नई दिल्ली। विश्व हिंदू परिषद और अखाड़ा परिषद ने कांग्रेस, माकपा और द्रमुक नेताओं की ओर से सनातन धर्म के विरोध में अभद्र भाषा प्रयोग करने पर चिंता जाहिर की है। उनका कहना है कि यह राजनीतिक स्वार्थ के तहत समाज को बांटने और विभिन्न वर्गों में एक दूसरे के प्रति घृणा और शत्रुता बढ़ाने का बेईमान प्रयास है। साथ ही यह स्वस्थ लोकतंत्र और संविधान पर विश्वास रखने वाले लोगों के लिए एक चुनौती है।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र महाराज, अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती तथा विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने आज एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया। उन्होंने कहा कि यह एक बीमार मानसिकता है कि अल्पसंख्यक वोटों के लिए बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय की आस्था को चोट करके उसके प्रति घृणा और अविश्वास का वातावरण पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि सनातन धर्म प्रत्येक जीव के अंदर विराजमान ईश्वर के दर्शन करता है। यह मनुष्य मात्र की दिव्यता और समानता में विश्वास रखता है। सब के सुख की कामना करता है। 800 सालों तक मुगलों के आक्रमण और अत्याचार 200 सालों तक अंग्रेजों के शासन और मिशनरी प्रयासों के बावजूद भारत का बहुसंख्यक समाज सनातन धर्म पर विश्वास रखता है। इसका विरोध करने वाले लोग इतिहास के कूड़ेदान में पाए जाते हैं।
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु हमेशा से सनातन संस्कृति का ध्वजवाहक रहा है। तमिलनाडु की धर्म प्राण जनता रामेश्वरम, माता मीनाक्षी, दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश, मुरूगन, राम और कृष्ण की हमेशा से आराधक है। हजारों वर्ष पुराने मंदिर सनातन के प्रति तमिलनाडु की सनातन भक्ति के प्रतीक हैं। आलवारों, नायनमारो, संत तिरुवल्लुवर और अंडाल आदि महान संतों की अमर वाणी तमिलनाडु की धर्म प्राण जनता का ही नहीं करोड़ सनातनियों का चिरकाल से मार्गदर्शन करती रही है। यह हमारी साझी विरासत है।
इन धार्मिक नेताओं ने कहा कि आज आवश्यकता है कि इस साझी विरासत को मजबूत करें। परस्पर एकता बढ़ाने वाले बिन्दुओं को ढूँढें। समाज की एकात्मता को मजबूत करें। भारत की पवित्र आध्यात्मिक थाती का विश्व में प्रसार कर सबके लिए सुख और शांति का मार्ग प्रशस्त करें।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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