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जानिए क्या है रक्तमोक्षण और सिंगी चिकित्सा विधि, चुटकियों में गायब हो जाता है वर्षों पुराना दर्द

रक्तमोक्षण पद्धति आयुर्वेद के पंचकर्म उपचारों में एक है। यह ट्यूमर और एडिमा जैसी गंभीर बीमारी से बचाव करने में मददगार हो सकती है।

by SHIVAM DIXIT
Aug 24, 2023, 05:34 pm IST
in स्वास्थ्य
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मानव शरीर को संतुलित रखने के लिए उसके अंदर बह रहे खून का शुद्ध होना जरूरी होता है। अगर शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों की वजह से शरीर का रक्त दूषित हो जाए, तो इससे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होना शुरू हो जाती हैं। इसलिए आयुर्वेद में रक्त को शुद्ध करने के लिए रक्तमोक्षण उपचार किया जाता है। रक्तमोक्षण उपचार में भी कई विधियां उनमे से एक विधि है सिंगी विधि जो अधिकतर दर्द निवारण के लिए की जाती है।

क्या है सिंगी ?

वहीं अगर सिंगी चिकित्सा पद्धति की बात करें तो इससे शरीर के किसी भी अंगों में हो रहे दर्द से आराम दिलाता है। सिंघी चिकित्सा वो चिकित्सा है जो 20 साल पुराना दर्द को 10 मिनट में हर लेता है ऐसे गायब कर देता है जैसे दर्द था ही नहीं।

क्या है सिंगी का मतलब ?

सिंगर चिकित्सा या सिंगी पद्धति के नाम के अनुसार ये किसी जानवर के सिंग जैसा होता है यानी एक तरफ से चौड़ा एवं गोल और दूसरे तरफ से नुकीला। इस नुकीला यंत्र को ही सिंगी कहा जाता है और इसी के माध्यम से चिकित्सा करने पर इस पद्धति का नाम सिंगी चिकित्सा कहलाया है।

कैसे काम करता है सिंगी यंत्र

सिंगी यंत्र को रोगी के शरीर में उन जगहों पर चिपका दिया जाता है जहां पर दर्द हो रहा होता है और ये 10 मिनट के अंदर पुराने से पुराने दर्द को खत्म कर देता है।

अब जानिए क्या है रक्तमोक्षण पद्धति ?

रक्तमोक्षण पद्धति आयुर्वेद के पंचकर्म उपचारों में एक है। इस थेरेपी की मदद से शरीर में मौजूद दूषित रक्त को साफ किया जा सकता है। आयुर्वेद की इस थेरेपी में जठरांत्र मार्ग के माध्यम से रक्तप्रवाह में अवशोषित विषाक्त पदार्थों को खत्म करने में मदद मिलती है, जिससे शरीर का रक्त साफ हो सकता है और शारीरिक क्रियाओं को संचारित करने में मदद मिलती है।

ब्लड डिटॉक्सिफिकेशन की यह प्रक्रिया दो शब्दों ‘रक्त और ‘मोक्ष’ से बनी है, जिनको जोड़कर ‘रक्तमोक्षण’ शब्द बना है, जिसका अर्थ है रक्त को बाहर निकालना। इस विधि का उपयोग त्वचा रोग, दाद, पीलिया, फोड़े, मुंहासे, एक्जिमा, खुजली, अल्सर, गाउट व लिवर रोग जैसी बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है। यह शरीर से दूषित रक्त को बाहर निकालकर रक्त को शुद्ध करता है।

जानिए रक्तमोक्षण विधियों के बारे में

रक्तमोक्षण आयुर्वेदिक थेरेपी प्रक्रिया मुख्यत: दो प्रकार की होती हैं, जिन्हें शास्त्र विश्रवन और अनुशास्त्र विश्रवन के नाम से जाना जाता है। रोगी की स्थिति और आवश्यकता के अनुसार इनका उपयोग किया जाता है।

1. शास्त्र विश्रवन

रक्तमोक्षण थेरेपी की शास्त्र विश्रवन प्रक्रिया में धातु के उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में रक्त दो प्रक्रियाओं के माध्यम से बाहर निकाला जाता है:-

  1. सिरव्याध (नसों में छेद करना)
  2. प्रवचन (त्वचा पर कई चीरे लगाना)

2 अनुशास्त्र विश्रवन

रक्तमोक्षण थेरेपी की अनुशास्त्र विश्रवण में उपचार धातु के उपकरणों का उपयोग किए बिना किया जाता है। यह प्रक्रिया चार प्रकार की होती हैं-

1. जलौका वचरन

रक्त में पित्त दोष के खराब होने की स्थिति में जलौका या जोंक के प्रयोग को प्राथमिकता दी जाती है।

2. अलाबू

इसमें लौकी की कड़वी, सूखी और तीखी प्रकृति को कफ दोष में रक्तपात के लिए उपयोग किया जाता है। इस प्रकार में त्वचा पर कई चीरे लगाए जाते हैं और फिर प्रभावित क्षेत्र पर एक गर्म बाती लगाई जाती है, जिससे रिक्त स्थान बनता है, जो दूषित रक्त को बाहर निकालने में मदद करता है।

3. श्रुंगा वचनराणा

श्रुंगा वचनराणा में वात दोष होने पर दूषित रक्त को बाहर निकालने के लिए गाय के श्रुंगा या सींग का उपयोग किया जाता है जिसे सिंगी पद्धति भी कहते है। जिसके बारे में हम उपर बता चुके है

4. घटी यंत्र

यह प्रक्रिया अलाबू की तरह होती है, लेकिन इसमें लौकी की जगह बर्तन का इस्तेमाल किया जाता है।

रक्तमोक्षण के लाभ

रक्तमोक्षण आयुर्वेदिक थेरेपी का प्रमुख उपयोग रक्त में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालकर रक्त को साफ करने के लिए किया जाता है, ताकि शरीर में संतुलन बना रहे और शारीरिक क्रियाओं में किसी प्रकार की बाधा न हो। इसके अलावा, यह ट्यूमर, एडिमा व सोरायसिस जैसी समस्याओं को दूर करने में भी मददगार हो सकता है।

रक्तमोक्षण थेरेपी के अन्य लाभ इस प्रकार हैं –

रक्तमोक्षण रोग पैदा करने वाले दूषित रक्त को शरीर से बाहर निकालने में आपकी मदद कर सकता है। यह ट्यूमर और एडिमा जैसी गंभीर बीमारी से बचाव करने में मददगार हो सकती है। शरीर में मौजूद पित्त दोष वृद्धि को संतुलित करने में रक्तमोक्षण आपकी मदद कर सकता है।

रक्तमोक्षण की मदद से रक्तस्राव विकारों को कम किया जा सकता है। यह लगातार होने वाली एलर्जी की समस्या से राहत दिलाने में भी प्रभावी है। हाई ब्लड प्रेशर और गठिया में होने वाली समस्याओं को कम करने में भी रक्तमोक्षण थेरेपी असरदार हो सकती है। सोरायसिस जैसी पुरानी बीमारियों के इलाज के लिए भी आप रक्तमोक्षण थेरेपी ले सकते हैं।

रक्तमोक्षण से होने वाले नुकसान

वैसे तो रक्तमोक्षण थेरेपी पूरी तरह से सुरक्षित और प्राकृतिक थेरेपी मानी जाती है। लेकिन, कुछ अपवाद मामलों में खासतौर पर पुरानी बीमारी से ग्रसित लोगों को रक्तमोक्षण थेरेपी करवाने से नुकसान हो सकते हैं। इस तरह के लोगों द्वारा थेरेपी लेने से पीठ दर्द, एसिडिटी, तनाव और अत्यधिक पसीना आने की आशंका हो सकती है। ऐसे में थेरेपी करवाने से पहले एक अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से अपनी जांच जरूर करवाएं, ताकि डॉक्टर आपकी स्थिति के अनुसार आपको परामर्थ दे सके।

रक्तमोक्षण के बाद इन बातों का रखे ख्याल

  • रक्तमोक्षण थेरेपी करवाने के बाद आपको कुछ सावधानियों को बरतने की आवश्यकता होती है, जिससे आपको कोई मानसिक और शारीरिक समस्या न हों।
  • रक्तमोक्षण के दौरान और बाद में काम, तेज शोर, हैवी एक्सरसाइज, हवाई यात्रा, सीधी धूप के संपर्क में आने और ऐसे अन्य गतिविधियों से परहेज करने की सलाह दी जाती है।
  • इस थेरेपी को लेते समय खुद को गर्म रखें और हवा से दूर रहें।
  • थेरेपी के दौरान अपने विचारों पर नियंत्रण रखें और अधिक सोचने से बचें।
  • इस थेरेपी के दौरान कुछ खाद्य पदार्थ जो रक्त के लिए विषाक्त हैं, जैसे- चीनी, नमक, दही, कैफीन, खट्टा स्वाद वाला भोजन और शराब से परहेज करने की सलाह दी जाती है।
  • रक्तमोक्षण थेरेपी के दौरान हल्का और आसानी से पचने वाला भोजन लेने की सलाह दी जाती है।
  • एनीमिया व बवासीर के रोगियों और गर्भवती महिलाओं को इस थेरेपी को न करवाने की सलाह दी जाती है।

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