नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने गुरुवार को अनुच्छेद 370 को लेकर दाखिल की गई याचिकाओं पर दसवें दिन की सुनवाई पूरी कर ली है। आज केंद्र सरकार ने कहा कि संविधान बनाते समय यह लक्ष्य रखा गया था कि सभी राज्यों को एक समान दर्जा प्राप्त हो। देश के एक हिस्से (जम्मू-कश्मीर) के लोगों को उन अधिकारों से कैसे वंचित रखा जा सकता है, जो देश के बाकी लोगों को उपलब्ध है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने कहा कि अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि इस सवाल के कारण कि अनुच्छेद 370 स्थायी है या अस्थायी है, जम्मू-कश्मीर के लोगों के मन में द्वंद्व था। इसके हटने से वह द्वंद्व समाप्त हो गया है। अटार्नी जनरल ने कहा कि सीमावर्ती राज्य एक विशेष क्षेत्र होते हैं, उनके पुनर्गठन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। कोर्ट को इन राज्यों से संबंधित कामों के लिए संसद को स्वतंत्रता देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कोर्ट को राज्यों से संबंधित कार्यों के लिए संसद को स्वतंत्रता देनी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत सरकार के पास शक्ति मौजूद थी। उन्होंने अब्राहम लिंकन के एक कथन का जिक्र किया, जिसमें राष्ट्र को खोने और संविधान को संरक्षित करने की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि सामान्य कानून के अनुसार जीवन और उसके अंगों की रक्षा की जानी चाहिए लेकिन किसी की जान बचाने के लिए एक अंग को काटा जा सकता है लेकिन एक अंग को बचाने के लिए कभी भी जान नहीं ली जाती है।
सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी दलील देते हुए कहा कि सालों बाद यह पहली बार है, जब जम्मू-कश्मीर के लोग जिन अधिकारों से वंचित थे, उन्हें केंद्र के जरिए वो अधिकार मिले। अगर तथ्यों को देखें तो य़ह स्पष्ट हो जाएगा कि अब जम्मू-कश्मीर के निवासियों को बड़ी संख्या में मौलिक अधिकार सहित दूसरे वो अधिकार भी मिले हैं, जो अन्य राज्यों को मिल रहे हैं। अब उन्हें देश के अपने बाकी निवासियों के बराबर अधिकार हासिल होंगे जबकि इतने सालों से देश के एक हिस्से में मनोवैज्ञानिक द्वंद्व चल रहा था। चाहे वह कहीं से प्रेरित हो या कुछ और रहा हो।
मेहता ने कहा कि अनुच्छेद 370 अस्थायी या स्थाई है, इस भ्रम के कारण एक विशेष वर्ग के मन में मनोवैज्ञानिक द्वंद्व चल रहा था। इसे हटाने से विशेष वर्ग के बीच का द्वंद्व समाप्त हो गया। जम्मू-कश्मीर के विलय के तथ्य को कोर्ट के सामने रखते हुए मेहता ने कहा कि जिस समय विलय पूरा होता है पूरी संप्रभुता का विलय हो जाता है, क्योंकि यह बड़ी संप्रभुता में समाहित हो जाती है। उन्होंने कहा कि यह तर्क दिए गए थे कि ब्रिटिश भारत में जम्मू-कश्मीर का एक विशेष स्थान था, क्योंकि वह एकमात्र हिस्सा था, जिसका 1939 में अपना संविधान था। यह तथ्यात्मक रूप से गलत है, क्योंकि 62 राज्य ऐसे थे, जिनके अपने संविधान थे। साथ ही यह तर्क भी तथ्यात्मक रूप से गलत है कि जम्मू-कश्मीर को शुरू से ही विशेष दर्जा प्राप्त था, जो आज तक जारी है।
मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसका अपना संविधान है, यह गलत है। उस समय सभी रियासत लोकतांत्रिक तरीके से भारत में शामिल हुईं। कई रियासतों ने अपने स्वयं का संविधान बनाया और उनके पास अलग-अलग विलय के दस्तावेज थे। उन्होंने कहा कि सभी रियासतें जम्मू-कश्मीर की तरह ही भारत में शामिल हो गई थीं। मेहता ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के आधार पर दलील देते हुए कहा कि हमारे संस्थापकों ने कितनी खूबसूरती से उस स्थिति से निपटा। हमारे देश को एकीकृत किया और उसका अंतिम परिणाम अनुच्छेद 1 था। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि दरअसल ऐसा रियासतों में विश्वास की भावना पैदा करने के लिए किया गया था। आप भारत में शामिल हो रहे हैं लेकिन हम आपको आपके विलय पत्र मे कुछ रियायतें दे रहे हैं। हमें यह भी देखना होगा कि भारत चाहता था कि रियासतें उसमे शामिल हो जाएं। इसलिए हमने उन्हें आश्वासन दिया कि आप आज निर्णय ले सकते हैं कि आप संघ को केवल कुछ विषय ही देंगे।
पांच सदस्यीय बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं। 2 मार्च, 2020 के बाद इस मामले को पहली बार सुनवाई के लिए लिस्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने राज्य के सभी विधानसभा सीटों के लिए एक परिसीमन आयोग बनाया है। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासियों के लिए भी भूमि खरीदने की अनुमति देने के लिए जम्मू एंड कश्मीर डेवलपमेंट एक्ट में संशोधन किया गया है। याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर महिला आयोग, जम्मू-कश्मीर अकाउंटेबिलिटी कमीशन, राज्य उपभोक्ता आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग को बंद कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च, 2020 को अपने आदेश में कहा था कि इस मामले पर सुनवाई पांच जजों की बेंच ही करेगी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के समक्ष भेजने की मांग को खारिज कर दिया था।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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