1991 : एक दौर वह भी था : जब सोना गिरवी रखना पड़ा
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1991 : एक दौर वह भी था : जब सोना गिरवी रखना पड़ा

जुलाई 1991 में भारतीय रिजर्व बैंक ने 46.91 टन सोना रिजर्व बैंक आफ जापान और बैंक आॅफ इंग्लैंड को गिरवी रखने का फैसला किया।

by WEB DESK
Aug 15, 2023, 10:06 am IST
in भारत
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1970 के तेल संकट, समाजवादी अर्थव्यवस्था, अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन और अनाप-शनाप सब्सिडी के कारण 1990-91 तक भारत का कुल राजस्व घाटा बढ़कर 9.4% के आसपास पहुंच गया था।

आज जब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर से अधिक है, जो बड़ी सरलता से भारत के एक वर्ष के कुल आयात की पूर्ति करने में सक्षम है, इस कारण आज इतिहास के उस महत्वपूर्ण बिंदु की कल्पना करना भी कठिन है, जब 1990 के दशक की शुरुआत में भारत के पास मात्र दो सप्ताह के आयात के लायक विदेशी मुद्रा बची थी। 1970 के तेल संकट, समाजवादी अर्थव्यवस्था, अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन और अनाप-शनाप सब्सिडी के कारण 1990-91 तक भारत का कुल राजस्व घाटा बढ़कर 9.4% के आसपास पहुंच गया था।

इसी अवधि के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से गिरता गया। मार्च 1990 में भारत का कुल विदेशी ऋण 72 अरब डालर था जबकि उसका विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 5.8 अरब डालर रह गया था और वह भी बहुत तेजी से कम होता जा रहा था। उस समय देश में राजनीतिक अस्थिरता भी थी और भारत सार्वभौमिक ऋण न चुका सकने की स्थिति में आ रहा था। लेकिन भारत के बैंकों के पास, जिनमें भारतीय रिजर्व बैंक भी शामिल था, पर्याप्त मात्रा में स्वर्ण भंडार उपलब्ध था। भारत के सामने अपनी साख बचाए रखने का अंतिम उपाय यही था।

बेहद गोपनीय ढंग से चलाए गए इस अभियान के तहत लगभग 47 टन सोना 4 बार में भेजा गया, इससे कुल मिलाकर लगभग 40 करोड़ डॉलर की राशि सरकार को प्राप्त हुई। नरसिंह राव सरकार ने भी चंद्रशेखर सरकार के इस फैसले को न केवल जारी रखा, बल्कि उसका पूरी तरह बचाव भी किया। सरकार ने सोना गिरवी रखने के इस निर्णय के साथ यह भी नीतिगत निर्णय लिया कि यह व्यवस्था न केवल अस्थायी रहेगी, बल्कि मौका मिलने पर सोना वापस भी लाया जा सकेगा।

जनवरी 1991 में भारतीय स्टेट बैंक ने निर्णय किया कि वह कुछ सोना गिरवी रखकर विदेशी मुद्रा प्राप्त करने की कोशिश करेगा। सरकार से अनुमति मिलने के बाद अप्रैल में बरामद किए गए सोने में से 20 टन सोना विदेश भेजा गया, जिससे लगभग 23.40 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा अर्जित की गई। लेकिन यह राशि बहुत कम थी। अंतत: रिजर्व बैंक और सरकार ने भी हस्तक्षेप करके यही रास्ता अपनाने का फैसला किया। लेकिन यह कार्य बहुत सरल नहीं था। बहुत बड़ी मात्रा में सोना बाहर ले जाने की अनुमति देने से देशभर में आर्थिक अराजकता और भय का माहौल पैदा हो सकता था। इसके बावजूद चंद्रशेखर सरकार ने रिजर्व बैंक की सलाह पर कार्य करने का फैसला किया।

बेहद गोपनीय ढंग से चलाए गए इस अभियान के तहत लगभग 47 टन सोना 4 बार में भेजा गया, इससे कुल मिलाकर लगभग 40 करोड़ डॉलर की राशि सरकार को प्राप्त हुई। नरसिंह राव सरकार ने भी चंद्रशेखर सरकार के इस फैसले को न केवल जारी रखा, बल्कि उसका पूरी तरह बचाव भी किया। सरकार ने सोना गिरवी रखने के इस निर्णय के साथ यह भी नीतिगत निर्णय लिया कि यह व्यवस्था न केवल अस्थायी रहेगी, बल्कि मौका मिलने पर सोना वापस भी लाया जा सकेगा। जुलाई 1991 में भारतीय रिजर्व बैंक ने 46.91 टन सोना रिजर्व बैंक आफ जापान और बैंक आफ इंग्लैंड को गिरवी रखने का फैसला किया। उस समय तक जापान और लंदन के बैंक भारत के वाणिज्यिक बिलों को स्वीकार करने से इनकार कर रहे थे।

सोने के सौदे के सिलसिले में रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर ने बैंक आफ जापान की यात्रा की। 18 जुलाई 1991 को तत्कालीन वित्त मंत्री ने संसद में एक बयान देकर सारी स्थिति का विवरण संसद के समक्ष रखा। विदेशी मुद्रा बचाने के लिए भारत सरकार ने सोने के आयात पर सख्त प्रतिबंध लगाए हालांकि इसके कारण अवैध तरीकों से सोने का आयात या तस्करी बढ़ती गई और आर्थिक समस्याएं भी साथ-साथ बढ़ती गई। इस कारण सरकार सोने के आयात पर नियंत्रण के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य हुई।

1992-93 में सरकार ने सोने के आयात को आंशिक तौर पर उदार कर दिया और आयातित सोने पर शुल्क भी थोड़ा घटाया। इसके साथ ही सरकार आर्थिक उदारीकरण की नीतियों की तरफ बढ़ी, जिससे सरकार को विदेशी मुद्रा भंडार और आयात संबंधी निर्णयों के मामले में काफी सुविधा प्राप्त हुई।

Topics: विदेशी मुद्रा भंडारभारतीय स्टेट बैंकstate bank of indiaforex reservesसोने के सौदेसोने के आयात को आंशिक तौर पर उदारgold dealspartially liberalized gold importsगवर्नर ने बैंक आफ जापान
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