार का तबादला कर उन्हें पलामू भेज दिया। आप कह सकते हैं कि यह कौन-सी बात है, किसी का तबादला करना तो राज्य सरकार का अधिकार है। पर विपक्षी भाजपा का मानना है कि सरकार ने जितेंद्र कुमार का तबादला अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए किया है। झारखंड भाजपा के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा है, ‘‘डीएसपी जितेंद्र कुमार का तबादला तुष्टीकरण की राजनीति की पराकाष्ठा है।’’ उन्होंने यह भी कहा है कि विदेशी घुसपैठियों की रपट बनाने वाले अधिकारियों के तबादले से पुलिस का मनोबल ही गिरेगा।
उल्लेखनीय है कि डीएसपी जितेंद्र कुमार ने 29 फरवरी को बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों से संबंधित एक रपट अपने विभाग के एडीजी को भेजी थी। इसमें उन्होंने लोहरदगा के 13 लोगों पर आरोप लगाया था कि ये लोग बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं को संरक्षण देते हैं। इनमें से कुछ नाम हैं- सोनी कुरैशी, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष शब्बीर खान का बेटा नूर मोहम्मद, हाजी शकील, नगरपालिका का सेवानिवृत्त कर्मचारी सफदर निहाल कुरैशी, रउत अंसारी, जबारूल अंसारी, सज्जाद खान, मन्ना खान, सलीम अंसारी और बबली अहमद। रपट में लिखा गया है कि लोहरदगा के ईदगाह मोहल्ला, राहत नगर, इस्लाम नगर, जूरिया गांव, कुजरा और कुरसे, सेन्हा के चितरी और डाडू, कुडू के जीमा लावागाई, बगडू के हिसरी में बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के रहने की सूचना है।
डीएसपी जितेंद्र कुमार 23 जनवरी को लोहरदगा में हुए सुनियोजित दंगे की जांच कर रहे थे।
दंगे में स्थानीय कट्टरवादी तत्वों के साथ-साथ बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के भी शामिल होने की जानकारी थी। इसलिए उन्होंने इसकी गहन जांच कर अपनी रपट विभाग को भेजी थी। लेकिन कहीं से यह रपट बाहर हो गई और इसके विरुद्ध लोहरदगा के मुस्लिम समाज ने आवाज उठानी शुरू कर दी। वहां के मुसलमानों का आरोप है कि इस रपट में लोहरदगा के मुसलमानों को बदनाम करने की कोशिश की गई है। इस संबंध में 11 अप्रैल को ‘एड हॉक कमेटि अंजुमन इस्लामिया’, लोहरदगा ने राज्य के पुलिस महानिरीक्षक को एक पत्र लिखा है। इसमें आरोप लगाया है,‘‘एक साजिश के तहत मुस्लिम समाज के कुछ लोगों को बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं का संरक्षक बताया गया है। इसकी जांच की जाए कि किसके इशारे पर यह रपट तैयार की गई है।’’
इस पत्र के बाद ही राज्य सरकार ने डीएसपी जितेंद्र कुमार का तबादला किया। हालांकि सरकार कह रही है कि यह सामान्य तबादला है, पर लोहरदगा के एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि तबादले का जो समय है वही साफ कर देता है कि यह सामान्य तबादला नहीं है। इसके साथ ही लोहरदगा के एक बड़े वर्ग का मानना है कि यह कार्रवाई दबाव के बाद हुई है। इसके पीछे वे सेकुलर नेता हैं, जो वोट बैंक के जरिए ही अपनी राजनीति करते आए हैं। इनमें से एक स्थानीय विधायक और राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव भी हैं। लोगों का मानना है कि उरांव के इशारे पर ही जितेंद्र कुमार का तबादला किया गया है।
लोहरदगा में घुसपैठिए
लोहरदगा के अनेक लोगों ने बताया कि स्थानीय मुस्लिम जनप्रतिनिधि बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को अपने रिश्तेदार बताकर उन्हें यहां बसा रहे हैं। इन लोगों ने पिछले कुछ वर्षों में लोहरदगा नगर परिषद् में तैनात एक सह प्रधान लेखपाल की मदद से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों के दस्तावेज बनवाए हैं। सूत्रों ने यह भी बताया कि लोहरदगा के मुस्लिम जनप्रतिनिधि किसी भी बाहरी मुस्लिम का आधार कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता पहचानपत्र जैसे कागजात प्राथमिकता के साथ बनवाते हैं। कहीं कोई दिक्कत होती है तो ये लोग सेकुलर दलों के नेताओं की मदद लेते हैं। इनकी मंशा है लोहरदगा में मुस्लिमों की आबादी बढ़ाना। इसके लिए उन्हें हम मजहबी घुसपैठिए भी सहर्ष स्वीकार हैं।
लोहरदगा के लोगों का मानना है कि 23 जनवरी को लोहरदगा में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के समर्थन में निकाली गई रैली पर इन्हीं घुसपैठियों के सहयोग से हमला किया गया था, जिसमें तीन लोगों की जान चली गई थी। लोहरदगा के एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि लोहरदगा, सिमडेगा और गुमला जिले में जनसांख्यिक परिवर्तन के लिए एक षड्यंत्र चल रहा है। इसमें स्थानीय मुस्लिम नेताओं की बड़ी भूमिका है। इस कारण पिछले कुछ वर्षों में ही लोहरदगा जिले के कुल 353 गांवों में से 140 गांवों में मुस्लिम आबादी 30 प्रतिशत से ऊपर हो गई है, जबकि कुछ गांवों में इनकी आबादी 80 प्रतिशत को भी पार कर गई है। सूत्रों ने यह भी बताया कि लोहरदगा की थाना टोली इलाका इस षड्यंत्र का केंद्र है। लोहरदगा के करीब 100 मुस्लिम युवकों ने एक साजिश के तहत गैर-मुस्लिम लड़कियों से निकाह किया है। इनमें से ज्यादातर वनवासी लड़कियां हैं। इसके पीछे की मंशा बहुत ही खतरनाक है। जो मुसलमान किसी वनवासी महिला से निकाह करता है, वह अपनी पत्नी को स्थानीय निकाय के चुनावों में उन क्षेत्रों से चुनाव लड़वाता है, जो वनवासियों के लिए आरक्षित हैं। इस तरह ये लोग स्थानीय निकायों पर कब्जा करते हैं और इसका पूरा लाभ बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को मिलता है।
लोहरदगा में पाकिस्तानी
लोहरदगा बहुत पहले से आईएसआई के निशाने पर रहा है। 7 नवम्बर, 2004 को लोहरदगा से एक पाकिस्तानी सैयद मोहम्मद निहास अहमद पकड़ा गया था। सूत्रों ने बताया कि यह अभी भी लोहरदगा में ही रह रहा है। हिन्दुस्तान टाइम्स (8 नवम्बर, 2004) की एक रपट के अनुसार अहमद 20 फरवरी, 1995 को अमृतसर पहुंचा और बीमार का बहाना लेकर दो महीने के लिए अपना वीजा बढ़वा लिया। दो महीने बाद भी उसने वही तरीका अपनाया और फिर दो महीने के लिए उसका वीजा बढ़ गया। इसके बाद उसने अपने बारे में किसी को नहीं बताया और न ही पुलिस ने उसकी खोजबीन की। वह लोहरदगा आ गया और यहां उसने निकाह कर लिया। वह मादक पदार्थों की तस्करी, फर्जी नोट, हथियारों की आपूर्ति, आतंकवाद जैसी गतिविधियों में शामिल था।
पाकुड़ बना ‘छोटा पाकिस्तान’
झारखंड का पाकुड़ जिला पश्चिम बंगाल की सीमा से लगा हुआ है। पाकुड़ से मालदा और मुर्शिदाबाद के बीच कोई खास दूरी नहीं है। बांग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्या मुस्लिम मुर्शिदाबाद और मालदा के रास्ते से ही पाकुड़ में प्रवेश करते हैं और यहां स्थानीय नेताओं के सहयोग से बस जाते हैं। पाकुड़ शहर में तो इनकी आबादी अभी कम है, पर उसके आसपास के गांवों में घुसपैठियों की बहुत बड़ी संख्या हो चुकी है। स्थानीय मजहबी नेता इन लोगों को सरकारी जमीन पर बसाते हैं और उसके बदले उन्हें इनका वोट मिलता है। बरहरवा रेलवे स्टेशन से पाकुड़ की ओर आगे बढ़ने पर रेलवे पटरी की दोनों ओर कच्चे मकान दिखते हैं और बीच-बीच में मस्जिदें। कुछ वर्ष पहले तक ऐसी स्थिति नहीं थी। पूरा इलाका ‘छोटा पाकिस्तान’ लगने लगा है। वोट बैंक के लालचियों ने पूरे इलाके को खतरे में डाल दिया है। ऊपर से पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया(पीएफआई) ने इस इलाके को अपनी प्रयोगशाला बना चुका है। पूरे झारखंड में केवल पाकुड़ ही ऐसा जिला है, जहां पीएफआई बहुत ही मजबूत स्थिति में है।
पत्थरगड़ी करने वालों को शह
हेमंत सरकार केवल घुसपैठियों के संरक्षणकर्ताओं को ही नहीं बचा रही है, बल्कि उन लोगों को भी शह दे रही है, जो भारत के संविधान को न मानने की सरेआम घोषणा करते हैं। पिछले साल के अंत में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनते ही घोषणा कर दी गई कि पत्थरगड़ी के आरोप में जो लोग जेल में बंद हैं, उन्हें छोड़ दिया जाएगा। बता दें कि वनवासियों की पुरानी परंपरा पत्थरगड़ी को गलत रूप में प्रस्तुत कर कुछ लोग संविधान और भारत की सत्ता को ही चुनौती दे रहे थे। ऐसे लोगों के विरुद्ध पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने कड़ी कार्रवाई की थी। हालांकि कानूनी दांव-पेंच के कारण इनमें से एक भी अभी तक नहीं छूटा है, लेकिन ऐसे तत्वों का हौसला तो जरूर बढ़ा और पुलिस का मनोबल गिरा।
झारखंड के लोग कहते हैं कि सोरेन सरकार के बनने के बाद से ही पूरे राज्य में ईसाइयों और मुस्लिमों से जुड़े कुछ तत्व अपने-अपने गुप्त मजहबी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने लगे हैं। इस पर अंकुश तो लगना ही चाहिए, अन्यथा आने वाला समय किसी को माफ नहीं करेगा।
(पांचजन्य, 3 मई, 2020 के अंक से)
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